श्राद्ध पक्ष में श्रद्धापूर्वक लगाएं त्रिवेणी, जानिए क्या है महत्व
पितृ पक्ष में पेड़ों काफी महत्व होता है। श्राद्ध पक्ष में त्रिवेणी के पौधे यानी पीपल नीम और बड़ लगाना फलदायक होता है। मान्यता है कि सभी देवी देवता और पूर्वज त्रिवेणी में वास करते हैं। आइए जानते हैं इसके और महत्व।
करनाल, जागरण संवाददाता। श्राद्ध पक्ष में त्रिवेणी यानी बड़, पीपल और नीम के पौधे एक साथ लगाना बहुत फलदायक है क्योंकि त्रिवेणी में सभी देवी-देवताओं व पितरों का वास होता है। इसी आह्वान के साथ पर्यावरण रक्षक संतोष यादव श्राद्ध पक्ष में जगह जगह त्रिवेणी लगाने का आह्वान कर रही हैं। उनका कहना है कि श्राद्ध पक्ष को नकारात्मक दृष्टि के बजाए सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए और अधिकतम त्रिवेणी लगाकर अपने देवी-देवताओं एवं पितरों को खुश रखना चाहिए। इन दिनों श्रद्धा एवं आध्यात्मिक भाव से त्रिवेणी लगाई जाए तो पुण्य मिलता है।
इसे लेकर वार्ता में उन्होंने कहा कि त्रिवेणी कोई साधारण प्रकार के तीन वृक्ष नहीं हैं बल्कि इसका अध्यात्मिक महत्व है। त्रिवेणी को शास्त्रों में स्थाई यज्ञ की संज्ञा दी गई है। जहां त्रिवेणी लगी होती है वहां हर पल-हर क्षण सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह चलता रहता है। हर वो इंसान जो श्रद्धाभाव एवं अध्यात्मिक भाव से इस त्रिवेणी को लगाता व लगवाता है या इसका पालन-पोषण करता है, उसका कोई भी सात्विक कर्म विफल नहीं होता।
क्या है त्रिवेणी
संतोष यादव बताती हैं क त्रिवेणी का आशय तीन प्रकार के पेड़ यानि बड़, नीम , पीपल से है। इन्हें पौधे के रूप में त्रिकोणीय आकार में लगाते हैं। थोड़ा बढ़ने पर यानि करीब छह या सात फुट होने पर इन्हें आपस में मिला देते हैं।जब इनका संगम हो जाता हैं तो यह त्रिवेणी कहलाती है। त्रिवेणी को खुले एवं सार्वजनिक स्थानों पर ही लगाया जाता है। जब त्रिवेणी लगाते हैं तो एक प्रकार से धरती मां के गर्भ से उल्लास छलकता हुआ महसूस होता है। त्रिवेणी वस्तुत: साधारण वृक्ष नहीं है बल्कि इसका विशेष आध्यात्मिक महत्व है।
क्या आध्यात्मिक महत्व
शास्त्रों का संदर्भ देते हुए पर्यावरण रक्षक संतोष यादव ने बताया कि त्रिवेणी में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का वास माना गया है। त्रिवेणी को लगाने, लगवाने या किसी भी तरह इसकी सेवा करने से समस्त देवता एवं पितृ स्वत: पूजित हो जाते हैं। जब भी कोई मांगलिक कारज करते हैं तो यज्ञ का आयोजन किया जाता है ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो और समस्त वातावरण शुद्ध हो जाए। इसी भांति त्रिवेणी को शास्त्रों में स्थायी यज्ञ की संज्ञा दी गयी है। जहां भी त्रिवेणी लगी होती है वहां हर पल हर क्षण सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बहता है। नज़ला, ज़ुकाम, छींकों से पीड़ित व्यक्ति यदि इसके नीचे बैठकर श्वास क्रिया यानि अनुलोम – विलोम, प्राणायाम करता है तो दमा तक ठीक हो जाता है। संकट से बचाने में इसका विशेष महत्व और यादेगान है। हर वो इंसान जो श्रद्धा व आध्यात्मिक भाव से त्रिवेणी लगाता या लगवाता है अथवा इसका पालन पोषण करता है तो उसका कोई भी सात्विक कर्म विफल नहीं होता।