पराली से मालामाल हुए किसान, मिले अच्छे दाम, फसल अवशेष जलने के मामलों मे भी आई कमी
किसानों को पराली के इस बार अच्छे दाम मिले जिससे हाथ से कटी बासमती धान की ज्यादातर पराली बिक गई। इसके अलावा फसल अवशेष जालने के मामलों में भी कमी आई है। जिससे लोगों को प्रदूषण से भी थोड़ी राहत मिली है।
जींद, जागरण संवाददाता। सरकार व प्रशासन के प्रयासों से फसल अवशेष जलाने के मामलों में कमी आई है। पिछले साल जिले में धान कटाई के सीजन में आगजनी की हरियाणा स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (हरसैक) से 1183 लोकेशन आई थी। जबकि इस सीजन में 847 लोकेशन आई हैं। जिनमें से 591 जगह फसल अवशेष में आग लगाने के मामले सामने आए, जिसमें कुल 676 एकड़ में फसल अवशेष जलने पर प्रशासन ने 555 चालान किए और 1.75 लाख रुपये की जुर्माना राशि वसूल की जा चुकी है। इस बार किसानों को पराली के भी अच्छे दाम मिले, जिससे हाथ से कटी बासमती धान की ज्यादातर पराली बिक गई। किसानों को प्रति एकड़ पराली के ढाई हजार से लेकर साढ़े तीन हजार रुपये तक भाव मिले। जो फसल अवशेष जलने के मामले आए, वहां धान की कटाई कंबाइन से कराई गई थी और बचे हुए फसल अवशेष में किसानों ने आग लगा दी।
लेबर ना होने से आई दिक्कत
हरियाणा में धान की कटाई के लिए लेबर बिहार और उत्तर प्रदेश से आती है। इस बार बिहार में पंचायत चुनाव की वजह से बहुत कम लेबर हरियाणा में आई। किसानों को धान की कटाई के लिए समय पर लेबर नहीं मिली। जिसके कारण मजबूरी में किसानों को धान की कटाई कंबाइन से करानी पड़ी। कंबाइन से कटी धान जहां हाथ से कटी धान की तुलना में 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल कम बिकी। वहीं कंबाइल से कटी फसल के अवशेष भी किसानों ने जलाए। अगर हाथ से ज्यादातर धान की कटाई होती, तो इस बार फसल अवशेष जलने के मामलों में और भी कमी आती।
किसानों में आ रही जागरूकता
कृषि विभाग के क्वालिटी कंट्रोल इंस्पेक्टर नरेंद्र पाल ने बताया कि कृषि विभाग प्रशासन के सहयोग से किसानों को जागरूक कर रहा है। जिन गांवों में पराली जलाने के पांच से ज्यादा मामले पिछले साल थे, उन गांवों को रेड जोन और पांच से कम मामले वाले गांवों को येलो जोन में रखा गया था। इन गांवों में ज्यादा फोकस किया गया और जरूरत के अनुसार किसानों को अनुदान पर फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि यंत्र भी दिए गए। किसान जागरूक हो रहे हैं और उन्हें समझ आ रहा है कि फसल अवशेष में आग लगाने से उनकी ही जमीन की ऊपजाऊ शक्ति नष्ट हो रही है।
बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय
हर साल नवंबर, दिसंबर में प्रदूषण का स्तर ज्यादा रहता है। इसी दौरान धान की कटाई का काम चलता है। किसान नेता रामराजजी ढुल का कहना है कि जब भी प्रदूषण बढ़ता है, तो किसानों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। जबकि प्रदूषण बढ़ने के कारण दूसरे हैं। अब तो पराली भी नहीं जल रही। फिर भी प्रदूषण बढ़ रहा है। इसलिए सरकार को किसानों को जिम्मेदार ठहराने की बजाय प्रदूषण बढ़ने के दूसरे कारणों की पड़ताल करते हुए उसे रोकने के लिए कदम उठाने चाहिएं। किसानों की पराली खरीदने के लिए खरीद प्वाइंट केंद्र बनाए जाएं।