कुरुक्षेत्र [जगमहेंद्र सरोहा]। मेरे पिता ने मुझे हॉकी में विश्व की बेस्ट प्लेयर बनाने का सपना देखा था। उस वक्त मेरी उम्र भी इतनी नहीं थी। मैंने अपने पिता के सपने को अपना सपना बनाया। मैं पांचवीं कक्षा में पढ़ाई करते वक्त हाकी के मैदान में उतर आई थी। शुरुआत में मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। कई बार मन भी घबराया, लेकिन मेरे पिता रामपाल ने मुझे हौसला दिया। मैं आज भारतीय हॉकी टीम की कप्तान अपने पिता रामपाल के सहयोग से हूं। वे मुझे हॉकी के मैदान तक नहीं लाते तो मैं आज यहां तक नहीं पहुंच पाती। यह कहना है भारतीय महिला हाकी टीम की कप्तान रानी रामपाल का।
रानी रामपाल ने बताया कि कुरुक्षेत्र के कस्बे शाहाबाद की लक्की कालोनी में रहती थी। अब दूसरी बार ओलंपिक खेलने का मौका मिला है। मुझे खेल पर ही पटियाला, पंजाब में साईं कोच की नौकरी मिली। मैं मात्र 16 वर्ष की आयु में भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए वर्ल्ड की बेस्ट इलेवन में शामिल हुईं।
बेटा व बेटी में नहीं समझा फर्क
रानी रामपाल ने बताया कि मेरे पिता रामपाल ने बेटा व बेटी में कभी फर्क नहीं समझा। वे हमेशा मुझे और भाई को आगे रखते थे। स्टेडियम तक लाते और ले जाते थे। टीवी पर खेलते देखते हैं और जीतने पर मुझसे अधिक खुश होते हैं। वे भगवान के सामने हर वक्त मेरे लिए प्रार्थना करते हैं। अब टोक्यो ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी मिली है। मेरे पिता इसमें गोल्ड के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। मेरे पिता ने ही मुझे कहा था कि वह एक दिन भारतीय हॉकी टीम की कप्तान जरूर बनेगी। मैंने आज अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम लगाया है।
पांचवीं कक्षा में हॉकी पकड़ी
रानी रामपाल ने बताया कि मैंने पांचवीं कक्षा में हॉकी कोच बलदेव सिंह के पास प्रशिक्षण लेना शुरू किया था। 16 वर्ष की आयु में भारतीय टीम में खेलना शुरू कर दिया था। मैं उस वक्त टीम में सबसे कम उम्र की खिलाड़ी थी। मुझे मेरे कोच बलदेव सिंह ने खेलते हुए गेंद को स्टिक पर चिपकाए रखने और पलक झपकते ही गोल करने के टिप्स दिए थे। मैंने अपने कोच से हॉकी व शरीर में संतुलन बनाकर रखना सीखा। वह इन सबके चलते ओलंपिक सहित कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी है। मेरे पिता ने मेरे खेल के शुरुआती दौर में गरीबी को कभी आगे नहीं आने दिया, बल्कि हर मुकाम तक पहुंचाने में पूरा सहयोग किया।