बेटी बचाओ का संदेश दे रहे रामनगर और जीतगढ़ गांव, बेटी होने पर दंपती होता सम्मानित
साल 1959 में बसे रामनगर-जीतगढ़ गांव को बेहतर लिंगानुपात और शराब बंदी के लिए जाना जाता है। गांव में लड़कियों की संख्या लड़कों से लगभग डेढ़ गुणा अधिक है।
पानीपत [राजकुमार]। करीब पचास साल पहले बसा गांव शहरों को टक्कर देने को तैयार है। यहां के लोगों ने जो पहल की आज सरकार में भी उसकी चर्चा है। फिर चाहे वो लिंगानुपात की बात हो या शराबबंदी की। सभी ग्रामीणों ने सहमति बनाकर इस पर सफलता हासिल की। अब दूसरे जिलों में इन गांवों का उदाहरण दिया जाता है।
साल 1959 में बसे रामनगर-जीतगढ़ गांव को बेहतर लिंगानुपात और शराब बंदी के लिए जाना जाता है। लिंगानुपात संबंधी बैठकों के दौरान इन गांवों की चर्चा जरूर होती है। गांव में लड़कियों की संख्या लड़कों से लगभग डेढ़ गुणा अधिक है। वर्ष 2016 में गढ़ी सिकंदरपुर की पंचायत से अलग होकर रामनगर-जीतगढ़ की पंचायत बनी।
महिला सरपंच ने संभाला
महिला मुकेश देवी ने सरपंच का पदभार संभाला। पंचों और ग्रामीणों की सर्वसम्मति से गांव में पूर्ण शराब बंदी लागू की। गांव में एक भी शराब का ठेका नहीं है। इसके अलावा हर साल 26 जनवरी को बेटी को जन्म देने वाले दंपती को सम्मानित किया जाता है।
आबादी : 1587
साक्षरता दर : 45 फीसद
इतिहास : शहर से 12 किलोमीटर दूर स्थित रामनगर-जीतगढ़ गांव 1959 में बसा था। इस दौरान यहां सारा जंगली इलाका था। ग्रामीणों ने जंगल साफ करके इसकी उपजाऊ भूमि पर खेती शुरू की। आज भी गांव के अधिकतर लोग खेतीबाड़ी पर निर्भर हैं। लगभग 15 साल पहले गांव में दुर्गा माता का मंदिर स्थापित किया गया। जिसके बाद से दोनों गांवों के ग्रामीण इसी मंदिर में पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं।
समस्या नं 1 : गली में बंधते है मवेशी, नालियां होती है जाम गांव की गलियों में अक्सर ग्रामीण दुधारू पशु बांध देते हैं। इससे राहगीरों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वहीं ये पशु दिनभर गलियों में गोबर करके गंदगी फैलाते हैं। नियमित सफाई न होने के कारण अक्सर नालियां जाम हो जाती हैं।
समस्या नं 2 : मुख्य नाला नहीं होने के कारण पानी निकासी ठप घरों से निकलने वाले गंदे पानी की निकासी के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। गांव में मुख्य नाला न होने के कारण नालियों का पानी गलियों में जमा हो जाता है। इससे गांव में बीमारियां फैलने का खतरा रहता है।
समस्या नं 3 : काफी समय से उठ रही ओवरब्रिज की मांग, नहीं हुई सुनवाई ग्रामीण काफी समय से दिल्ली-पैरलल नहर पर ओवरब्रिज बनाने की मांग उठा रहे हैं। इससे गांव असंध रोड से जुड़ेगा तो ग्रामीणों को काफी राहत मिलेगी। समय और पैसे का लाभ होगा। आरोप है कि अधिकारी सुनवाई नहीं कर रहे।
पंचायती जमीन बिना नहीं आमदनी, ग्रांट से हो रहे विकास कार्य
गांव की पंचायती जमीन नहीं होने से आमदनी के साधन नहीं है। सरकारी ग्रांट से विकास कार्य कराए जा रहे हैं। देखरेख के लिए ग्रामीणों से सहयोग की अपील की जाती है। गांव में अधिक से अधिक विकास कार्य कराने का प्रयास जारी है।
अशोक कुमार, सरपंच
पति निजी वाहनों का सहारा लेना मजबूरी
गांव में आज तक भी रोडवेज बस सेवा शुरू नहीं हुई। प्राइवेट ट्रांसपोर्ट वाहनों के इंतजार में अक्सर कई घंटे खराब हो जाते हैं। हर घर में निजी वाहन न होने के कारण काफी परेशानी होती है। कई बार मांग करने पर भी अधिकारियों ने सुनवाई नहीं की।
वेदपाल कश्यप, ग्रामीण
गांव में नहीं स्टेडियम की जमीन, युवा खिलाड़ी हुए मजबूर
गांव में खेल स्टेडियम की जमीन नहीं होने से खिलाड़ियों को काफी परेशानी होती है। खिलाड़ी दूसरे गांवों में जाकर अभ्यास करते हैं। प्रतिभा होने के बावजूद भी खिलाड़ी पिछड़ रहे हैं। सरकार को हर गांव में स्टेडियम बनाने का वादा पूरा करना चाहिए।
रामजुआरी, ब्लॉक समिति सदस्य
आज भी कुछ घरों में बिजली कनेक्शन नहीं
सन 1984 से पहले गांव में बिजली नहीं थी। तत्कालीन विधायक प्रसन्नी देवी ने गांव को बिजली और सड़क की सुविधा दी थी। आज भी गांव के कुछ घरों में बिजली कनेक्शन नहीं मिला है। अधिकारियों को घर-घर बिजली कनेक्शन देना चाहिए।
जिले सिंह कश्यप, ग्रामीण
एक कर्मचारी के जिम्मे दो गांवों की सफाई व्यवस्था
दोनों गांवों में मात्र एक सफाई कर्मचारी है। जो पूरे माह में भी गांव की सभी गलियों की सफाई नहीं कर पाता। नियमित सफाई नहीं होने से अक्सर गलियों में गंदगी पड़ी रहती है। अधिकारियों को सफाई कर्मचारियों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
सतबीर कश्यप, ग्रामीण
दो साल पहले हुई थी पानी गुणवत्ता की जांच
गांव में पानी का लेवल खराब है। लगभग दो साल पहले विभागीय अधिकारियों ने निजी और सरकारी ट्यूबवेलों के पानी की गुणवत्ता की जांच करके पानी की गुणवत्ता खराब होने की पुष्टि की थी। उसके बाद अधिकारियों ने कोई सुध नहीं ली। अब गांव के ट्यूबवेलों में साफ पानी नहीं आ रहा है।
गुलाब सिंह, जन प्रतिनिधि
गांव में नहीं सरकारी दवाखाना, दूसरे गांवों से लाते हैं दवा
गांव में आज तक भी सरकारी दवाखाना नहीं खुला है। गांव के लोगों को मजबूरन काबड़ी या आसन कलां गांव की पीएचसी से दवा लानी पड़ती है। आपातकालीन स्थिति और हादसा होने पर शहर जाने के अलावा और कोई चारा नहीं होता।
रामजुआरी, नंबरदार
पंचायती खर्च पर डिजीटल शिक्षा हासिल कर रहे युवा
डिजीटल इंडिया अभियान के तहत गांव के स्कूली विद्यार्थियों को कंप्यूटर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। स्कूल के पुराने विद्यार्थियों को भी गांव की पंचायत के खर्चे पर कंप्यूटर चलाना सिखाया जाता है। ताकि युवाओं को ऑनलाइन सिस्टम की अधिक से अधिक जानकारी मिले।
सरपंच मुकेश देवी