गांव की महिला ने मेहनत से बदली तस्वीर, साथी महिलाओं को भी मिला स्वरोजगार
आत्मनिर्भरता के साथ महिलाओं को दे रही रोजगार आर्थिक सेहत में सुधार। डिकाडला गांव की सीमा कंबल पैकिंग के लिए बैग बनाती हैं। पहले खुद मशीन खरीदी। अब चार महिलाओं ने भी मशीन खरीद ली। बाजार में हाथों हाथ बिक जाते हैं बैग।
पानीपत, जेएनएन। सशक्त नारी, खुद के साथ दूसरों का भी जीवन बदलती है। ऐसी ही हैं डिकाडला गांव की सीमा। स्वयं आत्मनिर्भर होकर दूसरों को भी आत्मनिर्भर बना रही है। सीमा ने दो साल पहले महिलाओं के सहयोग से सरस्वती स्वयं सहायता समूह(एसएचजी) बनाई थी। बचत के सौ-सौ रुपये जमा करने शुरू किए थे। उक्त पैसे से सिलाई मशीन खरीदी। फिर कंबल पैकिंग के लिए बैग बनाना शुरू किया। अब उसके पास चार सिलाई मशीन हैं। चारों सदस्यों के पास भी अपनी मशीन हो गई है। सभी घर बैठे बैग बनाने का काम करते हैं। समूह के जमा पैसे से एक दूसरे की मदद होती है। सामान खरीदकर लाते और बाजार की डिमांड को पूरा करते हैं।
पति का मिल रहा सभी को साथ
सीमा कहती है कि शुरू में बाजार में माल बेचने के लिए मशक्कत करनी पड़ी। दुकान मालिकों को नंबर देना पड़ा। फिर दुकानदारों के आर्डर मिलने लगे। अब उनके सामने आर्डर की समस्या नहीं है। पति सहित परिवार का पूरा साथ मिल रहा है। पति ही बाजार से सामान लाते हैं। तैयार बैग को दुकान मालिकों तक पहुंचाते हैं।
तीन से चार सौ रुपये रोज कमा लेते हैं
महिलाओं की मेहनत रंग ला रही है। परिवार की माली हालत में सुधार होने से सभी खुश हैं। बच्चों की परवरिश और शिक्षा की चिंता समाप्त हो गई। औसतन तीन से चार सौ रुपये प्रतिदिन दिहाड़ी बन जाती है। एक दिन में डेढ़ से दो सौ बैग बन जाते हैं।
चार अन्य भी बनी आत्मनिर्भर
सीमा के समूह की पिंकी, रितू, अलका और मनीषा भी आत्मनिर्भर हो चुकी है। सभी बैग बनाने का काम करते हैं। किसी के पास डिमांड आने पर आपस में एक दूसरे की मदद लेते हैं। दो साल बीत जाने के बाद भी उन्हें सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है, जिसका उन्हें मलाल है।
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