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14 हजार किलोमीटर से दूर समुद्र लांघकर आए श्रीराम-हनुमान...संस्‍कृत रामलीला से किया दंग

हिंदी समझ नहीं आती पर रामचरितमानस की चौपाइयों पर जबरदस्त पकड़। त्रिनिदाद और टोबैगो के निवासी। इनमें से कोई इंजीनियर तो कोई पोस्‍ट ग्रेजुएट। कर चुके हैं रिसर्च।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Tue, 30 Oct 2018 03:51 PM (IST)Updated: Tue, 30 Oct 2018 04:20 PM (IST)
14 हजार किलोमीटर से दूर समुद्र लांघकर आए श्रीराम-हनुमान...संस्‍कृत रामलीला से किया दंग
14 हजार किलोमीटर से दूर समुद्र लांघकर आए श्रीराम-हनुमान...संस्‍कृत रामलीला से किया दंग

जागरण विशेष/कुरुक्षेत्र [विनीश गौड़] - भगवान हनुमान समुंद्र लांघकर लंका गए थे। इस बार समुंद्र लांघकर न केवल हनुमान आए हैं, बल्कि उनके साथ भगवान श्रीराम से लेकर पूरी रामलीला के ही पात्र हिंदुस्‍तान की जमीं पर पहुंचे हैं। ये हैं कैरिबियाई देश त्रिनिदाद और टोबैगो के निवासी। हिंदी भाषा बोलनी इन्‍हें अच्‍छे से नहीं आती पर रामलीला से इतने प्रभावित हुए कि इसके मंचन के लिए संस्‍कृत का उच्‍चारण सीख तक सीख लिया। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के मंच पर इनका मंचन देखकर हर कोई दंग रह गया।

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रुदेश राम, एलविजा हनुमान और रोबिन लक्ष्मण। रामलीला के इन पात्रों के नाम भी अंग्रेजी हैं। त्रिनिदाद और टोबैगो के ये कलाकार रामचरितमानस की चौपाइयां और सुंदरकांड पाठ के दोहे का उच्चारण इतना स्पष्ट और मधुर ढंग से करते हैं कि सुनने वाला भी इन्हें संस्कृत और हिंदी का प्रकांड ज्ञाता समझ बैठता है। मगर आश्चर्य की बात है कि इनमें से एक को भी हिंदी समझ नहीं आती। विदेश में ही जन्म और शिक्षा होने के कारण भारतीय मूल इन युवाओं को मातृ-भाषा भले ही समझ नहीं होती हो, लेकिन ये अपनी परंपरा और जड़ों से विमुख नहीं हुए। तभी तो विदेश में भी रामलीला जैसी परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं। काम की तलाश में कैरिबिया गए लोगों की यह चौथी पीढ़ी है जो इस परंपरा को वहां संभाले हुए है, जबकि इन कलाकारों के मुताबिक वहां 1880 से रामलीला का मंचन किया जा रहा है। दक्षिण कैरिबिया से आए इन कलाकारों ने सोमवार को मल्टी आर्ट कल्चरल सेंटर में रामलीला का मंचन किया।

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रामलीला के पात्र।

इस परंपरा को संभाले रखने की जरूरत
नृत्य कला में स्नातक राम बनने वाले रुदेश बताते हैं कि त्रिनिदाद में उनके पूर्वज इस आयोजन को 1880 से मनाते चले आ रहे हैं। रुदेश के मुताबिक यह हमारी परंपरा है। हमें इस परंपरा को संभाले रखने की जरूरत है। विदेश में रहते हुए भी उनके पूर्वजों ने इस परंपरा को ङ्क्षजदा रखा, जिससे उन्हें अपनी जड़ों से जुडऩे का मौका मिला।

रामचरितमानस से मिली प्रेरणा 
लक्ष्मण का अभिनय करने वाले एमटेक विद्यार्थी रोबिन ने बताया कि उन्होंने रामचरितमानस को पढ़ा है और उसी से उन्हें रामलीला के मंचन की प्रेरणा मिली। भगवान राम की कहानी शिक्षाप्रद है। त्रिनिदाद में बारहवीं करके किसी भी देश में लॉ करने की स्कॉलरशिप अर्जित करने वाली सीता का रोल कर रही राधिका बताती है कि भारत का दौरा उनके लिए बेहद भाग्यशाली रहा। राधिका के मुताबिक जब वह भारत के लिए रवाना हुई तब उसे यहां आने के बाद इस स्कॉलरशिप मिलने के बारे में पता लगा।

हनुमान का भक्त हूं
हनुमान का रोल करने वाले एलविजा त्रिनिदाद की एक कंपनी में सेल्समैन का काम करते हैं। एलविजा बताते हैं कि वह हनुमान जी के पक्के भक्त हैं और रामायण में उनके कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। वे रामलीला में हनुमान जी का अभिनय करके उन्हें मन से याद करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। भारत में इसका आयोजन करना उनके लिए बेहद यादगार रहा।

indrani ramlela

रामलीला पर की है रिसर्च - इंद्राणी
टीम कॉर्डिनेटर डॉ. इंद्राणी रामप्रसाद ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में बताया कि त्रिनिदाद और टोबैगो में रामलीला उत्सव मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है। भारत देश से काम की तलाश में वहां गए लोगों ने इसे 1880 में मनाना शुरू किया और आज उनकी चौथी पीढ़ी भी इस उत्सव को वहां पर 10 दिन के उत्सव के तौर पर मना रही है। उन्होंने वर्ष 2007 में त्रिनिदाद और टोबैगो में रामलीला पर रिसर्च की थी।


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