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दावे तो दावे हैं, दावों का क्या, पढ़ें कैसे सरकारी योजनाओं पर हो रही खानापूर्ति

जन कल्‍याणकारी योजनाओं के नाम पर दावे तो कई हैं। लेकिन इन दावों में कितनी सच्‍चाई है ये तो धरातल पर पड़ताल के बाद ही पता चलता है। सरकार की इन योजनाओं के नाम पर खानापूर्ति हो रही है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Sat, 15 Jan 2022 03:18 PM (IST)Updated: Sat, 15 Jan 2022 03:18 PM (IST)
दावे तो दावे हैं, दावों का क्या, पढ़ें कैसे सरकारी योजनाओं पर हो रही खानापूर्ति
मांगों को लेकर आंगनबाड़ी वर्करों और हेल्परों का करनाल में प्रदर्शन।

जागरण संवाददाता, [पवन शर्मा]। सरकार की मंशा पर तो किसी को शक-शुबहा नहीं हैं लेकिन उन साहब लोगों का क्या करें, जो आदत से इतने मजबूर हो चुके हैं कि सरकारी योजनाओं को सिरे चढ़ाने के नाम पर खानापूर्ति में कोई कोर-कसर नहीं रख छोड़ते। जिक्र उन अंत्योदय मेलों का है, जिनके बारे में इतने जोर-शोर से प्रचार किया गया कि यूं लगने लगा कि अब तो जिले में हर बेरोजगार को कोई न कोई काम जरूर मिल जाएगा।

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दावे तो यहां तक हुए कि आला अफसर खुद इस काम की निगरानी करें और किसी भी स्तर पर कोई कमी न छोड़ें। लघु सचिवालय स्थित सभागार में समीक्षा बैठकों के बहाने इस काम को अंजाम भी दिया गया लेकिन कड़वी हकीकत यह है कि जिले के तमाम खंडों में ये मेले लगने के बावजूद अभी भी ऐसे युवाओं की फेहरिस्त खासी लंबी है, जो एक अदद रोजगार के लिए तरस रहे हैं।

हमको किसी का डर नहीं...!

कोरोना महामारी को लेकर चारों तरफ बेचैनी और चिंता का माहौल है लेकिन सर्द मौसम में भी पूरे जोशोखरोश से अपने हक-हकूक की आवाज बुलंद कर रहीं आंगनवाड़ी वर्करों तथा हेल्परों के लिए शायद महामारी के कोई मायने ही नहीं हैं। लिहाजा, वे न केवल पूरी तरह बेखौफ अंदाज में बार-बार सड़कों पर उतर रही हैं बल्कि शारीरिक दूरी से लेकर मास्क लगाने तक के नियम-कायदे भी सिरे से भुला चुकी हैं। बची-खुची कसर प्रशासन के ढुलमुल रवैये से पूरी हो रही है। आलम यह है कि सीएम सिटी में दो बार ऐसे हालात बन चुके हैं, जब हजारों की तादाद में जुटीं इन वर्करों व हेल्परों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई के लिए प्रशासन पूरी तरह लाचार अवस्था में नजर आया। नतीजतन, अपने आकाओं की चेतावनी को नजरअंदाज कर प्रशासनिक टीम के अन्य सदस्य भी जेबों में ही हाथ डाल दाएं-बाएं होते रहे।

बेहद खतरनाक है यह तिकड़ी

क्रिकेट के खेल में हैट्रिक या तिकड़ी लगाना शान की बात समझा जाता है लेकिन जब से तीसरी लहर की शक्ल में कोरोना वायरस ने यह पड़ाव तय किया है, सबका हाल खराब है। देश-प्रदेश के अन्य शहरों में तो यह महामारी ङ्क्षचता बढ़ा ही रही है वहीं कर्ण नगरी में हालात दिनोंदिन बेहद संवेदनशील होते चले जा रहे हैं। नतीजतन, तमाम किस्म की पाबंदियों का पहरा तो अवश्य लगा दिया गया लेकिन इसका फिलहाल कोई खास असर नजर नहीं आ रहा। आलम यह है कि शहर के तमाम प्रमुख बाजारों से लेकर गलियों, मोहल्लों तक में भीड़ कम होने का नाम ले रही तो सरकारी कार्यालयों में भी लापरवाही चरम पर है। जाहिर है कि चारों तरफ नजर आती यह घोर बेपरवाही साफ इशारा कर रही है कि जितना नुकसान महामारी के कारण हो रहा है, उससे कहीं अधिक के लिए खुद आम लोग भी पूरी तरह जिम्मेदार हैं।

...अब दूर नहीं है मंजिल

स्वच्छ सर्वेक्षण के पिछले नतीजों में हम बेशक फिसड्डी रहे लेकिन इस बार तस्वीर में नए रंग भरने के लिए नगर निगम का पूरा अमला एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। यह बात दीगर है कि जनता की भागीदारी अभी और अधिक बढ़ाने की प्रबल आवश्यकता है ताकि समवेत प्रयासों की बदौलत टाप थ्री सूची में आने का चिरप्रतीक्षित लक्ष्य हासिल किया जा सके। सुखद पहलू यह है कि कुछ क्षेत्रों से इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए भी जा रहे हैं। मसलन, जहां शहर में अब कुछ वार्डों को कचरामुक्त बनाने में सफलता मिल चुकी है तो वहीं दवा कारोबारियों सहित समाज के अलग अलग वर्ग भी अपने घरों या प्रतिष्ठानों को कूड़ारहित बनाने के लिए नगर निगम का साथ दे रहे हैं। इससे अन्य लोगों तक भी अच्छा संदेश पहुंच रहा है, जिससे उम्मीद तो बंधी है कि सांझा प्रयास रंग लाए तो मंजिल दूर नहीं होगी।


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