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अस्पतालों में सुरक्षित नहीं जननी, डिलीवरी के लिए बेहतर इलाज नहीं मिलने से लोगों का सरकारी तंत्र पर से कम हुआ विश्वास

जिले में कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कालेज सहित 36 जगहों पर डिलीवरी हट बनाए गए इमरजेंसी में सुरक्षित डिलीवरी तो दूर पेट के दर्द तक का इलाज नहीं। हर माह होती हैं औसत 2500 डिलीवरी जिसमें 45 फीसद निजी अस्पतालों में हो रही सरकारी तंत्र पर लोगों का कम विश्वास।

By Pankaj KumarEdited By: Published: Tue, 22 Dec 2020 12:47 PM (IST)Updated: Tue, 22 Dec 2020 12:47 PM (IST)
अस्पतालों में सुरक्षित नहीं जननी, डिलीवरी के लिए बेहतर इलाज नहीं मिलने से लोगों का सरकारी तंत्र पर से कम हुआ विश्वास
सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज नहीं मिलने से निजी अस्पतालों की ओर रुख कर रहे मरीज।

करनाल, जेएनएन। जननी सुरक्षित नहीं है। क्योंकि इमरजेंसी में जहां पेट के दर्द तक का इलाज संभव ना हो सुरक्षित डिलीवरी की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है? सुरक्षित डिलीवरी के लिए गर्भवती महिलाओं को इलाज के नाम पर जो कठिन परीक्षा देनी पड़ती है वह बेहद पीड़ादायक है। वह भले ही अल्ट्रासाउंड के लिए रातभर कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कालेज के बाहर लाइन में हो? ओपीडी के रजिस्ट्रेशन के लिए घंटो लाइन में लगने की बात हो या फिर फार्मेसी काउंटर पर दवाई पूरी ना मिलने की घटना हो? यह तमाम सवाल उन दावों की पोल खोलते हैं जो सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर सुरक्षित डिलीवरी की बात करते हैं।

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हर माह 2500 डिलीवरी, जिसमें से 40 प्रतिशत निजी अस्पतालों में

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि जिले में हर माह 2500 डिलीवरी होती हैं। जिसमें से 40 प्रतिशत निजी अस्पतालों में हो रही है। यह स्थिति तब है जब सरकार ने कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कालेज सहित 36 डिलीवरी हट बनाए हैं। निजी अस्पतालों में इतने बड़े स्तर पर हो रही डिलीवरी अपने आप में स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रही है।

इमरजेंसी में नहीं निजी अस्पताल के अलावा कोई विकल्प नहीं

यदि किसी गर्भवती महिला की रात के समय तबीयत खराब हो गई तो उसके पास निजी अस्पताल में जाने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं है। क्योंकि मेडिकल कालेज सहित सभी 36 डिलीवरी हटों पर इमरजेंसी में अल्ट्रासाउंड करना पड़ जाए तो इसकी व्यवस्था नहीं है।

बड़ा रिस्की है सरकारी व्यवस्था विश्वास

निजी अस्पताल में डिलीवरी हट पर गायनी डॉक्टर, एसिस्टेंट, अल्ट्रासाउंड, दवाईयों के अलावा सभी प्रकार की व्यवस्था होती है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग में मेडिकल कालेज को छोड़ दिया जाए तो प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर स्टाफ नर्स के भरोसे डिलीवरी होती हैं। जो व्यवस्था नार्म्स के अनुसार होनी चाहिए वह नहीं होती है। सरकारी आंकड़े भी बताते हैं हर साल 30 गर्भवती महिलाओं की मौत समय पर इलाज ना मिलने के कारण हो जाती है। ऐसे में सरकारी तंत्र पर विश्वास बड़ा रिस्की हो जाता है।

चिकित्सकों की कमी जल्द होगी पूरी

हमारे पास स्त्री रोग विशेषज्ञों की कमी है। इस संबंध में मुख्यालय को पत्र लिखा गया है। सीमित स्टाफ व संसाधनों के बीच लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा देने का प्रयास किया जा रहा है। यह गंभीर समस्या है। हमारी प्राथमिकता है कि जननी सुरक्षित हो।

- डॉ. योगेश शर्मा, सिविल सर्जन करनाल।


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