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हर छोटी बात पर तंग करती थी सास, आखिरकार पति ने बच्चों का गला घोंटा, मैंने चार से पांच बार फंदा लगाया, भगवान ने मेरी जान नहीं ली : रेखा

दो ब'चों, पति को खोने के तीन दिन बाद रेखा ने हर उन सवालों का जवाब दिया, जो अब तक राज बने हुए थे। हर एक मिनट में आंखों से आंसू बह उठते।

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 09:59 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 09:59 AM (IST)
हर छोटी बात पर तंग करती थी सास, आखिरकार पति ने बच्चों का गला घोंटा, मैंने चार से पांच बार फंदा लगाया, भगवान ने मेरी जान नहीं ली : रेखा
हर छोटी बात पर तंग करती थी सास, आखिरकार पति ने बच्चों का गला घोंटा, मैंने चार से पांच बार फंदा लगाया, भगवान ने मेरी जान नहीं ली : रेखा

अजय, पानीपत : दो बच्चों, पति को खोने के तीन दिन बाद रेखा ने हर उन सवालों का जवाब दिया, जो अब तक राज बने हुए थे। हर एक मिनट में आंखों से आंसू बह उठते। दोनों बच्चों को किसने मारा, इस सवाल पर कहा कि पति ने दुपट्टे से गला घोंटा। फिर हमने एकसाथ फंदा लगा लिया। पर मैं बच गई..। गोविंदगढ़, मंडी पंजाब की रहने वाली रेखा ने रविवार को निजी अस्पताल में दैनिक जागरण से बात की। बता दें कि सेक्टर 11-12 में 15 वर्षीय लड़के वंश और 10 वर्षीय लड़की पुष्टि की गला घोंटकर हत्या कर दी थी। इसके बाद पति रितेश गर्ग और पत्‍‌नी रेखा फंदे पर लटक गए। स्क्रैप कारोबारी पति की मौत हो गई, फंदे से गिरने की वजह से पत्‍‌नी बच गई।

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सवाल : आपके घर में ऐसी क्या परेशानी थी कि ये कदम उठा लिाय?

जवाब : मेरे सास-ससुर, मेरे पति को नाजायज औलाद मानते थे। वे उन्हें अपनी संतान मानने के लिए ही तैयार नहीं थे। सास कहती थी ये मेरा बेटा नहीं। ससुर हमें घर से निकलने के लिए कहते थे। तुम्हारा यहां कोई नहीं है। जाओ यहां से। चाहे जहां मर्जी जाकर मरो। सवाल : इतने वर्ष ससुराल में कैसे रहे?

जवाब : चौदह साल मैंने जैसे-तैसे करके उस घर में निकाले। सोचते थे हमारे बड़े हैं। कभी तो समझेंगे। उन्होंने नहीं समझा। (इतना कहते हुए रेखा की आंखें भर आई) इतने समय से ये (रितेश गर्ग) और मैं खूब डिप्रेशन में थे। हमारी दवाइयां भी चल रही हैं लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। मां कहती थी टेंशन भी कोई बीमारी है। ये सब कुछ जान-बूझकर कर रहे हैं। सवाल : मतलब आप लोग उनके सामने एक्टिंग कर रहे है?

जवाब : हां, पर ऐसा नहीं था। (इतना बताते ही आंखों से आंसू बहने लगे)..डिप्रेशन हो चुका था। हमें बीमार देखकर कहते थे, कुछ नहीं हो रहा। सवाल : क्या जेठ-जेठानी भी आपको परेशान करते थे?

जवाब : नहीं। उन्हें पता था कि वो (सास-ससुर) हमारे साथ गलत कर रहे हैं। परेशान वो भी थे। अब मैं क्या बताऊं (आंखें बंद कर ली)। खाने-पीने, हर चीज में दिक्कत थी। हालांकि घर में कोई कमी नहीं है। थोड़ा सा दूध फालतू ले लेते तो कहते थे कि इतना दूध कहां गया। सब चीज है घर में। रोटी पानी के लिए हम लोग तरसते थे। सास-ससुर दूसरे लोगों को तो जीवन देने के लिए भी तैयार हैं। बुरा हाल कर दिया उन्होंने हमारा। सवाल : तो क्या पानीपत में आकर भी परेशान रहे?

जवाब : छह महीने से हम पानीपत शिफ्ट हो गए थे। वो हमें कैसे भी नहीं जीने देते थे। यहां आकर भी उन्होंने हमें छोड़ा नहीं। यहां आकर भी सास यही बातें कहती रही कि तू जबरदस्ती पैदा हो गया। ससुर ने कहा, तू अपने आधार और पैन कार्ड सहित अन्य सभी कार्डों में से सन ऑफ हटवा दे। मैं तेरा कुछ नहीं लगता। सवाल : तो क्या इसी वजह से आपके पति परेशान रहते थे?

जवाब : बहुत डिप्रेशन में थे। सारी रिपोर्ट है मेरे पास इसकी। लुधियाना से हमारा दोनों का ट्रीटमेंट चल रहा था। अभी 8 जुलाई को एकदम से मुझे पथरी का बहुत तेज दर्द हुआ तो संडे होने के कारण मैंने पानीपत से प्रारंभिक उपचार लिया। अगले दिन अलसुबह दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल चले गए, क्योंकि वहां मेरा पहले भी ऑपरेशन हुआ था। शाम को टेस्ट रिपोर्ट आने पर डॉक्टरों ने सर्जरी कराने की सलाह दी। 10 जुलाई को मेरा ऑपरेशन हो गया। ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर के जानकार भी मेरे ससुराल की तरफ से थे। उन्होंने आगे बोला ही होगा कि ऐसे-ऐसे हुआ है। मेरे घरवालों का ही सपोर्ट था कि मैं इतना टाइम निकाल गई, वरना मैं नहीं निकाल पाती। सवाल : घर में घटना के दौरान कोई और भी मौजूद था?

जवाब : नहीं, हम चारों ही थे। हम किराए पर रहते थे। सवाल : उन लोगों ने आपको घर से निकलने के लिए बाध्य किया था?

जवाब : वो लोग हमेशा कहते थे कि यहां से चले जाओ। हमने सोचा कम से कम निकलो, बच्चे भी बड़े हो रहे हैं। जीने नहीं दिया कैसे भी। (दोबारा रोने लगी) सवाल : बच्चों के साथ क्या हुआ, कुछ याद है आपको?

जवाब : बच्चों को गला घोंटकर मार दिया (दोबारा रोने लगी)। हसबैंड ने मारा, दुपट्टे से। सवाल : इसके बाद क्या किया आपने?

जवाब : फिर हम दोनों ने फंदा लगा लिया। वो लटक गए, खत्म हो गए। मैं गिर गई नीचे (रोने लगी)। फिर जब मुझे होश आया मैंने फिर से लटकने का प्रयास किया। तीन-चार बार कोशिश की। उसके बाद खड़े होने की शक्ति नहीं रह गई क्योंकि मेरा पैर फ्रैक्चर हो गया था। फिर खिड़की से दुपट्टे को कसा. किचन के दरवाजे से भी कोशिश की। भगवान ने मेरी जान नहीं ली।


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