अजीबोगरीब ज्ञान का मंदिर, गला फाड़-फाड़ गुरुजी पढ़ाते हिंदी, बच्चे सुनते अंग्रेजी
यमुनानगर के एक सरकारी स्कूल में एक कमरे में अलग-अलग क्लास के बच्चे पीठ करके बैठते हैं। एक कक्षा में दो टीचर अलग-अलग विषय पढ़ाते हैं जिससे बच्चों को समझ में कुछ नहीं आता।
पानीपत/यमुनानगर [राजेश कुमार]। बात कर रहे हैं उधमगढ़ के राजकीय प्राथमिक पाठशाला की। यहां पहुंचते ही सरकार के सर्व शिक्षा अभियान जैसे नारे दम तोड़ देते हैं। यहां सुविधा मिलना तो दूर बच्चे हमेशा खतरे के साये में रहते हैं। बेचारे ऐसी स्थिति में पढऩे के लिए बेबस हैं। क्योंकि आसपास कोई सरकारी स्कूल नहीं है। अधिकतर बच्चे मजदूरों के हैं इसलिए प्राइवेट स्कूल में पढऩे की हैसियत नहीं है। अभिभावकों के लिए इतनी ही गनीमत है कि एक जमींदार ने स्कूल के लिए जमीन दान कर दी। सरकार ने केवल स्कूल खोल दिया, सुविधाओं के लिए सुध तक नहीं ली।
राजकीय प्राथमिक पाठशाला नंबर चार ऊधमगढ़ माजरी के तीसरी और पांचवीं कक्षा के बच्चे हर रोज एक दूसरे की पीठ करके पढ़ाई करते हैं। ऐसा करना इनकी मजबूरी है। इस प्राथमिक पाठशाला में महज दो कमरे हैं, जबकि बच्चों की संख्या 159 है। इनकी क्लास कमरे के बजाय सात फुट के बरामदे में लगती हैं। स्कूल में सात टीचरों का स्टाफ भी है। इतने सालों के बाद भी शिक्षा विभाग इस स्कूल का उद्धार नहीं कर पाया है।
बच्चे क्या पढ़ते हैं किसी को कुछ समझ नहीं आता
ऊधमगढ़ माजरी की पाठशाला जिस जगह पर चल रही है वो महज 225 वर्ग गज है। स्कूल में कुल तीन कमरे हैं, जिनमें से एक कमरे में हेड टीचर का कार्यालय है। साथ वाले कमरे में पहली कक्षा, तीसरे कमरे में दूसरी कक्षा के बच्चे बैठते हैं। तीसरी और पांचवीं कक्षा के बच्चों के बैठने के लिए कमरा नहीं है। इसलिए दोनों कक्षाएं बरामदे में लगती हैं। यह बरामदा भी महज सात फुट का है। दोनों कक्षाओं की पढ़ाई प्रभावित नहीं हो, इसलिए बच्चों को एक-दूसरे की तरफ पीठ करके बैठाया जाता है। इसलिए किसी को समझ नहीं आता कि वे क्या पढ़ रहे हैं।
जिस कमरे में पढ़ रहे बच्चे, उसी में रखे सिलेंडर
जगह के अभाव में कक्षा में ही एलपीजी सिलेंडर रखे हैं। दोपहर को स्कूल में मिड डे मील का भोजन बनता है। रसोई घर भी कक्षा के बिल्कुल साथ है।
जमींदार ने दान दी थी जमीन
इस पाठशाला के लिए जगाधरी के जाने-माने जमींदार व समाजसेवी सुरजीत सिंह ने अपनी जमीन दान दी थी। जगाधरी में उनके बाग और खेत थे। इनमें काफी संख्या में मजदूर काम करते थे। मजदूरों के बच्चे पढ़ाई कर सकें। इसलिए उन्होंने शिक्षा विभाग को अपनी जमीन दान दी थी। गत वर्ष ही सुरजीत सिंह का देहांत हो गया। शिक्षा विभाग ने कभी प्रयास नहीं किया कि जो जमीन मिली है उसमें कमरों का विस्तार किया जाए।
खेलने के लिए ग्राउंड तक नहीं
जगह के अभाव में स्कूल के बच्चे खेलकूद की सुविधाओं से महरूम है। क्योंकि बच्चों के पास ग्राउंड ही नहीं है इसलिए वे खेल नहीं पाते। हाफ टाइम में बच्चे कमरों में लुका- छिपी का खेल खेलकर खुद को संतुष्ट कर लेते हैं। बिजली जाने के बाद कमरों में अंधेरा हो जाता है। अंधेरे में कॉपी में लिखना तो दूर बच्चे एक दूसरे का चेहरा तक नहीं देख पाते।
डीईईओ को लिखा है : मांगे राम
स्कूल के हेड टीचर मांगे राम का कहना है कि स्कूल में जगह का अभाव है। मजबूरी में बच्चों को बरामदे में व बाहर बिठाकर पढ़ा रहे हैं। इस बारे कई बार डीईईओ को लिख चुके हैं अभी तक कोई जवाब नहीं आया।
स्कूल में बच्चों की संख्या
- कक्षा बच्चे
- 1 24
- 2 37
- 3 37
- 4 34
- 5 29