कला के कुरुक्षेत्र में फोटो जंक्शन
कुरुक्षेत्र में बना फोटो जंक्शन देश-विदेश के कलाकारों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
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ग्रीस का सैंटोरिनी शहर। इटली के वेनिस की इमारतें। लंदन के टेलीफोन बूथ और हरियाणवी मिट्टी के घर। इन सभी को अपने में समेटे हुए है धर्मनगरी का फोटो जंक्शन। देश-विदेश के कलाकारों को बरबस कुरुक्षेत्र खींच ला रहा है। यहा देश और विदेश के अलग-अलग हिस्सों के गाने, नाटक और प्रीवेडिंग शूट करने के लिए सेट तैयार किए गए हैं। जो देखने में जितने अनोखे हैं, उतने ही आकर्षक भी। अलग-अलग थीम पर कैमरे के एंगल और रोशनी को ध्यान में रखते हुए 15 से ज्यादा सेट कलाकारों व लोगों को बरबस ही यहा खींच ला रहे हैं, जिस पर जिम्बॉब्वे के गायक यानिक का वाच मी ऑन टीवी, सपना चौधरी के कड़े टोक लग जा और अनमोल गगन मान का गाना यहा फिल्माया जा चुका है। अगर ऐसा कहें कि मुंबई, दिल्ली और चंडीगढ़ को यह स्टूडियो टक्कर दे रहा है तो गलत नहीं होगा। हर तरह के सीन के लिए सेट
आपने फिल्मों में अक्सर देखा होगा घोड़ों के अस्तबल के सामने बनी लकड़ी का हाउस और उसके सामने गोल हैट डालकर खड़े हुए लोग। यहा पर भी इस पर आधारित एक सेट है, जो देखने से ही फिल्मी लगता है। सड़कों के किनारे दीवारों पर बनाए गए चित्र भी यहा के एक सेट को विदेशी लुक देते हैं। फिर लाइब्रेरी हो, घुमावदार सीढि़या, विदेशी तर्ज पर तैयार की गई इमारतें और उसके बीच में सड़क। सब कुछ कहीं अलग ही पहुंच जाने का अनुमान कराता है और जब इस पर फिल्माया जाता है तो वीडियो या फोटोज में ऐसा लगता है मानो इसे किसी विदेश में शूट किया गया हो। एक साल लग गए बनाने में
फोटो जंक्शन संचालक एवं फोटोग्राफर आनंद उत्सव बताते हैं कि इस स्टूडियो को तैयार करने में उन्हें और उनके पापा को करीब एक साल लग गया। चंडीगढ़ में स्टूडियो देखकर उन्हें भी इसे बनाने की इच्छा जागी, जो बढ़ते दिनों के साथ-साथ जुनून में बदल गई। उत्सव बताते हैं कि इस स्टूडियो में इमारतों पर किए गए पेंट से लेकर उपकरण तक को विदेशी लुक दिया गया है। यही कारण है कि इमारतों पर लगाए जाने वाले एंगल, पीसीओ में प्रयोग किए जाने वाले टेलीफोन तक को दुबई से मंगाया गया है, जो काफी महंगे हैं। साथ ही इसे तैयार करते हुए एक फोटोग्राफर के हर एंगल से सोचा गया है कि कितनी रोशनी चाहिए, किस तरह का पेंट हो, ताकि फोटो व शूटिंग के दौरान सब उभर कर सामने आए। सब कुछ नियंत्रित
आनंद उत्सव बताते हैं कि स्टूडियो में सब कुछ नियंत्रण में होता है, जबकि अगर बाहर शूटिंग की जाती है तो जिस जगह पर शूटिंग की जाती है वहा पर भीड़ लगना, हर चीज के लिए सीमा में बंध जाना पड़ता है। सीमित समय मिलता है और बहुत बार वातावरण के मुताबिक शूट कर रहे लोगों के चेहरे पर एक्सप्रेशन भी नहीं आते। मगर यहा पर ऐसा कुछ नहीं। गर्मी है तो वातावरण सेट करने के लिए एसी हैं, कोई बंधन नहीं। पिता की सीख काम आई
एयर फोर्स में साजर्ेंट के पद से सेवानिवृत्त कुलभूषण बताते हैं कि उनके पुत्र आनंद उत्सव को फोटोग्राफी करने का शौक नहीं जुनून है। आनंद ने जब उनसे स्टूडियो बनाने की बात की तो वे तुरंत राजी हो गए। उन्होंने बताया कि लोग अपने बच्चों को सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी करने की सलाह देते हैं, लेकिन आठवीं कक्षा में ही अपने पुत्र से साफ कह दिया था कि वह सरकारी नौकरी के बारे में मत सोचे। इसके बाद जैसे-जैसे उत्सव बड़ा हुआ वैसे-वैसे उसमें फोटोग्राफी का जुनून भी बढ़ता गया। प्रस्तुति : विनिश गौड़,