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Pitru Paksha 2021: पिंडदान से पितरों को मिलेगा मोक्ष, जानिए पिंडारा तीर्थ का क्या है महत्व

विद्वान पंडित राजेश स्वरूप शास्त्री व रामचंद्र शास्त्री ने बताया कि जो दान व कर्म गयाजी में होता है वही पिंडारा तीर्थ में होता है। इसका शाब्दिक अर्थ पांडु पिंडारा है। यानि पांडवों ने पितरों के निमित पिंड रा में दिए। रा का अर्थ है देना। यानि पिंड दान देना।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sun, 19 Sep 2021 02:35 PM (IST)Updated: Sun, 19 Sep 2021 02:35 PM (IST)
Pitru Paksha 2021: पिंडदान से पितरों को मिलेगा मोक्ष, जानिए पिंडारा तीर्थ का क्या है महत्व
पितृ पक्ष में पिंडदान का है अपना विशेष महत्व।

जींद, जागरण संवाददाता। पितरों के लिए पिंडदान करने के लिए जींद जिले के पिंडारा तीर्थ का महत्व गयाजी तीर्थ के समान माना गया है। महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों ने पिंडारा तीर्थ पर अपने पितरों के पिंडदान किए थे। उससे पहले इस तीर्थ का नाम सोम तीर्थ था। पांडवों के पिंडदान करने के बाद यह तीर्थ पिंडतारक तीर्थ बन गया।

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पिंडारा का अर्थ  

विद्वान पंडित राजेश स्वरूप शास्त्री व रामचंद्र शास्त्री ने बताया कि जो दान व कर्म गयाजी में होता है, वही पिंडारा तीर्थ में होता है। इसका शाब्दिक अर्थ पांडु पिंडारा है। यानि पांडवों ने पितरों के निमित पिंड रा में दिए। रा का अर्थ है देना। यानि पिंड दान देना। पिंडारा नाम में ही उसका अर्थ छिपा हुआ है। पिंडारा तीर्थ पर पूरे हरियाणा सहित देशभर से लोग पिंडदान करने आते हैं। पितृ पक्ष के दौरान बीच के 15 दिन में कुछ नहीं होता। सिर्फ पितृ कर्म करवाने के लिए आ सकते हैं। अमावस्या के दिन ही पिंडदान होता है। शास्त्राें के अनुसार एक आदमी अपनी तीन पीढ़ी के निमित पिंडदान करने का अधिकारी है। तीन पीढ़ी अपनी और तीन पीढ़ी मामा की। अपनी पीढ़ी में पिता, पितामह व परपितामह यानि अपने पिता, दादा व परदादा और माता के कुल में मामा, मामामह व परमामाह यानि मामा, नाना व परनाना के पिंडदान कर सकता है। एक व्यक्ति की तीन पीढ़ी तक जल यानि दान मिलता है।

पांडवों के समय से शुरू हुई परंपरा  

पिंडारा में पिंडदान की परंपरा पांडवों के समय से शुरू हुई है। उससे पहले इसका नाम सोमतीर्थ था। महाभारत काल के बाद इसका नाम पिंडतारक तीर्थ हो गया। इसके अलग-अलग नामों की व्याख्या है। पिंड शरीर का नाम है। पांच महाभूतों पृथ्वी, जल, वायु, तेज, आकाश से शरीर बनता है। इस शरीर को पिंड कहते हैं। इस शरीर का ही दान करना है। चावल या अन्न से अपने पितरों के पिंड बनाकर यह भाव लेकर कि मैं उनका दान कर रहा हूं, जिससे उनकी मुक्ति प्राप्त हो। उनकी आत्मा भ्रमित हो रही है तो इस कर्म के बाद पितृों को मुक्ति मिल जाती है। पिंड दान कर्म पर आधारित है। कई पितरों को एक बार कर्म करवाने में ही मुक्ति मिल जाती है। जिस घर के अंदर रोग ज्यादा रहता हो, नुकसान ज्यादा रहता हो, जिस घर में कलह रहती है, इसका मतलब उस घर के पितृ रूष्ट हैं। जिस घर में बच्चे मिलकर चलते हों, धन की वर्षा होती है, इसका मतलब पितृ खुश हैं। क्योंकि पितृ अपने वंश की वृद्धि के लिए बहुत बड़ा योगदान है।


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