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International Womens Day: हजारों मील दूर से आई थीं पेट पालने, अब देश का भविष्य संवार रही हैं

शिक्षा बांझ नहीं होती है। यह समय पर फलदायी साबित होती है। सम्मान दिलाती है। इसकी मिसाल हैं मंजू।

By Edited By: Published: Fri, 08 Mar 2019 06:38 AM (IST)Updated: Fri, 08 Mar 2019 08:59 PM (IST)
International Womens Day: हजारों मील दूर से आई थीं पेट पालने, अब देश का भविष्य संवार रही हैं
International Womens Day: हजारों मील दूर से आई थीं पेट पालने, अब देश का भविष्य संवार रही हैं

पानीपत [धर्म देव झा]। शिक्षा बांझ नहीं होती है। यह समय पर फलदायी साबित होती है। सम्मान दिलाती है। छत्तीगढ़ के बिलासपुर की माहेश्वरी उर्फ मंजू के साथ यही हुआ। जीव विज्ञान में बीएससी की डिग्री होल्डर मंजू को पारिवारिक मतभेदों के चलते घर छोड़ना पड़ा। अब सामने समस्या थी पेट पालने की। इसी जुगत में अपने दो भाइयों को लेकर पहुंच गई पानीपत। अपने और भाइयों के भविष्य का निर्माण करना था तो उन्होंने मजदूरी शुरू की। इसी बीच, ठेकेदार को मंजू की प्रतिभा का पता चला तो उन्होंने उसे निखारने का बीड़ा उठाया। शिक्षा से वंचित मजदूरों के 40 बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी। संघ के निर्माणाधीन भवन परिसर में एक कमरा उपलब्ध करा दिया। अब मंजू यहां मजदूरों के बच्चों की शिक्षक बन गई हैं। उनमें शिक्षा की लौ जला रही हैं।

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ऐसे बदली जिंदगी
छत्तीसगढ़ बोर्ड से 10वीं और 12वीं करने के बाद मंजू ने छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय से जीव विज्ञान में बीएससी की। करीब दो साल पहले मां के निधन पर पिता ने दूसरी शादी कर ली। सौतेली मां से तालमेल नहीं बैठा तो मंजू अपने भाई टेकलाल और गौतम के साथ हरियाणा के पट्टीकल्याणा में श्री माधव जनसेवा न्यास के निर्माणाधीन मकान में मजदूरी करने लगीं। यहां केबी बिल्ड वर्थ के एमडी अशोक मित्तल ने उनकी प्रतिभा को परखा। मंजू ने आपबीती सुनाई तो वह दंग रह गए। उन्होंने युवती को बच्चों को शिक्षा देने, उसके बीसीए पास भाई टेकलाल को स्टोर और 12वीं पास गौतम को ऑफिस का काम सौंप दिया।

सेवा भारती ने दिया प्रशिक्षण
सेवा भारती के पदाधिकारी आदेश त्यागी को पता चला कि संघ के निर्माणाधीन भवन में मजदूरों के 40 बच्चों को शिक्षा नहीं मिल रही है तो उनकी टीम वहां पहुंची। वहां मंजू को बच्चों को पढ़ाते देखा तो तुरंत उन्हें अपने स्कूल में एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिलाया। साथ ही बच्चों को वर्दी व अन्य चीजें मुहैया कराई।

गायत्री मंत्र से होती कक्षा की शुरुआत
डेढ़ माह पहले खुले स्कूल में कक्षा की शुरुआत गायत्री मंत्र से होती है। सभी बच्चों को अंग्रेजी और ¨हदी वर्णमाला का ज्ञान है। वे अपना नाम, पता आदि लिखने लगे हैं। वर्दी, जूते, जुर्राब, बैग से लैस बच्चे किसी के पहुंचने पर खड़े होकर अभिवादन करते हैं। ठेकेदार ने सभी को किताब, कापी और पेंसिल भी दी है। स्कूल में चौथी और पांचवीं के बच्चों को अलग से समय दिया जा रहा है।

मजदूरों को मिली राहत
छोटे बच्चों को सुबह से शाम 4 बजे तक स्कूल में होने से ठेकेदार का काम बाधित नहीं होता है। बच्चों के मां-पिता को उनकी सुरक्षा की ¨चता नहीं रहती है। बच्चों को स्कूल में नाश्ता और लंच भी मिलता है।


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