ग्रीन जोन के पांच हजार उद्योगों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तलवार
ग्रीन जोन में लगे पानीपत के पांच हजार उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कंसेंट टू ऑपरेट (सीटीओ) यानी चलाने की अनुमति लेनी होगी। सीटीओ के लिए सीएलयू (चेंज ऑफ लैंड) होना अनिवार्य है।
जागरण संवाददाता, पानीपत :
ग्रीन जोन में लगे पानीपत के पांच हजार उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कंसेंट टू ऑपरेट (सीटीओ) यानी चलाने की अनुमति लेनी होगी। सीटीओ के लिए सीएलयू (चेंज ऑफ लैंड) होना अनिवार्य है। वर्ष 2016 से पहले लगे उद्योगों पर यह नियम लागू किया गया है। केंद्रीय ग्राउंड वॉटर अथॉरिटी ने भूजल का प्रयोग करने वाले उद्योगों की खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। सेक्टर 29 पार्ट दो में नेशनल वूलन मिल को एक करोड़ 77 लाख के हर्जाने की सिफारिश की गई है। इसके अतिरिक्त आठ उद्योगों पर 04 से 15 लाख रुपये का हर्जाना लगाया जा चुका है।
इन समस्याओं को लेकर उद्यमियों का एक प्रतिनिधिमंडल सांसद संजय भाटिया से मिला। सांसद ने उद्यमियों से उनकी समस्याओं का लिखित ज्ञापन लिया। उन्होंने उनकी समस्याओं से मुख्यमंत्री को अवगत करवाने का आश्वासन दिया। पानीपत रोटर्स स्पिनर्स एसोसिएशन के प्रधान प्रीतम सिंह ने बताया कि 2016 से पहले कंसेंट, सीएलयू जरूरी नहीं थे। ग्रीन जोन इससे बाहर थे। उद्योग प्रदूषण रोकने के लिए तत्पर है। कोई प्रदूषण फैलता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। हमने परमिशन के केंद्रीय अंडर ग्राउंड वॉटर अथॉरिटी को भी आनलाइन अप्लाई किया हुआ। इस समस्या के हल के लिए स्टेट की अंडर ग्राउंड वॉटर अथॉरिटी का गठन किया जाना है। उससे परमिशन मिल सकेगी। सिचाई विभाग के उच्च अधिकारियों के भी उद्यमी संपर्क में है। सिचाई विभाग एसीएस से भी जल्द ही उद्यमी मिलकर अपने समस्या से अवगत करवाएंगे। सांसद ने भी आश्वासन दिया है कि स्टेट लेवल अंडर ग्राउंड वॉटर अथॉरिटी सेल का गठन किया जा रहा है। सांसद से मिलने वालों में ललित गोयल, मुकेश बंसल, विवेक गुप्ता, अशोक गुप्ता, विनोद ग्रोवर, राजीव अग्रवाल, राजकुमार सिगला सहित पीड़ित उद्यमी शामिल रहे।
ऐसे समझिये मामला
-2016 से पहले लगे ग्रीन जोन में शामिल उद्योगों पर कंसेंट लागू की गई है। ये बड़े-बड़े उद्योग औद्योगिक सेक्टर से बाहर लगे हैं। इनको लगाने के वक्त न तो अनुमति की जरूरत होती थी और नहीं सीएलयू की आवश्यकता। अब बिना सीएलयू के अनुमति नहीं मिल सकती। उद्योग प्रदूषण भी नहीं फैला रहे। कंसेंट न होने पर इन्हें बंद किया जा सकता है। पहले प्रदूषण फैलने वाले उद्योगों के कंसेंट जरूरी थी। अब सभी स्पिनिग मिल, ओपनएंड, कार्डिंग, पावर लूम, शटल लैस, वॉटर जैट उद्योग भी बोर्ड के दायरे में आ गए हैं।
-पूरे औद्योगिक नगर में सात उद्योगों के पास ही केंद्रीय अंडरग्राउंड वॉटर अथॉरिटी (सीजीडब्ल्यूए) की भूजल प्रयोग करने की अनुमति है। शुगर मिल सहित बड़े छोटे सभी उद्योग भूजल दोहन कर रहे हैं। अनुमति किसी के पास नहीं है। परमिशन के लिए आवेदन भी दिए जा चुके हैं। उद्योगों की परमिशन तो मिल नहीं रही। हर्जाना लगाया जा रहा है। ऐसे में ये उद्योग कैसे चल सकते हैं। --महावीर-------