Move to Jagran APP

नौ ग्रहों की धरती हरियाणा की कपिस्‍थली, यहां युधिष्ठिर ने किया था पितरों का तर्पण

Pitru Paksha 2020 नौ ग्रहों की धरती कपिस्थली जहां मिली पांडव-कौरव पितरों को मुक्ति। अब कपिस्‍थली को कैथल के नाम से जाना जाता है। आदि शंकराचार्य से भी जुड़ा है नाता।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Wed, 09 Sep 2020 05:20 PM (IST)Updated: Wed, 09 Sep 2020 05:20 PM (IST)
नौ ग्रहों की धरती हरियाणा की कपिस्‍थली, यहां युधिष्ठिर ने किया था पितरों का तर्पण
नौ ग्रहों की धरती हरियाणा की कपिस्‍थली, यहां युधिष्ठिर ने किया था पितरों का तर्पण

पानीपत/कैथल, जेएनएन। आइये, आपको ले चलते हैं कपिस्‍थली। आज का कैथल। यह जगह खास इसलिए है क्‍योंकि धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र के बाद महाभारत युद्ध के दौरान और बाद के ज्यादातर घटनाक्रम इसी धरती पर हुए। गांव सेरधा हो या बहर-पिसौल। 3100 ई. पूर्व जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर ने युद्ध में मारे गए पित्तरों की आत्मा की शांति के लिए कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी।

prime article banner

इनमें सूर्य कुंड कैथल के केंद्र में माता गेट पर, शनि कुंड परशुराम चौक से आगे, शुक्र कुंड माता गेट के पास, गुरु कुंड परशुराम चौक से आगे बुध कुंड वाल्मीकि चौक की ओर और मंगल, राहु केतु कुंड पुरानी जेल के पास स्थापित हैं।

आदि शंकराचार्य ने रक्षा का निर्देश दिया था

687 ई. में आदि शंकराचार्य ने इस कुंडों को रक्षा का निर्देश अपने शिष्यों को दिया। 1860-1900 के बीच में शिष्यों ने इन कुंडों को काशी के दशनामी जूना अखाड़े को सौंप दिया। डेराबाबा परमहंस पुरी ने इन कुंडों की देखभाल शुरू की। उनकी मृत्यु के बाद जूना अखाड़े की गद्दी इन कुंडों की देखभाल करती रही। 2007 से अखाड़े के महाराज राजेश्वर पुरी इन कुंडों की देखरेख कर रहे हैं।

पांच कुंड लुप्‍त हो चुके हैं

विडंबना है कि बढ़ते अतिक्रमण के चलते नौ में से पांच कुंड लुप्त हो चुके हैं। शेष बचे कुंडों में सूर्य, शनि, बृहस्पति, बुध कुंड तो आज भी मौजूद हैं। चंद्र, मंगल, राहु, केतु, शुक्र कुंड अतिक्रमण में दब गए। सरकार और पुरातत्व विभाग की अनदेखी से महाभारत कालीन इतिहास संजोए नवग्रह कुंडों में से पांच कुंड लुप्त हो गए हैं। इन दिनों केवल चार कुंड बचे हैं। इन कुंडों को लेकर भी प्रशासन व पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की ओर से जीर्णोद्धार के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।

 

लोगों में रोष

प्राचीन धरोहर की हो रही अनदेखी और लापरवाही से लोगों में भारी रोष है। लोगों का कहना है कि महाभारत कालीन इस धरोहर को बचाने के लिए सरकार और प्रशासन को आगे जाने की जरूरत है। यह नवग्रह कुंड हमारी संस्कृति की पहचान है। इनके जीर्णोद्धार के लिए पहल शुरू करने की जरूरत है।

वैदिक महत्व की नगरी है कैथल

इतिहासकार कमलेश शर्मा के अनुसार पांडवों के सबसे बड़े भाई महाराज युधिष्ठिर ने महाभारत काल में नौ कुंडों की स्थापना की थी। कुंडों की स्थापना पितरों की आत्मा की शांति के लिए की गई थी। कैथल वैदिक काल से ही धर्म-कर्म, राजनीतिक योगदान में आगे हैं। यहां के लोगों ने धर्म में भी अपना प्रभाव जमाया।

पांच कुंड हो चुके हैं लुप्त

प्रशासन व पुरातत्व विभाग की लापरवाही व अनदेखी के कारण केवल चार कुंड ही शेष बचे हैं। अन्य पांच कुंड लुप्त हो चुके हैं। शेष बचे कुंडों में सूर्य, शनि, बृहस्पति, बुध कुंड तो आज भी मौजूद हैं। जबकि चंद्र, मंगल, राहु, केतु, शुक्र कुंड का अस्तित्व समाप्त हो गया है। इन कुंडों में प्रभावशाली व दबंग लोगों ने कब्जा कर लिया है।

सूर्य कुंड में है उड़िया शैली का मंदिर

सूर्यकुंड के जीर्णोद्धार के साथ ही उसके प्रांगण में स्थापित महाभारतकालीन शिवलिंग के पर 65 फीट लंबाई 40 फीट चौड़ाई में उड़िया शैली में भव्य शिव मंदिर का निर्माण किया गया है। शिव मंदिर का गर्भ गृह 40 बाई 20 में बना है। गुंबद की ऊंचाई 51 फीट है। पूरे मंदिर की दीवारों पर काले-भूरे रंग के ग्रेनाइट पत्थर को जड़ा गया है। मंदिर के बाहरी चार दीवारी में भगवान दत्तात्रेय, भगवान लक्ष्मीनारायण, राधाकृष्ण, हिंगलाज माता, मां दुर्गा, माता बगलामुखी, मां अन्नपूर्णा तथा गेट पर हनुमान जी की मूर्तियां स्थापित करने के लिए मंदिर निर्माण किया जा रहा है।

पूर्व सरकार में हुआ काफी विकास कार्य

पूर्व जनस्वास्थ्य मंत्री रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहना है कि नवग्रह कुंडों के जीर्णोद्धार के लिए काफी काम किया। करीब पांच करोड़ रुपये उनके उद्धार के लिए जारी किए गए थे। उन्होंने पिहोवा चौक पर नवग्रह कुंड स्थापित कर इस चौक का नाम नवग्रह कुंड रखा। इसके अलावा सूर्यकुंड का भी विकास कराया। इसके साथ-साथ करोड़ों रुपये की लागत से बिदक्यार झील व भाई उदय सिंह के किले का निर्माण कराया गया।

पर्यटन के रूप में करें विकसित

टेक चंद वर्मा का कहना है कि नवग्रह कुंड महाभारत कालीन है। इन कुंडों का जीर्णोद्धार जरूरी है। अनदेखी और लापरवाही के कारण प्राचीन इतिहास लुप्त हो गया है। सरकार व पुरातत्व विभाग के साथ-साथ प्राचीन धरोहरों को बचाने के लिए एकजुट होने की जरूरत है।

ये हो सकता है सुधार

महाभारत कालीन कुंडों का जीर्णोद्धार कर इन्हें पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है। क्योंकि यह प्राचीन धरोहर है और महाभारत काल का इतिहास समेटे हुए हैं। ऐसे में काफी प्राचीन धरोहर होने के कारण काफी पर्यटक यहां आ सकते हैं। इससे प्रशासन व सरकार को आर्थिक लाभ भी होगा।

पानीपत की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.