एक दीवानगी ऐसी, इतने पौधे लगाए कि घर बना ग्रीन हाउस
छह सौ गज में करीब डेढ़ हजार से भी ज्यादा गमले। घर में जहां नजर डालिए, वहां गमले ही गमले। ये घर है अंबाला छावनी के सुभाष कॉलोनी निवासी निशी गुप्ता। जानिए आखिर क्या है ऐसा खास।
पानीपत/अंबाला, [अंशु शर्मा]। मिट्टी की खुशबू कहें या फूलों से प्यार, मगर जो भी हो पर है लाजवाब। 52 वर्षीय निशी गुप्ता में पौधगिरी का ऐसा जुनून है कि 600 गज के मकान में सौ-दौ सौ नहीं बल्कि पूरे डेढ़ हजार गमले लगाकर ग्रीन हाउस ही बना डाला। नजारा ऐसा कि चारों ओर हरियाली व रंग बिरंगे फूल देखकर हर कोई दंग रह जाए। हम बात कर रहे हैं कि अंबाला छावनी के सुभाष कॉलोनी निवासी निशी गुप्ता की।
पौधों से लगाव इस कद्र है कि शायद की मकान का कोई ऐसा हिस्सा हो जहां पौधे न हो। वो भी हाईब्रीड से लेकर गेंदा, मनी प्लांट, डेलिया, डैनथस, पिटूनिया, पैंजी, एंट्रमन, रैनाकुलस से लेकर सालविया की अलग-अलग किस्म यहां मौजूद हैं। कहीं भी अगर उनका जिक्र हो जाए तो कोई उनके घर आने से नहीं रुकता बल्कि पौधगिरी के जुनून को देखकर जागरूक होते हैं। यहीं कारण है कि रिश्तेदार हो या चाहे जान पहचान के लोग हर कोई उनके घर आते ही पौधों की महत्वता का अंदाजा लगा लेता है।
600 गमलों में लगी 256 तरह की गुलदाउदी
निशी गुप्ता बताती है कि 600 गमले में 256 किस्म की गुलदाउदी के फूल हैं। मौसम के अनुसार पौधों में समय-समय पर बदलाव होता है। चौंकाने वाली बात है कि पौधों के अंदर किसी प्रकार का कैमिकल नहीं होता, सभी आर्गेनिक हैं।
घरों में रखे गमले में लगे पौधे।
मदर प्लांट की संख्या ज्यादा
उनके घर में मदर प्लांट की संख्या ज्यादा है जिन्हें वह घर के अंदर ही तैयार करते हैं। इन पौधों की लाइफ कम होती है। जिसे वह दोबारा रि-प्रोसेस से उन्हें लगाते हैं। अधिकतर पौधे ऐसे है कि जिन्हें धूप के लिए छत पर रखा जाता है और शाम को वापस रखा जाता है। जिसके रखरखाव के लिए दो माली व हर माह हजारों रुपये का खर्च आता है। पौधों पर प्राकृतिक ढंग से ही गोमूत्र व नीम के पत्तों से स्प्रे किया जाता है।
पुरानी परंपराओं और रीति रिवाज से जोड़ती है ये खुशबू
पौधों के अलावा मिट्टी की महक से निशी गुप्ता को इस कद्र प्यार है कि मिट्टी की महक के बिना भोजन भी पसंद नहीं करती। आज के दौर में भी वह मिट्टी के बर्तनों के अंदर ही परिवार के लिए भोजन तैयार कराती है। उनका मानना है कि मिट्टी की महक उन्हें हमारी पुरानी परंपराओं व रीति रिवाज से जोड़ती है। मिट्टी के बर्तन के अंदर खाना खाने से स्वास्थ्य भी दुरुस्त रहता है। जबकि पौधों से उनके मन को अलग सी शांति मिलती है।