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हरियाणा में धान की रोपाई ने बढ़ाई टेंशन, जल संरक्षण करना बना चुनौती

यमुनानगर में जल संरक्षण को देखते हुए धान की रोपाई का लक्ष्य घटाए जाने की बजाय बढ़ाया जा रहा है। गत वर्ष प्रदेश में 12 लाख हेक्टेयर पर रोपाई का लक्ष्य रखा गया था जबकि इस बार 50 हजार हेक्टेयर बढ़ा दिया गया है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Wed, 25 May 2022 03:15 PM (IST)Updated: Wed, 25 May 2022 03:15 PM (IST)
हरियाणा में धान की रोपाई ने बढ़ाई टेंशन, जल संरक्षण करना बना चुनौती
यमुनानगर में धान रोपाई के बीच जल संरक्षण बना चुनौती।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। यमुनानगर में धान की रोपाई को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं।  हालांकि किसान फिलहाल पनीरी तैयार करने में जुटे हैं, लेकिन 15 जून के बाद रोपाई में तेजी आ जाएगी। प्रदेश में 12 लाख 50 हजार हेक्टेयर में धान की रोपाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

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खास बात यह है कि जल संरक्षण को देखते हुए धान की रोपाई का लक्ष्य किए जाने की बजाय बढ़ाया जा रहा है।

गत वर्ष प्रदेश में 12 लाख हेक्टेयर पर रोपाई का लक्ष्य रखा गया था जबकि इस बार 50 हजार हेक्टेयर बढ़ा दिया गया है। करनाल में रोपाई का लक्ष्य सबसे अधिक  एक लाख 70 हजार हेक्टेयर जबकि यमुनानगर में केवल 70 हजार हेक्टेयर पर रोपाई होगी।

कितनी होगी रोपाई 

हिसार में 50 हजार हेक्टेयर, फतेहाबाद में 90 हजार, सिरसा में 60, भिवानी में 10, रोहतक में 50, झज्जर में 32, सोनीपत में 100, गुड़गांव तीन , फरीदाबाद 9, करनाल 170, पानीपत 62, कुरुक्षेत्र 125, कैथल 165, अंबाला 85, पंचकूला 10, यमुनानगर 70, जींद 125, रेवाड़ी दो, मेवात चार, पलवल 18 व चरखी दादरी में 10 हजार हेक्टेयर पर धान की रोपाई किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।  

पानी की होती अधिक खपत 

धान की फसल को तैयार करने में पानी आवश्यकता अधिक होती है। अन्य फसलों की तुलना में  सर्वाधिक पानी की खपत होती। जितना पानी प्रयोग होता है, गर्मी ज्यादा होने से कई गुणा पानी वाष्पीकरण हो जाता है। धान की फसल के लिए किसान खेत में पानी रखते हैं। यही पानी अत्याधिक तापमान के कारण वाष्पीकरण के माध्यम से उड़ जाता है। अधिकारियों के अनुसार 50 फीसद पानी नष्ट हो जाता है। इसको देखते हुए सरकार द्वारा मक्का की फसल को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रति एकड़ सात हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है ताकि किसान धान की बजाय मक्का व दलहन की फसल की बिजाई अधिक की जा सके।  

पानी बचाने के लिए अधिकारी बहा रहे पसीना 

गिरते भू जलस्तर को देखते हुए इस बार कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से धान की सीधी बिजाई पर अधिक जोर दिया जा रहा है। संगोष्ठियों का आयोजन किसानों को धान की सीधी बिजाई के लिए प्रेरित किया जा  रहा है। इस तकनीकी से बिजाई के फायदों से अवगत करवाया जा रहा है। इसका मकदस पानी के अंधाधुंध दोहन को रोकना है।  छह हजार हेक्टेयर में धान की सीधी बिजाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। उत्पादकों को नहीं मिलता बीमा योजना का लाभ। 

इन फसलों पर मिलेगा मुआवजा

ऋणी व गैर ऋणी किसान स्वेच्छा से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत फसल बीमा करा सकते है। योजना में शामिल बाजरा, कपास व मक्का की फसलों को अगर जलभराव से नुकसान पहुंचता है, तो उसका मुआवजा बीमा कंपनी की ओर से किसानों को दिया जाएगा। लेकिन अगर धान की फसल जलभराव से खराब होती है तो उसका मुआवजा बीमा कंपनी की ओर से नहीं दिया जाता। हालांकि किसान संगठन धान को भी योजना में शामिल किए जाने की मांग कर चुके हैं, लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। 

हर साल एक मीटर नीचे जा रहा जल स्तर 

भू जल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक वर्ष वर्ष करीब एक मीटर नीचे जा रहा है। जगाधरी में करीब 16 मीटर, साढौरा में करीब 11, प्रतापनगर में करीब 16, बिलासपुर में करीब 11, छछरौली में नौ व रादौर में करीब 17 मीटर तक चला गया है। कई क्षेत्रों में तो ट्यूबवेल जवाब देने लगे हैं। यदि स्थिति ऐसी ही रही तो भविष्य में परेशानी और बढ़ जाएगी। 

धान की सीधी बिजाई करें किसान 

धान की सीधी बिजाई करने पर 30-35 प्रतिशत पानी की बचत होती है। इस बारे किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। साथ है धान की बजाय मक्का की बिजाई के लिए प्रेरित किया जा रहा है। धान के उगाने पर प्रति एकड़ 20 से 25 हजार रुपये खर्चा आता है, जबकि मक्का की खेती में 10 से 12 हजार रुपये खर्च होते हैं। 15 हजार हेक्टेयर पर मक्का की बिजाई कर लक्ष्य रखा गया है। मक्का की बिजाई करने पर किसानों को आर्थिक बचत भी होगी और जल संरक्षण भी हो सकेगा।


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