शाबाश! बेजुबानों की ली सुध और चल पड़ा कारवां, Lockdown में सामने आईं मानवता की तस्वीरें
जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है लोग घरों में हैं। वहीं बेजुबानों को चारा पानी के लिए मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में कई दानवीरों ने इनका बीड़ा उठाया। देखिए तस्वीरें।
पानीपत, जेएनएन। कोरोना के खिलाफ जंग में अभी तक सबने अपनी जिम्मेदारी शिद्दत से निभाई है। इस मुश्किल दौर में हमें एक और दायित्व का निर्वहन करना है। मौजूदा वक्त में संकट उन बेजुबानों के लिए भी बढ़ गया है, जो भूख-प्यास से बेहाल होकर सड़कों पर भटक रहे हैं। पहले ही चारे की कमी इन पर भारी पड़ रही थी। लॉकडाउन में अब हालात और भी विकट हो गए हैं। इसी के मद्देनजर बुधवार को तमाम समाजसेवी संस्थाओं व आम लोगों ने बेजुबानों की भूख और प्यास मिटाने का बीड़ा उठाया और जगह-जगह उनके खाने-पीने का इंतजाम किया।
बेसहारा पशुओं के एटीएम अब नहीं रहेंगे खाली
लॉकडाउन का दौर है। हर तरफ सन्नाटा है। बेसहारा पशु-पक्षी भूख से बिलबिला रहे हैं। ऐसे में दैनिक जागरण की मुहिम ने उन लोगों को नया हौसला दिया है, जो पहले से बेजुबानों की मदद के लिए अथक मेहनत कर रहे हैं। कुछ माह पहले एटीएम यानि एनी टाइम मील सरीखी अनूठी पहल करने वाले घरौंडा के गौरव खुराना इन्हीं में शामिल हैं, जिन्हें जागरण की मुहिम से यकीं हो चला है कि तमाम लोग इस पुनीत कार्य में सहभागी बनेंगे। बुधवार को इसकी झलक भी नजर आ गई, जब लोगों ने इन एटीएम पर बेजुबानों के लिए पानी, रोटी, बिस्कुट से लेकर फलों तक का इंतजाम किया।
गौरव ने गत वर्ष अपने जन्मदिन पर पहला एटीएम लगाया था। संकल्प था कि पूरे देश में यह अलख जगाएंगे। इसके लिए मॉम स्टाइल फूड संस्था शुरू की तो संस्था पाथ फॉर वॉयसलेस की अलका कालड़ा और वॉयस ऑफ वॉयसलेस की दलजीत कौर भी आगे आईं। दोनों के सहयोग से करनाल में छह सहित पूरे राज्य में 29 एटीएम लग चुके हैं।
जागरण की मुहिम प्रेरक
गौरव बताते हैं कि दैनिक जागरण ने बेजुबानों की मदद के लिए मुहिम शुरू कर प्रेरक व सराहनीय कदम उठाया है। अच्छी बात है कि मुहिम के जरिए लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं।
एक साथ सबकी मदद
एटीएम यानि एनी टाइम मील बूथ छह फुट लंबाईयुक्त 40 किलो वजनी लोहे का ढांचा है, जिसे पार्को व अन्य प्रमुख स्थलों के पास रखा गया है। निचले हिस्से में कुत्तों व अन्य जानवरों के लिए खाद्य पदार्थ डाले जा सकते हैं। छतनुमा पार्ट दो हिस्सों में है। एक में पानी और दूसरे में अनाज के दाने डाले जाते हैं।
नौजवान आए सामने
लॉकडाउन के बीच जरूरतमंद इंसान तक राशन और खाना पहुंचाने में हर कोई जुटा है। दैनिक जागरण की इस मुहिम को समाजसेवी संस्थाओं का साथ मिला है। पानीपत और समालखा की संस्थाएं व समाजसेवी इन बेजुबानों के दाना पानी का प्रबंध करने के लिए लिए आगे आए हैं।
अंसल में छत पर रखे कसोरे
असंल सुशांत सिटी में रहने वाले समाजसेवी अशोक भारद्वाज व उनकी पत्नी बबिता भारद्वाज बेजुबानों की सेवा में सबसे आगे रहती हैं। बेजुबान पक्षियों के लिए बुधवार को छत पर दो अलग-अलग कसोरे रखे। एक में पानी और दूसरे में दाना डाला। अशोक भारद्वाज ने बताया कि गर्मी शुरू होते ही प्रत्येक वर्ष ऐसा ही करते हैं। प्रकृति संतुलन में योगदान देने वाले बेजुबानों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
दानवीरों से लाते हैं चारा
समालखा कान्हा गोवंश रक्षा उपचार एंव कल्याण संस्थान के बैनर तले संगठित ये नौजवान इंसान पशुओं के पेट की आग बुझा रहे हैं। प्रत्येक दिन दानवीरों से संपर्क कर उनके खेत से चारा लाकर न केवल बेसहारा गोवंश को डालते हैं बल्कि गोशाला तक में आए चारा संकट को दूर करने में लगे हैं। साथ ही बंदरों के लिए केले और कुत्ते के लिए बिस्किट तक की हर रोज व्यवस्था करते हैं। बेजुबान भी भूखे पेट न रहे।
इंसान पर निर्भर बेजुबान
संस्था के सदस्य प्रदीप भापरा बताते है कि उन्होंने बेसहारा गोवंश की तस्करी रोकने के साथ उसे बीमार या हादसे का शिकार होने की हालात में उपचार कराने के मकसद से कान्हा गोवंश रक्षा उपचार एवं कल्याण संस्था की शुरुआत की थी। कोरोना संकट में इंसान पर ही निर्भर बेजुबान बेसहारा गोवंश, बंदर और कुत्ते आदि भूखे रहने लगें। ऐसा लगा कि उनके पेट पर ही लॉकडाउन लग गया। इलाज के साथ उनका पेट भरने की भी ठानी। प्रदीप ने बताया कि जब से लॉकडाउन लगा है, उस दिन से वो लगातार बेसहारा गोवंश को चारा डालने का काम करते आ रहे हैं। बेजुबानों के पेट भरने की इस मुहिम में उन्हें दानवीरों का पूरा सहयोग मिल रहा है। जो चारा दे रहे हैं। मुहिम में गो भक्त प्रवीन चुलकाना, विकास शर्मा, सोनू शर्मा, गुलशन चुलकाना, गौरव, मनीष, प्रवीन धीमान, सीटू, मंदीप भापरा, संजू, प्रदीप कौशिक, हितेश शर्मा आदि उनके साथ जुड़े है। दिन-रात खेतों से चारा काट कर लाते है।
बंदरों को डालते है केले
सोनू शर्मा बताते है कि समालखा कस्बे, नारायणा व नामुंडा नहर किनारे सैकड़ों बंदर है। उनकी भूख लोगों द्वारा केले आदि देने पर बुझती थी। उनकी संस्था कस्बे के अलावा हर रोज नहर किनारे जाकर बंदरों को केले और चने डालकर आती है, ताकि वो भूखे न रहे। कुत्तों को बिस्किट खिलाते हैं।
दैनिक जागरण आपके साथ
कोरोना के खिलाफ जंग में भी दैनिक जागरण ने सामाजिक सरोकार को तरजीह दी है। इस क्रम में आप भी अभियान का हिस्सा बनें और अपने फोटो हमें भेजें। यह इसलिए जरूरी है कि आपको देखकर दूसरे भी प्रेरित होकर बेजुबानों का सहारा बनेंगे।
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