Holi Special नौल्था की अनोखी होली, देखिये कैसे उड़े गुलाल, सीएम ने बरसाए फूल
रंगों का त्योहार होली धूमधाम से मना। सबसे खास होली मनी नौल्था में। डाट होली से इस बार फिर युवाओं में हुई प्रतियोगिता। आसपास के लोग भी पहुंचे। जानिये इस होली का इतिहास।
पानीपत, जेएनएन। होली का पर्व बेहद उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। आपको होली के जोश की तस्वीरें दिखाने के साथ ही नौल्था भी ले चलते हैं। यहां पर अनोखी ही होली मनाई गई। कहानी बरसों पुरानी है। अंग्रेज भी इनके त्योहार को मनाने से रोक नहीं सके थे।
आपको मिलाते हैं नौल्था की डाट होली से। यहां की होली आसपास के गांवों और जिलों में ही नहीं, बल्कि प्रदेशभर में भी प्रसिद्ध है। यहां की डाट होली देखने और खेलने के लिए दूर-दूर से रिश्तेदार आते हैं। फाग के एक सप्ताह पूर्व सूखी डाट लगाकर इसकी दस्तक दी जाती है। पहले दिन गांव के एक हिस्से में डाट लगाई जाती है।
क्या है डाट का मतलब
वैसे तो डाट का सही अर्थ सपोर्ट देना होता है। यहां डाट में युवाओं के दो ग्रुप बन जाते हैं। रस्साकशी की तरह आमने-सामने होते हैं। दोनों टीमों के युवा सीने से एक-दूसरे को धक्का देते हैं। जो टीम नीचे गिर जाती है, वो हार जाती है। यह सिलसिला एक सप्ताह तक लगातार जारी रहता है। इसे सूखी डाट कहते हैं। इसी तरह फाग के दिन चौपाल के साथ खड़े हो जाते हैं और ऊपर से रंग डाला जाता है। इसे रंगों की डाट कहते हैं। फाग से एक दिन पहले यहां महिलाएं होलिका का दहन करती हैं। पहले पूजा के लिए उपले लेकर आती हैं। लकड़ियां इकट्ठी करके उन पर सूत के धागे बांधने की परंपरा पूरी की जाती है। कुछ महिलाएं दूध और लस्सी लेकर पूजा सामग्री से परिवार के साथ माथा टेकती हैं। खास बात ये है कि इसी चौक पर शहरभर के लोग होली खेलने पहुंचते हैं।
अंग्रेजी हुकूमत भी नहीं बंद करवा सकी थी होली
ग्रामीण चंद्र सिंह जागलान ने बताया कि 1862 में अंग्रेजी हुकूमत के साथ मतभेद हो गया था। अंग्रेजों ने गांव में फाग बंद करा दिया था। ग्रामीणों का रोष बाहर निकल आया। अंग्रेजों को ग्रामीणों की बात मानने को मजबूर होना पड़ा। कलेक्टर ने एक महीने बाद फाग उत्सव मनवाया। 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान फाग नहीं मनाया गया था। इसके एक महीने बाद गांव में रंगों की डाट लगाई थी।
किसी की मौत होने पर भी खेला जाता है फाग
ग्रामीणों ने बताया कि करीब 100 वर्ष पहले दुर्भाग्य से धूमन नाम के व्यक्ति के लड़के की अकाल मौत हो गई थी। ग्रामीण वर्षों पुरानी परंपरा छूटने से चिंतित थे, लेकिन धूमन ने परंपरा को बनाए रखने के लिए रंग की पिचकारी भरकर अपने मृतक पुत्र को मारी और फिर ग्रामीणों के साथ रंगों की होली खेली। इसके बाद ही गांव में शव का संस्कार किया।
कहां से आई परंपरा
अब आपके मन में ये जरूर आया होगा कि नौल्था गांव में डाट होली कहां से आई? दरअसल यह बाबा लाठेवाले की देन है। वे एक बार अपने साथियों के साथ ब्रज में गए थे। वहां की होली से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अगले वर्ष नौल्था गांव में होली मनानी शुरू कर दी।
पानीपत में होली खेलते बच्चे।
बच्चों ने जमकर की मस्ती
होली पर सबसे ज्यादा मस्ती की बच्चों ने। एक सप्ताह पहले ही इनका जोश बढ़ गया था। होली के दिन तो जैसे इनकी मुराद पूरी हो गई। रंगों के साथ जमकर फूलों भी उड़ाए।
करनाल में सीएम ने खेली होली
करनाल में सीएम मनोहरलाल ने फूलों की होली खेली। इससे पहले कैथल भी पहुंचे। उन्होंने कहा कि फूलों की होली खेलने से पानी खराब नहीं होता। साथ ही पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।
कुरुक्षेत्र में बृज जैसी होली
कुरुक्षेत्र में लठ मार होली खेली गई। यहां पर मंच पर राधा कृष्ण ने रासलीला की तो साथ ही भक्तों के साथ लठ मार होली खेलकर उनका उत्साह बढ़ाया।
शाम से शुरू हो गए रंग
पानीपत में एक दिन पहले शाम से ही रंग डालने शुरू हो गए। महिलाओं ने एक दूसरे पर गुलाल लगाया। सुबह होते ही उत्साह और बढ़ गया।
जोश देखने वाला था
पानीपत में जोश देखने वाला था। पानीपत की विधायक रोहिता रेवड़ी भी होली उत्सव में शामिल हुईं। महिलाओं ने उन पर रंग लगाया। उन्होंने भी गुलाल उड़ाया।
बाहर निकल आए लोग
शिवनगर में लोग अपने बच्चों के साथ बाहर निकल आए। जमकर गुलाल उड़ाया।
जमकर नाचे भी
होली मनाने के साथ महिलाएं जमकर नाचीं भी। होली उत्सव दोपहर तक चलता रहा। कई जगहों पर विशेष प्रोग्राम आयोजित किए गए। सेक्टर 6 में टेंट लगाकर कालोनी वासियों ने होली मनाई।