निजी स्कूल संचालकों ने बनाई रणनीति, 4 को करनाल से संघर्ष का शंखनाद
निजी स्कूल संचालकों ने अब संघर्ष की तैयारी शुरू कर दी है। काफी समय से हो रही अनदेखी की वजह से रणनीति बनाई है। हरियाणा के करनाल से निजी स्कूल संचालक इसका शंखनाद चार दिसंबर को करने जा रहे हैं।
पानीपत/करनाल, जेएनएन। कोरोना काल में परेशानियों से जूझते रहे निजी स्कूल संचालकों को अनलॉक के दौर में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि वर्तमान शैक्षिक सत्र शुरू हुए खासा समय बीतने के बावजूद उनकी समस्याओं के प्रति शासन प्रशासन स्तर से अनदेखी बरकरार है। नतीजतन, इस स्थिति के चलते वे एकजुट होकर संघर्ष की राह अपनाने पर विचार करेंगे। चार दिसंबर को रणनीति तैयार की जाएगी।
कोरोना काल के दौरान स्कूल बंद रहने से अन्य वर्गों के अलावा निजी स्कूल संचालकों को भी आर्थिक रूप से समस्याओं से जूझना पड़ा। स्कूल नहीं खुलने के बावजूद अलग अलग प्रकार के मदों में बरकरार व्यय का बोझ सह रहे स्कूल संचालकों को उम्मीद थी कि लॉकडाउन के बाद अनलॉक के दाैर में स्कूल खुलने से जहां उन्हें राहत मिलेगी वहीं प्रदेश सरकार की ओर से भी उनकी स्थिति को देखते हुए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। लेकिन इससे ठीक उलट हालात होने के चलते वे परेशान होकर आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहे हैं।
इसे लेकर चार दिसंबर को करनाल में पूरे प्रदेश के निजी स्कूल संचालकों ने एकजुट होकर रणनीति तैयार करने और विरोध प्रदर्शन करके अपना रोष जताने का निर्णय लिया है। इसके तहत ऑल हरियाणा प्राइवेट स्कूल संघ की ओर से सेक्टर-आठ स्थित राजपूत धर्मशाला में बैठक बुलाई गई है। इसके फौरन बाद समस्त निजी स्कूल संचालक विरोध प्रदर्शन करेंगे और फिर जिला उपायुक्त के मार्फत मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नाम ज्ञापन भेजा जाएगा। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र नांदल के नेतृत्व में यह प्रदर्शन किया जाएगा। यदि इसके बाद भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आपसी सहमति के आधार पर निर्णायक संघर्ष की रणनीति को अमली जामा पहना दिया जाएगा।
फंसा है मान्यता का पेच
निजी स्कूल संचालकों को चिंता सता रही है कि नया सत्र शुरू हुए काफी समय बीत चुका है और शैक्षिक क्रियाकलाप अभी तक पटरी पर नहीं लौट सका है। आलम यह है कि बोर्ड परीक्षाओं के लिए भी तैयारियां शुरू हो गई है और इस प्रक्रिया के बावजूद कई स्कूलों की मान्यता आगे बढ़ाने या संचालन के लिए विभागीय स्तर से अनुमति दिए जाने का मामला जस का तस अधर में ही लटका हुआ है। इस ओर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है ताकि ऐसे हालात के चलते छात्र-छात्राओं और अभिभावकों को परेशानियों का सामना न करना पड़े। संगठन के पदाधिकारियों का दावा है कि ऐसे स्कूलों की संख्या अच्छी-खासी है, जिनकी मान्यता अवधि आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में काफी समय से पेच फंसा हुआ है। लिहाजा, बच्चों का भविष्य बनाने के लिए सरकार अविलंब इस ओर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान दे।
ये हैं स्कूल संचालकों की प्रमुख मांगें
--अस्थाई मान्यता व अनुमति प्राप्त स्कूलों को स्थाई मान्यता दी जाए।
--स्कूलों की भूमि खरीद और भवन निर्माण के नियमों को सरल किया जाए।
--अलग अलग स्तर पर किए जा रहे स्कूल संचालकों के उत्पीड़न पर रोक लगे।
--कोरोना काल में हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए राहत दी जाए।
--अर्से से लंबित मांगों की अनदेखी बंद करके प्रदेश सरकार जरूरी कदम उठाए।