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1975 Emergency: जेपी आंदोलनों में थी मुख्य सहभागिता, जेल में ठूंस दिए थे पिता-पुत्र

एडवोकेट जोगेंद्र पाल राठी बोले आपातकाल काला अध्याय। गिरफ्तारी के डर से रिश्तेदारों ने बनायी थी दूरी। 30 लोग ठूंसे थे जेल में।

By Edited By: Published: Tue, 23 Jun 2020 07:03 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 03:00 AM (IST)
1975 Emergency: जेपी आंदोलनों में थी मुख्य सहभागिता, जेल में ठूंस दिए थे पिता-पुत्र
1975 Emergency: जेपी आंदोलनों में थी मुख्य सहभागिता, जेल में ठूंस दिए थे पिता-पुत्र

पानीपत [राज सिंह]। 25 जून, 1975 की आधीरात को पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया था। 21 मार्च 1977 तक (21 माह के दौरान) नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया था। जिन्होंने विरोध किया, जेल गए, यातनाएं झेली। ऐसे लोगों में मनाना गांव के धर्म सिंह राठी (पूर्व एमएलए) और उनके पुत्र एडवोकेट जोगेंद्र पाल सिंह राठी भी शामिल रहे। पुलिस-प्रशासन ने गिरफ्तार किए गए लोगों को कहां कैद रखा है, काफी दिनों तक स्वजनों, रिश्तेदारों-मित्रों को जानकारी भी नहीं दी थी।

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पूर्व एमएलए धर्म ङ्क्षसह राठी का वर्ष 1990 में निधन हो चुका है। आपातकाल में साथ जेल भेजे गए पुत्र जोगेंद्र पाल सिंह ने बताया कि जय प्रकाश नारायण (जेपी) इंदिरा गांधी की नीतियों के विरोधी ही नहीं बल्कि संपूर्ण क्रांति की बुलंद आवाज बने थे।  हरियाणा में जेपी के आंदोलनों में मेरी और पिता की मुख्य भूमिका रहती थी। हमारे घर भी जेपी का आवागमन रहता था। 25 जून, 1975 की अद्र्धरात्रि को आपातकाल लागू हुआ। थाना सदर पुलिस ने 26 जून को पिता धर्म सिंह राठी को घर से गिरफ्तार कर लिया गया था। अगले दिन मुझे भी घर से उठा लिया था। पिता-पुत्र को करनाल की जेल में रखा गया था। उन्होंने बताया कि पानीपत जिले के करीब 30 लोगों को आपातकाल के दौरान तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जेल भेजा था। एडवोकेट राठी के मुताबिक आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को स्थगित करने की आड़ में खूब अत्याचार हुए। 

भूमिगत कार्यकर्ताओं के नाम जानने, ठिकानों का पता लगाने के लिए मानसिक यातनाएं दी गईं। रात्रि पहर में पुलिस सोने नहीं देती थी। समय पर भोजन नहीं मिलता था। घंटों खड़े रखना, डराना-धमकाना, सवालों की बौछार करना रोजाना का काम था। 

पुलिस करती थी परेशान 

एडवोकेट राठी ने बताया कि उस समय में मेरी शादी नहीं हुई थी। पिता और मैं जेल में थे, घर में मां गुलाब कौर(अब स्वर्गवासी) अकेली रह गई थी। पुलिस घर आकर मां से सवाल करती थी कि कैसे घर में रणनीति बनती थी। जेपी कितनी बार मनाना आए? किस-किस नेता का आना जाना था। 

सप्ताह में एक दिन मिलना 

जेल में ठूंसे गए लोगों से स्वजनों की सप्ताह में एक दिन मिलायी कराई जाती थी। उन्हीं से बाहर के हालातों का पता चलता था। परिवार-रिश्तेदारों के दु:ख-सुख की जानकारी भी तभी मिलती थी। अखबारों के प्रकाशन पर भी प्रतिबंध लग गया था। बीबीसी के समाचारों से राजनीतिक गतिविधियों की जानकारी मिलती थी। 

पहली बार लगा जख्मों पर मरहम 

आपातकाल का दंश झेल चुके हरियाणा के लोगों वर्ष 2016 में ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया। एक नवंबर 2017 से आपातकाल के पीडि़तों को शुभ्र ज्योत्सना योजना के तहत 10 हजार रुपये की पेंशन शुरू की गई है। 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक एमआइएसए अधिनियम 1971 या प्रतिरक्षा अधिनियम 1962 के तहत कोई व्यक्ति एक दिन के लिए ही जेल में रहा हो, उसे पेंशन मिल रही है। आपातकाल पीडि़तों की मृत्यु की स्थिति में उनकी विधवाओं को पेंशन का प्रावधान है। 

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