संतूर और तबले की धुन और ओडिसी नृत्य में भक्ति भावों की प्रस्तुति ने दिल को छुआ
अमृता दास ने जैसे ही मंच पर आकर ओडिसी एकल नृत्य में द्रोपदी चीरहरण विरह दर्द और भक्तिभाव की प्रस्तुति दी तो हर कोई क्लासिकल म्यूजिक की गंगा में बहता चला गया।
जागरण संवाददाता, पानीपत : अमृता दास ने जैसे ही मंच पर आकर ओडिसी एकल नृत्य में द्रोपदी चीरहरण विरह, दर्द और भक्तिभाव की प्रस्तुति दी तो हर कोई क्लासिकल म्यूजिक की गंगा में बहता चला गया। उनके अलावा कोलकाता से अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एवं संगीत अकादमी पुरस्कार अलंकृत संतूर वादक पंडित तरुण भट्टाचार्य व कथक सम्राज्ञी सुप्रोवा मुखर्जी ने अपनी प्रस्तुति से लोगों के दिल और दिमाग के तार खोलकर रख दिए।
एसडी पीजी कॉलेज रविवार को मौका रहा भारत संस्कृति यात्रा के अंतिम दिन का। यात्रा हरियाणा कला परिषद, एसडी पीजी कॉलेज और हिन्दुस्तान आर्ट एंड म्यूजिक सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में की गई। मुख्यातिथि परिषद के वाइस चेयरमैन प्रो. संजय भसीन और उनकी धर्मपत्नी शशी भसीन रही। अध्यक्षता एसडी एजुकेशन सोसाइटी के सचिव दिनेश गोयल ने की। कॉलेज के प्रधान डॉ. एसएन गुप्ता, उप-प्रधान पवन गोयल, कोषाध्यक्ष मनोज सिगला और प्राचार्य डॉ. अनुपम अरोड़ा ने कलाकारों और अतिथियों का स्वागत किया। मंच संचालन डॉ. संतोष कुमारी ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के निधन पर शोक व्यक्त किया और पूरा कार्यक्रम उनको समर्पित किया। प्रो संजय भसीन ने कहा कि देश संस्कृति और कलाओं की जननी है। विदेशों हमारी संस्कृति को अपनाया रहे हैं। दिनेश गोयल ने कहा कि भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत कई देशों की संस्कृति है। क्लासिकल म्यूजिक व नृत्य की अपनी पहचान है। फोटो-22
अमृता दास ने ओडिसी एकल और समूह नृत्य की दो प्रस्तुति दी। समू्ह नृत्य में गुरु पंकज चरण दास की तैयार राम कथा की अनन्या घोष, चंद्रानी घोष व सोमनाथ पांडा के साथ प्रस्तुति दी। हनुमान चालीसा के साथ शुरू समूह नृत्य में सीता के सामने सोने का मृग आने और श्रीराम व लक्ष्मण का बारी-बारी कुटिया से जाने और फिर रावण के भेष बदलकर उनका हरण करने की प्रस्तुति नृत्य से दी। सीता ने रावण को बताया कि उसके और हर किसी के मन और शरीर में श्रीराम बसते हैं। अमृता दास ने बताया कि उनको भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला में पारंगत बनाने का श्रेय पदम भूषण से अलंकृत उनके गुरु केलुचरण महापात्रा, गुरु रतिकांता महापात्रा और सुजाता महापात्रा को जाता है। उसको 11 वर्ष की आयु में ही अपने गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त हो गया था। उनको बांग्लादेश के कल्चरल मूवमेंट फाउंडेशन ऑफ बांग्लादेश अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
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संतूर की धुन पर मैं शायर तो नहीं..की प्रस्तुति से मोहा मन
भारत रत्न सितार वादक पंडित रविशंकर के शिष्य प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित तरुण भट्टाचार्य ने अपनी प्रस्तुति से सबको भाव विभोर कर दिया। तबले पर उनका साथ प्रोसेनजित पोद्दार ने बखूबी दिया। उन्होंने मैं शायर तो नहीं मगर जब से देखा तुझको मुझको शायरी आ गई..और मैं यमला पगला दीवाना..जैसे कई पुराने गीतों को अपने संतूर की धुन से हर किसी के दिन के तार को छेड़ा। पंडित तरुण भट्टाचार्य को हाल ही में संगीत अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया है। वे कोलकाता में संतूर आश्रम का संचालन करते हैं। हावड़ा, कोलकाता में जन्मे तरुण भट्टाचार्य ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता रबी भट्टाचार्य से प्राप्त की। तत्पश्चात दुलाल रॉय और बाद में भारत रत्न पंडित रवि शंकर के शागिर्द बने।
वे हाल में पोलियो भगाओ अभियान के ब्रांड एंबेसडर हैं।
सुप्रोवा मुखर्जी ने नृत्य भोर की मनोहारी प्रस्तुति दी-- फोटो-22-बी
कथक पारंगत सुप्रोवा मुखर्जी ने नृत्य भोर (प्रात: काल) की मनोहारी प्रस्तुति दी। पैरों में बंधे घुंघरुओं की छनक ने सबके कानों में शहद की मिठास का अनुभव कराया और उनके पैर भी साथ थिरके। उन्होंने घुंघरुओं पर एक से लेकर पांच तक की गिनती नृत्य से गिनी। उन्होंने कहा कि कथक का अर्थ कहे सो कथा कहलाए होता है। कथक कथा को थिरकते हुए कहने का नाम है। प्राचीन काल में कथक को कुशिलव के नाम से भी जाना जाता था।