निगम की सियासी जंग हाई कोर्ट तक पहुंची, इस आदेश ने सरकार को सकते में डाला
हाई कोर्ट ने कहा कि नए सिरे से आपत्तियों की सुनवाई करें या फिर फुल बेंच में केस भेजें। एडवोकेट जनरल ने शुक्रवार तक का मांगा समय। डिविजन बेंच में राजकमल गर्ग की याचिका पर सुनवाई की।
जागरण संवाददाता, पानीपत : नगर निगम की वार्डबंदी पर शुरू हुई सियासत आखिरकार कानूनी पेंच में फंस गई है। हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने राजकमल गर्ग की याचिका पर सरकार के सामने दो विकल्प रखे हैं। हाई कोर्ट ने साफ कहा कि वार्डबंदी में दावे और आपत्तियों पर फैसला लेने का अधिकार डीसी को नहीं है। सरकार के सचिव को ही इन पर फैसला लेना होता है। सचिव को दावे और आपत्तियों की अपने स्तर पर सुनवाई करनी होगी। सरकार इसी वार्डबंदी को रखना चाहती है तो वे इस केस को हाई कोर्ट की फुल बेंच में भेजे। एडवोकेट जनरल ने इन दोनों में से एक विकल्प के लिए हाई कोर्ट से शुक्रवार तक का समय मांगा है। कानूनी विशेषज्ञों की मानें तो हाईकोर्ट के इस कदम से नगर निगम का चुनाव कम से कम छह महीने आगे चला गया है।
याचिकाकर्ता किशनपुरा निवासी राजकमल गर्ग ने बताया कि हाई कोर्ट की डिविजन बेंच जस्टिस राजेश कुमार जैन और अनुपेंद्र ग्रेवाल की कोर्ट में सोमवार को इस मामले में सुनवाई हुई। एडवोकेट अजय कंसल ने उनके पक्ष को मजबूती के साथ रखा, जबकि सरकार की तरफ से खुद एडवोकेट जनरल बीआर महाजन ने दलील पेश की।
विकल्प नंबर-एक
हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार नई वार्डबंदी को यथास्थिति में रखना चाहती है तो वे अपनी बेंच में इस पर फैसला नहीं दे सकते। वे हाई कोर्ट की फुल बेंच (तीन जजों की कोर्ट) में इस मामले को भेजेंगे। फुल बेंच इस पर सुनवाई करेगी। इसी फैसले को लागू करना होगा। एडवोकेट जनरल इस पर शुक्रवार को अपनी बात स्पष्ट करेंगे।
यह पड़ेगा असर
डिविजन बेंच के इस विकल्प को सरकार या एडवोकेट जनरल मानते हैं तो वे इसका केस बनाकर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास भेजेंगे। चीफ जस्टिस ही इसे फुल बेंच में भेजेंगे। इसमें एक महीना कम से कम लग सकता है। इसके बाद फुल बेंच अपना फैसला देगी। यह भी कोर्ट पर निर्भर है। जानकारों की मानें तो इसमें भी कम से कम छह महीने लग सकते हैं।
विकल्प नंबर-दो
सरकार को नगर निगम की वार्डबंदी का नोटिफिकेशन वापस लेना होगा। सरकार के सचिव दावे और आपत्तियों पर विचार करेंगे और वे इसके स्पीङ्क्षकग ऑर्डर पास करेंगे। सरकार को इन दावों और आपत्तियों को दोबारा सुनकर फैसला देना होगा। इसके बाद इन्हीं फैसलों के आधार पर वार्डों में बूथ और वोटों का निर्धारण किया जाएगा।
यह पड़ेगा असर
सरकार दूसरे विकल्प को भी अपनाती है तो दावे और आपत्तियों को सुनने के साथ नए सिरे से वार्डबंदी करने, वोट बनाने में समय लगेगा। यह समय सरकार और नगर निगम के हाथ में होगा। तब तक चुनाव नहीं हो सकेगा।
एक महीने से लगातार की जा रही सुनवाई
राजकमल गर्ग ने हाई कोर्ट में नगर निगम की वार्डबंदी को चैलेंज किया था। उनकी डबल बेंच में 11 सितंबर को याचिका स्वीकार की थी। इसमें पहली तारीख 11 अक्टूबर को लगाई गई। डबल बेंच ने मामले को गंभीर माना और इसकी अगली तारीख 17 अक्टूबर तय की गई। इसके बाद 23 और फिर 26 अक्टूबर लगाई गई। हाई कोर्ट ने इन तारीखों की सुनवाई कर 29 अक्टूबर को निर्धारित की थी। अब हाईकोर्ट से एडवोकेट जनरल ने शुक्रवार तक का समय मांगा है।
यह है आपत्ति - राजकमल
याचिकाकर्ता राजकमल गर्ग ने बताया कि नई वार्डबंदी के लिए एक एडहॉक कमेटी डीसी की चेयरमैनशिप में गठित की जाती है, जिसमें डीसी अपना प्रस्ताव देती है। एडहॉक कमेटी उसी अनुसार वार्डबंदी बनाती है। इसे अप्रूवल के लिए सरकार के पास भेजा जाता है। सरकार दावे और आपत्ति मांगती है। पानीपत नगर निगम में यहां तक सब कुछ नियमानुसार किया, लेकिन दावे और आपत्तियों को भी जिला में तीन अधिकारियों को नियुक्त कर निपटा दिया गया। उनका आरोप है कि डीसी की बजाय सरकार को इन दावे और आपत्तियों पर अंतिम निर्णय लेना होता है। डीसी को केवल इन विषयों को सरकार तक पहुंचाने का काम करना होता है।
इधर पार्षद और उसके पति की बूथों पर आपत्ति
वार्ड-14 की निवर्तमान पार्षद मंजू कादियान और उनके पति रामचंद्र कादियान ने सोमवार को नगर निगम आयुक्त डॉ. प्रियंका सोनी को अपनी शिकायत दी। उन्होंने कहा कि उनका क्षेत्र नई वार्डबंदी में वार्ड-16 में आता है। इसके बूथ नंबर-4, 6 और 7 की वोटों को तीन किलोमीटर दूर वार्ड-15 में जोड़ दिया है। जबकि उनके वार्ड में बूथ बनाने के लिए पर्याप्त जगह और स्कूल है। यह सब भाजपा के कई नेताओं के दबाव में किया गया है। इससे सीधे तौर पर करीब 4000 मतदाता प्रभावित होंगे। मतदाताओं में इससे8 रोष व्याप्त है और वे निगम चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को बहिष्कार करने को तैयार हैं।