आपातकाल के 44 साल : दर्द और संघर्ष की दास्तां आज भी कर देती है रोंगटे खड़े, बेवजह बड़ी कीमत चुकाई इन्होंने
1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया तो लोगों के सारे अधिकार खत्म हो गए। काफी संख्या में लोगों पर कहर टूटा। संघर्ष व पीड़ा का वह समय आज भी झकझोर देती है।
करनाल/पानीपत, [यशपाल शर्मा/राज सिंह]। 25 जून, 1975 की अर्द्धरात्रि को देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। 21 मार्च 1977 तक 21 माह के दौरान नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया। जिन्होंने इसका विरोध किया, जेल गए, यातनाएं सहीं। हरियाणा में काफी संख्या में लोगों को यह सब भुगतना पड़ा। ऐसे लोगों में शामिल थे करनाल के आत्मप्रकाश और पानीपत के इंद्रसेन। उनके संघर्ष की कहानी आज भी रोंगटे खड़े कर देती है। उनका परिवार भी इस वेदना से गुजरा। पेश है उनकी आपबीती
12 साल के बेटे को चौकी में बैठाया...
ईश्वर सबका भला करे... कहकर करनाल के आत्मप्रकाश की आंखें नम हो उठीं। वह उस दौर की कड़वी यादों में खो गए, जब देश में आपातकाल लगा था। उन्होंने व उनके परिवार ने जो यातनाएं झेलीं, वह यादें आज भी उन्हें विचलित कर देती हैं। आत्मप्रकाश से जब हमने उन तकलीफों के बारे में पूछा, तो आंखों से बहने वाले आंसू पूरी कहानी कह गए। बोले, तकलीफों के मंजर को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। किसी पर आरोप भी लगाना गलत है...।
आत्मप्रकाश ने बताया, मैैं किसी जरूरी काम से चंडीगढ़ गया था। मुझे नहीं पता था कि पुलिस मुझे तलाश कर रही थी। पुलिस वाले मेरे घर पहुंचे। घर में जब मैैं नहीं मिला, तो सदर पुलिस कर्मचारी मेरे 12 वर्षीय बेटे गुलशन को उठाकर ले गए। पुलिस कर्मचारियों ने परिवार को चेताया कि जब आत्मप्रकाश आ जाएंगे तो बेटे को छोड़ देंगे। पुलिस ने बच्चे को पूरे दिन चौकी में बैठाए रखा...।
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उस दौर की याद करते हुए आत्मप्रकाश बताते हैं कि वह तब अखबार बांटने का काम करते थे। साथ ही संघ की विचारधारा को अपनाए हुए थे। आपातकाल के मंजर को याद करते-करते आत्मप्रकाश भावुक हो गए और चुप्पी साध ली। फिर पूछने पर बोले, ईश्वर सब का भला करे...। ऐसे दिन किसी भी देश में न आएं, जिसमें लोगों को जबरन उठाकर जेलों में ठूंस दिया गया...।
पहले नहाऊंगा, हनुमान पाठ करूंगा, तब करना मुझे गिरफ्तार...
पानीपत के गर्ग परिवार ने भी आपातकाल का कहर झेला। परिवार के मुखिया इंद्रसेन को गिरफ्तार कर लिया गया। इंद्रसेन तो अब दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उस समय परिवार ने जो सहा, उसे बयां करते हुए उनकी पत्नी किरण और पुत्र अजय भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि उन्हें उस संघर्ष का एक-एक पल किसी चलचित्र की तरह अब भी याद है।
72 साल की किरण ने कहा, इंद्रसेन की मेन बाजार में क्रॉकरी शॉप थी। आरएसएस में नगर कार्यवाहक थे। आपातकाल घोषित होने पर किला थाना पुलिस ने तमाम विपक्षी संगठनों, पत्रकारों, साहित्यकारों की गिरफ्तारी शुरू कर दी थी। इंद्रसेन भूमिगत होकर दिल्ली में जा छिपे।
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किरण ने बताया, पुलिस घर आई और इंद्रसेन के बड़े भाई वजीर चंद को गिरफ्तार कर ले गई। तब 2 जुलाई 1975 को इंद्रसेन को लौटना पड़ा। किला थाना पुलिस घर आ धमकी। इंद्रसेन ने कहा कि पहले नहाऊंगा, हनुमान पाठ करूंगा, फिर नाश्ता करने के बाद तुम्हारे साथ चलूंगा। मेरी बात नहीं मानोगे तो दीवार कूदकर भाग जाऊंगा। किरण के मुताबिक कृष्ण स्वरूप नाम का पुलिसकर्मी उनकी बात को मान गया। इंद्रसेन को करनाल जेल भेजा गया, जहां वह एक साल कैद रहे।
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अजय गर्ग ने बताया कि परिवार में दो भाई-तीन बहनें हैं। आपातकाल के दौरान उनकी आयु करीब 11 वर्ष थी। पिता की छोटी सी दुकान थी। पिता और ताऊ जेल गए तो भूखे मरने की नौबत आ गई। दुकान का सामान औने-पौने दाम में बेचना पड़ा था। हालात ऐसे थे कि कोई सामान नहीं खरीदना चाहता था, बात करने से भी मुहल्ले के लोग डरते थे। मां ने उस दौरान कैसे घर संभाला, याद करते हैं तो रोना आ जाता है। दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए थे।
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