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कपालमोचन मेला: 110 साल से भूखा नहीं लौटा आश्रम से कोई श्रद्धालु, एक हजार बौद्ध भिक्षु भी रह चुके

कपालमोचन मेला शुरू हो चुका है। यहीं सैनी आश्रम सदाव्रत है। जहां से आज तक कोई भूखा नहीं लौटा है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Fri, 08 Nov 2019 04:35 PM (IST)Updated: Fri, 08 Nov 2019 04:35 PM (IST)
कपालमोचन मेला: 110 साल से भूखा नहीं लौटा आश्रम से कोई श्रद्धालु, एक हजार बौद्ध भिक्षु भी रह चुके
कपालमोचन मेला: 110 साल से भूखा नहीं लौटा आश्रम से कोई श्रद्धालु, एक हजार बौद्ध भिक्षु भी रह चुके

पानीपत/यमुनानगर, [राजेश कुमार]। ऋणमोचन सरोवर के सामने स्थित सैनी आश्रम सदाव्रत से आज तक एक भी श्रद्धालु भूखा नहीं गया है। यह सिलसिला आज से नहीं, बल्कि 110 साल से चल रहा है। सदाव्रत आश्रम में दिन या रात में कोई भी वक्त आ जाए, उसे चाय से लेकर भोजन तक उपलब्ध होता है। साथ ही ठहरने की व्यवस्था पूरी तरह से निश्शुल्क दी जाती है। लौटने वाले श्रद्धालुओं से आश्रम का कोई पदाधिकारी एक रुपया तक नहीं मांगता। यदि कोई स्वेच्छा से दान करना चाहे तो वह मंदिर के दानपात्र में डाल सकता है।

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इन लोगों ने की थी शुरुआत

सैनी आश्रम सदाव्रत के प्रधान राजकुमार सैनी ने बताया कि सैनी सदाव्रत आश्रम की शुरुआत न्याला राम सैनी कड़कौली जीत राम सैनी आंबवाला, शीशराम सैनी अंधेरी, बाबा सेवागीर सैनी जागधौली, किशना राम जागधौली, बाबा शांतानंद सैनी रादौर, शंकर ला सैनी बूडिय़ा, गंगा राम सैनी दादूपुर और बांसेवाला के अन्य लोगों द्वारा की गई थी। तब इन लोगों को चौधरी कहा जाता था। उस वक्त कपालमोचन में कोई आश्रम नहीं था। आज जो भव्य गुरुद्वारा बना है, उसके भी पहले एक से दो कमरे ही हुआ करते थे। तब सैनी आश्रम में भी दो ही कमरे हुआ करते थे। उसके आसपास लोहे की टीन डाल कर बैठने की व्यवस्था की जाती थी।

इसलिए रखी गई सदाव्रत की नींव

सैनी सदाव्रत आश्रम कपालमोचन के उपप्रधान सुशील सैनी ने बताया कि 110 साल पहले जब कपाल मोचन मेला लगता था तब मेला में ठहरने की व्यवस्था बिल्कुल भी नहीं होती थी। जितने भंडारे आज लगते हैं तब नहीं लगते थे। दूर से आने वाले श्रद्धालु परेशान रहते थे। इसलिए समाज के लोगों ने सैनी आश्रम सदाव्रत की नींव रखी। तब से लेकर आज तक पूरा साल यहां आने वाले श्रद्धालुओं को भोजन, चाय, पानी, ठहरने की सुविधा पूरी तरह से निश्शुल्क दी जाती है।

एक हजार बौद्ध भिक्षु भी रह चुके यहां

यहां पर करीब सौ साल पहले एक हजार बौद्ध भिक्षु भी आकर रह चुके हैं। बौद्ध भिक्षु कपालमोचन और आसपास के इलाकों में आकर साधना करते थे। इसके अलावा वे बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। तब उन्होंने सदाव्रत आश्रम में अपना समय गुजारा था।

42 कमरे हैं आश्रम में

सैनी सभा के सदस्य मामराज मछरौली, जोगिंद्र सिंह गधौली, रणजीत सिंह दादूपुर, पूर्णचंद मछरौली, कृष्णलाल जलाधी माजरा, रामचंद्र जटहेड़ी ने बताया कि आश्रम में सालभर में जो राशन लगता है उसके लिए समाज के लोगों से ही अनाज व राशि एकत्रित की जाती है। जो लोग खेती करते हैं, वे अपने पास से गेहूं, चावल व अन्य सामग्री देते हैं। जिससे पूरा साल लोगों की सेवा की जा रही है।


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