गण को तंत्र की बनाया ताकत, पानीपत में एकजुटता के लिए छेड़ा ये युद्ध
पानीपत की डीसी सुमेधा कटारिया ने लोक प्रशासन के पद पर रहने के बावजूद लोगों से जुड़ी रहीं। गरीब व्यक्ति को वे अपनी ताकत मानती हैं। उन्होंने कई संस्थाओं को एकजुट किया।
पानीपत, [अरविन्द झा]। तंत्र में ऊंचे ओहदे पर पहुंचने वाले आमतौर पर गण को भूल जाते हैं, लेकिन पानीपत की डीसी सुमेधा कटारिया ने गण को ही अपनी ताकत बना लिया। प्रशासनिक अधिकारियों के अमले से कहीं अधिक जीवंत उनके गण का तंत्र है। राहगीरी इसका जीवंत उदाहरण है। इस आयोजन को सफल बनाने के लिए डीसी खुद रात 12 से 1 बजे तक जुटी रहती हैं। सुबह पांच बजे कार्यक्रम में पहुंच जाती हैं।
मूल रूप से अबोहर (पंजाब) की रहने वाली डीसी सुमेधा गरीब व्यक्ति को ताकत मानती हैं, जो उम्मीद की नजरों से तंत्र की तरफ देखता है। तंत्र के पास उसकीसमस्या का समाधान बेशक न हो, लेकिन उसकी बात सुन लेने मात्र से ही उनका दिल सुकून से भर जाता है। कुरुक्षेत्र में 17 वर्षों तक सेवा का उन्हें अवसर मिला। इस दौरान उन्होंने महाभारत काल के युद्धस्थल को गण के सहारे गीता स्थली के रूप में मशहूर बनाया।
कुरुक्षेत्र को दिलाया अंतराष्ट्रीय स्तर का दर्जा
बीडीओ के पद पर रहकर कुरुक्षेत्र में पहली गीता जयंती 1991 में मनाई। 25 साल में महोत्सव को अंतरराष्ट्रीय स्तर का दर्जा दिलाया। समाज के लिए इतना काम करने का उनका मकसद राजनीति में आना नहीं है। काम करने की कोशिश इसलिए करती हैं कि उन्हें यह सब करने का अवसर मिला है।
मेहनतकश लोग पानीपत की पहचान
डीसी सुमेधा का मानना है कि पानीपत की पहचान लड़ाई से नहीं, बल्कि उन मेहनतकश लोगों से जो 1947 में बंटवारे के बाद यहां आकर बस गए। पानीपत को आबाद किया। यहां के उद्योगपति मेहनत की बदौलत दुनिया में जाने जाते हैं।
गण के लिए ये पांच बड़े कार्य किए
- कॉलेज के दिनों में 1980 में राष्ट्रीय सेवा योजना के बच्चों को लीड करने का अवसर मिला। बच्चों के मार्गदर्शन को देशभक्ति मानती हैं। वो बच्चे आज जब उनसे संपर्क करते हैं तो गर्व महसूस करती हैं।
- बीडीओ के पद पर 1989 में पहली पोस्टिंग कैथल के गुहला में हुई। स्वच्छता अभियान से जुडऩे का उन्हें अवसर मिला। गण को साथ लेकर इसे पूरा किया।
- हरियाणा के रजत जयंती वर्ष में 1991 में पहली बार गीता जयंती का आयोजन किया।
- 2005-07 के बीच पिहोवा में एसडीएम के पद पर रहते हुए 5100 फीट लंबे क्रीक (नाला) के सहारे सरस्वती का जीर्णोद्धार कार्य शुरू किया। इस रास्ते से अतिक्रमण को हटवाया। पिहोवा से सीख मिली कि मेहनत से कुछ भी असंभव नहीं है।
- 2008 में एडीसी में पदोन्नति मिलते ही पहले ही दिन पूर्ण स्वच्छता कैंपेन हाथ लगा। 375 में से 300 पंचायतों को निर्मल ग्राम बना दिया। जो 75 पंचायतें छूट गईं, उनमें से 64 को 2016 में डीसी रहते पूरा करा दिया।
घर के माहौल से साहित्य में रूचि
अबोहर में डीसी सुमेधा कटारिया के घर का माहौल अच्छा रहने से साहित्य में उनकी रुचि जगी। छठी जमात में पहली बार डायरी लिखी। पिता से अंग्रेजी साहित्य सीखने का अवसर मिला। नौकरी में रहकर 1989 में हिंदी में कविता लिखने लगीं। सात पुस्तकें लिख चुकीं डीसी की पहली पुस्तक अमलतास है जो उन्होंने 1996 में लिखी। 2011 से ब्लॉग भी लिखती हैं।
सेवा के 707 बहुमूल्य दिन
डीसी सुमेधा ने बताया कि दो वर्ष का सेवा विस्तार मिला है। 31 दिसंबर 2020 को सेवाकाल पूरा होगा। अब 707 दिन शेष हैं। ये परिवेश मेरा देश है। ऐसा प्रयास रहेगा कि पानीपत को अपना सर्वश्रेष्ठ दे दूं।