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दुखद घटना का सुखद अंत : बच्चा चुराने वाले गिरोह ने 16 साल पहले उठाया था दुलारी को , अब अपने पिता से मिली

जेएनएन, पानीपत : यह चमत्कार है। दुखद घटना का सुखद अंत है या 16 साल के दर्द को समेटने वाले ल

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Jun 2018 03:30 PM (IST)Updated: Tue, 19 Jun 2018 03:30 PM (IST)
दुखद घटना का सुखद अंत : बच्चा चुराने वाले गिरोह ने 16 साल पहले उठाया था दुलारी को , अब अपने पिता से मिली
दुखद घटना का सुखद अंत : बच्चा चुराने वाले गिरोह ने 16 साल पहले उठाया था दुलारी को , अब अपने पिता से मिली

जेएनएन, पानीपत : यह चमत्कार है। दुखद घटना का सुखद अंत है या 16 साल के दर्द को समेटने वाले लंबे अर्से को खुशी में तब्दील करते चंद लम्हें भर है। खुशी के सामने दर्द नहीं ठहरता। तकलीफ दूर ठिठकी खड़ी थी। सब कुछ एक सपने जैसा ही था। हो भी क्यों ना..एक चार साल की बच्ची अगवा हुई। झारखंड के दूरदराज के गांव से। 16 साल गुलामों की तरह रही।

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दर-दर की ठोकर खाई। कई बार जानवरों से भी बदतर ¨जदगी जी। बस ¨जदा रही। किसी तरह। इस उम्मीद में। एक दिन परिवार से मिल ही जाएगी। इस उम्मीद का दामन थामे वह बीस साल की हो गई। तब जाकर अपने परिवार से मिली। इतना लंबा वक्त लगा उसे अपनों से मिलने में। फिर भी वह बार-बार शुक्रगुजार थी। क्योंकि जानती है वह किस्मतवाली है। जो परिवार से मिल गई। दुलारी। यहीं नाम है उस युवती का।

दुलारी की कहानी आज से 16 साल पहले शुरू होती है। जब वह मात्र चार साल की थी.. एक पिता और एक बेटी के बिछुड़ने और 16 साल बाद मिलने की इस घटना को शब्द देना बेहद मुश्किल है।

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बच्ची नहीं मिलेगी, मैं तो यहीं मान बैठा था : पिता

मैं तो उसे स्कूल छोड़ कर गया था। फिर पता चला उसकी बच्ची गायब हो गई। कहां-कहां नहीं खोजा। झारखंड के गोलकेरा विधानसभा के गांव के गांव रैला निवासी गौरेश ने बताया। तीन बच्चों के पिता गौरेश के यहां दुलारी दूसरे नंबर की बेटी थी। उसने बताया कि जंगल का इलाका है, हम आदिवासी लोग हैं। कौन हमारी सुनता। बस बच्ची को खोजते रहे। कोई दो साल तक खोजते रहे, लेकिन कोई पता नही चला। थकहार कर यहीं मान लिया, अब बेटी नहीं मिलेगी। शायद उसके भाग में यहीं लिखा था।

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कुछ भी याद नहीं था : दुलारी

इधर बच्चा चुराने वाला गिरोह इस बच्ची को एक जगह से दूसरी जगह बेचता चला गया। पहले दिल्ली फिर जब वह कुछ बड़ी हुई और काम करने लायक हुई तो उसे बंधुआ मजदूर की तरह घरों में काम कराया जाने लगा। क्योंकि उसे यहां की भाषा समझ में ही नहीं आती थी। इसलिए वह अपने बारे में किसी को बताने में असमर्थ थी। कोई उससे उसमें बारे में पूछता भी नहीं था। ज्यादा बोलने की इजाजत नहीं थी। गांव का नाम पता नहीं था न पिता का नाम याद था।

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.. और यूं मिली परिवार से

सात माह पहले शुगर फेड के चेयरमैन चंद्रप्रकाश कथुरिया को घर के काम के लिए जब एक हेल्पर की जरूरत थी तो चंडीगढ़ की एक एजेंसी ने दुलारी को उनके पास भेज दिया। कथुरिया ने बताया कि इसी बीच बातचीत में दुलारी ने उन्हें अपने बारे में जानकारी दी। यह पता चलते ही उन्होंने झारखंड के सीएम रघुवर दास से बातचीत की। दुलारी को बस हलका सा अपने गांव का नाम याद था। सीएम को इस बारे में बताया गया। इलाके के पूर्व विधायक गुरुचरण ने आदिवासियों के इस गांव को खोज कर यह पड़ताल की कि वहां से किसकी बच्ची गायब थी। तब उन्हें दुलारी का परिवार मिला।

सोमवार को कथूरिया ने अपने निवास पर दुलारी को उसके पिता और झारखंड के पूर्व विधायक की उपस्थिति में उनके हवाले किया। कथूरिया ने बताया कि यह बहुत ही मुश्किल चुनौती थी, लेकिन झारखड के सीएम और वहां के पूर्व विधायक की सक्रियता से दुलारी को उनका परिवार मिल गया।


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