ऐसा ही होता है बदमाश का अंत, कोई नहीं पहुंचा शव उठाने
जबरा के बारे में कोई पूछने नहीं आया। यहां तक की उसके परिजन भी नहीं आए। कभी आतंक का दूसरा नाम था जबरा। एनकाउंटर के बाद शव को अब पोस्टमार्टम का इंतजार।
पानीपत/करनाल, जेएनएन। कल्पना चावला का मोर्चरी हाउस। कुख्यात बदमाश जबरा का शव यहीं पड़ा है। अकेला। गोलियों से छलनी। बाहर पांच पुलिस वाले। वह भी सुरक्षा की दृष्टि से खड़े थे। कोई उसके बारे में पूछने नहीं आया। शाम साढ़े बजे तक उसके परिवार से कोई नहीं आया। न कोई जान पहचान वाला ही अस्पताल पहुंचा। इस वजह से पोस्टमार्टम नहीं हो पाया।
लगभग साढ़े साल तक आतंक का प्रयाय बना रहा जबरा को शायद अपने अंत का यूं अहसास नहीं था। तभी तो वह बेखौफ हो एक के बाद एक वारदात को अंजाम दे रहा था। पुलिस का कहना है बदमाश की उम्र ज्यादा नहीं होती। एनकाउंटर से यह बात सही साबित होती नजर भी आ रही है।
पढ़ते हुए ही बन गया था अपराधी
जबरा करनाल डीएवी कॉलेज में बीबीए द्वितीय वर्ष का छात्र था। तभी से वह अपराधिक वारदातों में सक्रिय हो गया था। 28 अप्रैल 2015 को जबरा ने एक अन्य साथी से मिलकर अनाज मंडी शाहबाद जिला कुरुक्षेत्र के एक आढ़ती को गोलियां मारकर चार लाख रुपए नकदी का बैग छीना था। वह मई 2015 में कुरुक्षेत्र पुलिस के हत्थे चढ़ गया था। बाद में उसे जेल भेज दिया गया। लेकिन वहां से पैरोल पर बाहर आकर फरार हो गया था।
फेसबुक पोस्ट : जब दिलबाग मर्डर हुआ था, उस समय कहां थे हत्या के आरोपी
जबरा ने फेसबुक पर पोस्ट में लिखा है, राम राम भाइयों मैं जबरा लाडवा, जो कल धरना एसपी ऑफिस के बाहर हुआ है, उन लोगों को पता नहीं है क्या? जब हमारे भाई दिलबाग का बबली और उसके भाई नरेश ने सरेआम मर्डर किया था, उस टाइम कहां थे ये लोग? नरेश हमारा दुश्मन है आज नहीं तो कल उसे मारेंगे, जो उसका साथ देगा उसके साथ जो भी होगा, उसका जिम्मेदार वह खुद होगा। हमें यह बताने की जरूरत नहीं है कि हम क्या कर सकते हैं? नरेश क्या दो लाख रुपये का इनाम दे रहा है, मैं दूंगा 20 लाख का इनाम, जो नरेश के बारे में बताएगा, जिसको भी लड़ाई लड़नी है खुले में आकर लड़े ओपन चैलेंज है।
फिर बना ली इंटरनेट और मोबाइल से दूरी
17 जनवरी 2019 को विकास उर्फ पिंटू की हत्या के बाद जबरा व उसके साथियों ने मोबाइल व इंटरनेट से दूरी बना ली थी। पहले जहां जबरा फेसबुक पर एक्टिव रहता था, वहीं उसने पिंटू की हत्या को अंजाम देने के बार इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं किया। क्योंकि पुलिस के साइबर सैल ने भी उसे इंटरनेट के माध्यम से ट्रेस करने का प्रयास किया था। लेकिन इंटरनेट के यूज नहीं करने से उसकी लोकेशन नहीं मिल पाई। इसी तरह से उसने मोबाइल से भी दूरी बनाई थी। जबरा से हुई मुठभेड़ के बाद तलाशी ली गई तो जबरा के पास से मोबाइल नहीं मिला।
लाडवा में ज्यादा सक्रिय रहा
गिरोह जबरा का गिरोह लाडवा में ही ज्यादा सक्रिय था। उसके शुरुआती मुकदमे भी लाडवा पुलिस थाने में ही दर्ज हुए थे। उस पर लाडवा पुलिस में 26 फरवरी 2015 को हत्या का मामला दर्ज किया था। उसने लाडवा में पहले हत्याकांड को अंजाम दिया और इसके बाद उस पर लगातार अपराधिक मामले दर्ज होते रहे। तीन हत्याओं सहित लूट व डकैती के उस पर 12 मामले दर्ज हुए। 29 जुलाई को अंजनथली में बबली की हत्या और 17 जनवरी को विकास उर्फ ¨पटू की हत्या के बाद जबरा करनाल पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुका था। इसके अलावा उस पर कुरुक्षेत्र के शाहबाद व पिपली थाने में भी मामले दर्ज हुए।