जानवरों के क्लोन निर्माता डाक्टर मोतीलाल को पद्मश्री, जिन्होंने दुनिया को दी पशुओं में आइवीएफ तकनीक की सौगात
Padmashree Award 2022 डा. मोतीलाल मदन का नाम पद्मश्री के लिए चयनित। प्रतिष्ठित पशु-चिकित्सक और पुनरुत्पादक जैव-प्रौद्योगिकीविद् प्रो. डा. मोतीलाल मदन को मिलेगा पद्मश्री पुरस्कार। डा. मदन ने भैंसों में नई इन विट्रो गर्भाधान प्रौद्योगिकी और भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी पर किया उल्लेखनीय कार्य।
करनाल, [पवन शर्मा]। कर्ण नगरी का नाम एक बार फिर राष्ट्रीय परिदृश्य में गौरवान्वित हुआ है। पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित हुए यहां के प्रतिष्ठित पशु-चिकित्सक और पुनरुत्पादक जैव-प्रौद्योगिकीविद् प्रो. डा. मोतीलाल मदन की अनवरत यात्रा को नया आयाम मिला है। डा. मदन वही चर्चित शख्सियत हैं, जिन्होंने भैंसों में नई इन विट्रो गर्भाधान प्रौद्योगिकी (आईवीएफ) का प्रयोग करके दुनिया में पहली बार प्रथम नामक कटड़ा पैदा किया। आगे चलकर इस तकनीक का देश के पुनरुत्पादक अनुसंधान तथा विकास में बहुत प्रभाव पड़ा। इसी तरह भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी (ईटीटी) द्वारा उन्होंने एक ही मादा से एक वर्ष की अवधि के दौरान कई बछड़े उत्पादित करके अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की थी। आज इन दोनों तकनीक पर राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान सहित देश के तमाम प्रमुख अनुसंधान संस्थानों में गहनता से कार्य हो रहा है तो वहीं भारत सरकार ने भी इसके लिए विशेष परियोजना स्वीकृत की है।
करनाल के सेक्टर छह में रहने वाले डा. मदन ने जागरण से विशेष वार्ता में पद्मश्री सम्मान की बधाई स्वीकारते हुए बताया कि यकीनन यह ऐसी विशिष्ट उपलब्धि है, जिससे उन्हें और अधिक ऊर्जा एवं उत्साह से कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। हालांकि, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान से वह 1998 में ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद सेवा कार्यों से कभी एक क्षण के लिए निवृत्त नहीं हुए। एनडीआरआइ के पहले एनीमल फिजियोलोजी विभागाध्यक्ष रहे डा. मदान को वर्ष 2020 में हरियाणा का प्रतिष्ठित राज्यस्तरीय विज्ञान रत्न पुरस्कार भी मिल चुका है। राज्य का यह उच्चतम राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी पुरस्कार उस प्रख्यात वैज्ञानिक को प्रदान किया जाता है, जिन्होंने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया होता है। इस पुरस्कार के अंतर्गत उन्हें चार लाख रुपए का नकद पुरस्कार, एक प्रशस्ति पत्र और एक ट्राफी प्रदान हासिल हुआ था।
डा. मदन ने बताया कि वह आज भी अनुसंधान क्षेत्र में सक्रिय हैं। पशु व कृषि विज्ञानियों की अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी की दो बड़ी सोसायटी में संरक्षक होने के नाते वह निरंतर अपने विस्तृत अनुभव के आधार पर वांछित मार्गदर्शन देते रहते हैं। भारत सरकार सहित सभी प्रमुख संस्थानों की ओर से कोविड काल में नियमित रूप से आयोजित हो रहे वेबिनार में उनके व्याख्यान होते रहते हैं। भविष्य में भी जहां उनकी जरूरत होगी, वह सहर्ष उपस्थित रहेंगे।
ईटीटी और आइवीएफ पर किया काम
शोध एवं अनुसंधान में अनवरत सक्रिय डा. मदन के नाम उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त है। वह बताते हैं कि भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी यानि ईटीटी पर उन्होंने काफी काम किया। इस तकनीक की मदद से उन्होंने एक ही मादा से तब एक वर्ष की अवधि के दौरान 10 बछड़ों को उत्पादित किया था। इसके बाद यह सिलसिला और बेहतर ढंग से बढ़ाने में भी कारगर मदद मिली तो इसी क्रम में उन्होंने भैंसों पर नई इन विट्रो गर्भाधान प्रौद्योगिकी यानि आईवीएफ का सफल इस्तेमाल करके भी नया आयाम स्थापित किया था। डा. मदन और उनकी टीम ने ही दुनिया में पहली बार प्रथम नामक कटड़ा पैदा किया और आगे चलकर इस तकनीक का देश के पुनरुत्पादक अनुसंधान तथा विकास में बहुत प्रभाव पड़ा ।
उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त
डा.. मदन ने भारत में अनुसंधान के क्षेत्र में पशु शरीरक्रिया विज्ञान, अंतःस्त्राविका, पर्यावरण शरीरक्रिया विज्ञान और पुनरुत्पादन जैव-प्रौद्योगिकी में भी विशेष योगदान दिया है। उनके नाम से अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में ढाई सौ से अधिक प्रकाशन हैं। उन्होंने 12 से अधिक हार्मोन के लिए मवेशियों व भैंसों में सूक्ष्म-मात्रा निर्धारण प्रतिरक्षा-तकनीक विकसित की, जिससे प्रजनन क्षमता बढ़ाने में कारगर मदद मिली है। पशुओं की प्रजनन क्षमता, स्वास्थ्य रक्षा और रोग प्रतिरोधक क्षमता को लेकर भी उन्होने उल्लेखनीय अनुसंधान किया है, जिस पर आज एनडीआरआइ सहित देश के सभी प्रमुख पशु अनुसंधान संस्थानों में कार्य किया जा रहा है।
पुनरुत्पादक जैव प्रौद्योगिकी के जनक
एनडीआरआइ के प्रधान वैज्ञानिक डा. एके डांग ने अपनी और संस्थान के समस्त वैज्ञानिकों की ओर से इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए कहा है कि यह उनके लिए बेहद गर्व की बात है कि डा. मदन लंबे समय तक एनडीआरआइ के साथ रहे। उनकी सेवाओं और अनुसंधान का लाभ आज भी विज्ञानियों और अनुसंधानकर्ताओं को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि डा. मदन ने ही देश और दुनिया में भैंसों में भ्रूण क्लोनिंग का काम सफलतापूर्वक शुरू किया था, जिस कारण भारत में दुनिया की पहली क्लोन भैंस का जन्म हुआ। इस अतुलनीय और ऐतिहासिक योगदान के लिए उन्हें रिप्रोडक्टिव बायोटेक्नोलोली यानि पुनरुत्पादक जैव प्रौद्योगिकी में जनक के रूप में जाना जाता है।
दायित्व निर्वहन के दौरान मिले प्रतिष्ठित सम्मान
प्रो. मदन को उत्तरी अमेरिका के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित पशु-चिकित्सा संस्थान गुएल्फ़ कनाडा द्वारा डाक्टर आफ साइंस की डिग्री से भी सम्मानित किया गया। शिक्षाविद और अनुसंधानकर्ता डा. मदन ने विभिन्न प्रकार की कृषि-पारिस्थितिकी में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वह एफएओ व यूएनडीपी सलाहकार भी रहे हैं। चार विज्ञान अकादमियों के फेलो प्रो. मदन प्रतिष्ठित को आईसीएआर रफी अहमद किदवई पुरस्कार और हरिओम पुरस्कार सहित कई सर्वोच्च सम्मान मिले हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए उन्हें ओम प्रकाश भसीन पुरस्कार, डा. बीपी पाल पुरस्कार सहित राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी की फैलोशिप प्राप्त है। वह 1994 से 1995 के मध्य एनडीआरआइ के संयुक्त निदेशक अनुसंधान रहे। जबकि 1995 से 1999 के मध्य उन्होंने इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च में डिप्टी डायरेक्टर जनरल पद पर दायित्व निर्वहन किया। इसके अलावा वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय वेटरनरी साइंस यूनिवर्सिटी मथुरा के वाइंस चांसलर रहे। वहीं डा. पंजाब राव देशमुख कृषि विद्यापीठ और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय सहित विभिन्न प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में उन्होंने अलग अलग महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया।