यमुना में मंदिर की संभावना, फरीदपुर में शिवलिंग और नंदी की मूर्ति के बाद मिलीं और भी ईंटें Panipat News
गांव फरीदपुर में शिवलिंग की जांच करने पुरातत्व विभाग की टीम पहुंची। उन्होंने खदान की भी खोदाई की। वहां पर मंदिर के अवशेष से जुड़ीं ईंटें मिलीं।
पानीपत/करनाल, जेएनएन। करनाल के घरौंडा में प्राचीन मंदिर होने की संभावना है। खोदाई में मिले शिवलिंग और नंदी की मूर्ति के बाद ईंटों का मिलना इस ओर संकेत दे रहा है। हालांकि पुरातत्व विभाग की जांच अभी जारी है। खदान में खोदाई के दौरान ये भी संकेत मिले हैं कि यमुना में मंदिर हो सकता है या फिर ईंटें और मूर्ति बहकर भी आई हो। पुरातत्व विभाग की मानें तो ईंट कुषाण काल की और मूर्ति व अन्य अवशेष राजपूत से संबंधित हैं।
गांव फरीदपुर के पास यमुना क्षेत्र में शिवलिंग व नंदी मिलने के दो सप्ताह के बाद पुरातत्व विभाग ने यमुना में खोदाई का काम शुरू किया। पुरातत्व विभाग व खंड विकास एवं पंचायत विभाग के अधिकारियों की देखरेख में पोपलेन से खोदाई करवाई गई। इस दौरान कुछ और ईंटें मिलीं। रेत की ऊंचाई होने से खोदाई में परेशानी हुई। ऐसे में अधिकारियों को रेत हटवाने को कहा गया है। मंगलवार से दोबारा खोदाई शुरू होगी।
मूर्ति की भी जांच हुई
टीम गांव में शिवलिंग व नंदी के साथ-साथ पिलरों की भी जांच की। पुरातत्व विभाग की टीम ने बताया कि यमुना में मंदिर था या नहीं, इसका कोई अनुमान नहीं है। ईटों पर किसी प्रकार की मिट्टी या चूना दिखाई नहीं दे रहा है। ये भी हो सकता है कि शिवलिंग, नंदी व ईटें बहकर आई हों।
खदान की खोदाई में मिली थी मूर्ति और अवशेष
लगभग दो सप्ताह पहले गांव फरीदपुर के पास यमुना में रेत की खुदाई का कार्य चल रहा था। इसी दौरान पोपलेन के ड्राइवर ने रेत में एक शिवलिंग, नंदी व पिलर दिखाई दिए। पुराने शिवलिंग व नंदी मिलने की सूचना ग्रामीणों को मिली तो ग्रामीणों ने उनकी स्थापना गांव के मंदिर करवा दी। बाद में प्रदेश मुख्यमंत्री मनोहर लाल व विधायक हरविंद्र कल्याण ने गांव में दौरा किया और शिवलिंग की पूजा अर्चना की थी। मुख्यमंत्री ने यमुना क्षेत्र में खुदाई करवाने का आश्वासन दिया था।
स्तंभों का निरीक्षण किया गया
यमुना क्षेत्र में बृहस्पतिवार को पुरातत्व विभाग सहायक निदेशक राजवेंद्र, खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी के सचिव राजेश रोहिला, सचिव सोनू के नेतृत्व में खुदाई की गई। लगभग दो घंटे तक खुदाई का कार्य चला। इस दौरान विभागीय अधिकारियों को कुछ ईंटें मिली है। बाद में अधिकारियों व कर्मचारियों का दल गांव में पहुंचा और शिवलिंग व नंदी के साथ-साथ स्तंभों का निरीक्षण किया। अधिकारियों के मुताबिक, पूरे मामले की जांच नहीं हो पाती, तब तक किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं कर सकते।
आकृतियां राजपूत काल से संबंधित
पुरातत्व विभाग के अधिकारी मानते है कि स्तंभों पर जो आकृतियां मिली हैं, वह आठवीं-नौवीं व 11वीं-12वीं शताब्दी के बीच राजपूत काल दिखाई पड़ती हैं। ईंट साइट से मिली है, अनुमान है कि वे कुषाण काल की है, जबकि शिवलिंग व अन्य अवशेष राजपूत से संबंधित हैं। दोनों एक जगह पर कैसे आए इसको लेकर भी अध्ययन किया जाएगा। सहायक निदेशक राजवेंद्र बताते है कि आर्ट, आर्किटेक्चर और आइकेनोग्राफी के आधार पर इन सभी वस्तुओं का अध्ययन किया जाएगा। फिलहाल मैटिरियल उपलब्ध नहीं है, उस मैटिरियल को निकालने के लिए खान में मिट्टी व रेत को हटाने का काम चल रहा है। अध्ययन के बाद ही पता चल पाएगा कि वास्तविक स्थिति क्या थी और पौराणिक अवशेष व ईंटें एक-दूसरे से मेल खाती है या नहीं।