संवेदनाओं का मर जाना...ट्रेन छोड़ गई, हमसफर बनी मौत
मरने के बाद लोगों ने हंगामा किया, लेकिन जीते-जी किसी ने उस बेबस को उठाकर अस्पताल तक ले जाने की जहमत नहीं उठाई। एंबुलेंस के इंतजार में डेढ़ घंटा अधेड़ को तिल-तिल मरते देखते रहे।
By Edited By: Published: Wed, 24 Oct 2018 11:34 PM (IST)Updated: Thu, 25 Oct 2018 12:44 PM (IST)
जेएनएन, पानीपत /यमुनानगर - लचर सिस्टम एक बार फिर हत्यारा साबित हुआ। संवेदनाएं भी दम तोड़ती दिखीं। मरने के बाद लोगों ने हंगामा किया, लेकिन जीते-जी किसी ने उस बेबस को उठाकर अस्पताल तक ले जाने की जहमत नहीं उठाई। रेलवे पुलिस और अफसर एंबुलेंस के इंतजार में डेढ़ घंटे अधेड़ को तिल-तिल मरते देखते रहे। आखिरकार उस अंजान की मौत हो गई।
रेलवे स्टेशन पर 55 वर्षीय व्यक्ति ट्रेन में चढ़ते समय फिसलकर गिर पड़ा और गंभीर रूप से जख्मी हो गया। स्टेशन पर खड़ी पब्लिक ने जीआरपी, आरपीएफ व स्टेशन अधीक्षक के कक्ष में जाकर एंबुलेंस बुलवाने की बात कही, लेकिन हर कोई पल्ला झाड़ता नजर आया। लोग भी हंगामा करते रहे लेकिन किसी ने खुद व्यक्ति को अस्पताल ले जाने की जहमत नहीं उठाई। कुछ लोगों ने एंबुलेंस को कॉल भी की लेकिन एंबुलेंस नहीं पहुंची। करीब डेढ़ घंटे बाद रेलवे अस्पताल जगाधरी वर्कशॉप से एंबुलेंस बुलवाई गई, तब तक उसकी मौत हो गई। लोगों ने स्टेशन पर जमकर हंगामा किया। व्यक्ति के मरने के बाद तुरंत जीआरपी, आरपीएफ पहुंच गई और स्ट्रेचर पर डालकर व्यक्ति को ले गए। एंबुलेंस पहुंची, तो उसे अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस में रखवा दिया गया।
थाने में जवाब मिला, जीआरपी के पास जाओ
दोपहर करीब 12 बजे कालका दिल्ली पैसेंजर गाड़ी रेलवे स्टेशन पर पहुंची। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, एक व्यक्ति ट्रेन से उतरा और स्टॉल से सामान खरीदा। थोड़ी देर बाद ट्रेन चलने लगी। ट्रेन में चढ़ने की कोशिश की तो पैर फिसल गया और वह स्टेशन पर जा गिरा। स्टेशन पर गिरते ही वह बुरी तरह से तड़पने लगा। कुछ लोगों ने बेंच पर लिटाया। भीड़ के बीच से से एक युवक ने एंबुलेंस को फोन किया। करीब 20 मिनट तक एंबुलेंस नहीं पहुंची। जब एंबुलेंस नहीं पहुंची, तो लोग आरपीएफ थाने में पहुंच गए। वहां कर्मियों से एंबुलेंस बुलाने की बात कही। आरोप है कि कर्मी ने जीआरपी का मामला बता दिया। जिससे लोग भड़क गए। इस दौरान थाना प्रभारी से नोकझोंक हुई। बाद में लोग स्टेशन अधीक्षक एसवी प्रसाद के कक्ष में पहुंचे। उनसे एंबुलेंस बुलवाने के लिए कहा। यात्री तरुण कुमार, सहारनपुर की संजीदा, राजेंद्र कुमार, राहुल, रामपाल और मनदीप सिंह ने बताया कि स्टेशन अधीक्षक ने लोगों की बात नहीं सुनी और जीआरपी के पास जाने के लिए कह दिया। यहां भी लोगों की स्टेशन अधीक्षक के साथ नोकझोंक हुई। आरोप है कि स्टेशन अधीक्षक ने कहा कि मेरी अकेले की कोई जिम्मेदारी नहीं है। लोग व पुलिस की जिम्मेदार है। जब एंबुलेंस नहीं पहुंची, तो लोग स्टेशन पर ही नारेबाजी करने लगे। इतनी देर में जीआरपी पुलिस भी पहुंच गई और एंबुलेंस के आने की बात कही। इतने में पता लगा कि व्यक्ति मर गया है। लोगों में रोष फैल गया और पुलिस व स्टेशन अधीक्षक के खिलाफ नारेबाजी हुई। करीब डेढ़ घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची, लेकिन तब तक व्यक्ति की मौत हो चुकी थी। व्यक्ति के मरने की सूचना मिलते ही जीआरपी, आरपीएफ तुरंत दौड़ पड़ी और व्यक्ति के शव को स्ट्रेचर पर लेकर एंबुलेंस में रखवाकर पोस्टमार्टम हाउस में भिजवा दिया गया।
इनकी लापरवाही से गई जान
पहली लापरवाही पब्लिक की। स्टेशन पर आने वाले यात्री व्यक्ति के घायल होने पर एंबुलेंस के लिए इंतजार करते रहे। पब्लिक को चाहिए था कि उसे खुद उठाकर अस्पताल में भर्ती करवाते, तो शायद उस व्यक्ति की जान बच जाती। दूसरी लापरवाही स्टेशन अधीक्षक, जीआरपी व आरपीएफ की। स्टेशन के पास ही जीआरपी व आरपीएफ थाना है। व्यक्ति के घायल होने पर एंबुलेंस का इंतजार करते रहे। यदि पुलिस सक्रियता दिखाती और किसी प्राइवेट वाहन से उसे अस्पताल में भर्ती करवाती, तो उसकी जान बच सकती थी।
इनकी भी सुनिए
आरपीएफ थाना प्रभारी रमेश कुमार का कहना है कि हम एंबुलेंस को कॉल नहीं कर सकते। यह जीआरपी का मामला है। इसके बावजूद भी 108 पर कॉल की थी। समय से एंबुलेंस नहीं पहुंची, इसमें हमारी गलती नहीं। आरपीएफ थाने में कोई भी सरकारी वाहन नहीं है। स्टाफ मारकंडा मेले में ड्यूटी पर गया है। स्टेशन अधीक्षक को बोला था, उन्होंने भी फोन कर दिया था। वहीं स्टेशन अधीक्षक एसवी प्रसाद का कहना है कि वह इस बारे में कोई बात नहीं कर सकते।
इनका दावा
जीआरपी थाना प्रभारी सुरेश कुमार का कहना है कि जैसे ही हादसे का पता लगा एंबुलेंस को फोन कर दिया गया। एंबुलेंस पहुंचने में देरी हुई।
साढ़े तीन किमी की दूरी नापने में लगाया डेढ़ घंटा
एंबुलेंस सर्विस पर सवाल उठता है। सिविल अस्पताल से स्टेशन की दूरी करीब साढ़े तीन किमी है। यदि सिविल अस्पताल से भी एंबुलेंस आनी हो तो उसे तीन से चार मिनट स्टेशन तक आने में लगते हैं। इसके बावजूद स्टेशन तक आने में एंबुलेंस को डेढ़ घंटा लग गया।
रेलवे स्टेशन पर 55 वर्षीय व्यक्ति ट्रेन में चढ़ते समय फिसलकर गिर पड़ा और गंभीर रूप से जख्मी हो गया। स्टेशन पर खड़ी पब्लिक ने जीआरपी, आरपीएफ व स्टेशन अधीक्षक के कक्ष में जाकर एंबुलेंस बुलवाने की बात कही, लेकिन हर कोई पल्ला झाड़ता नजर आया। लोग भी हंगामा करते रहे लेकिन किसी ने खुद व्यक्ति को अस्पताल ले जाने की जहमत नहीं उठाई। कुछ लोगों ने एंबुलेंस को कॉल भी की लेकिन एंबुलेंस नहीं पहुंची। करीब डेढ़ घंटे बाद रेलवे अस्पताल जगाधरी वर्कशॉप से एंबुलेंस बुलवाई गई, तब तक उसकी मौत हो गई। लोगों ने स्टेशन पर जमकर हंगामा किया। व्यक्ति के मरने के बाद तुरंत जीआरपी, आरपीएफ पहुंच गई और स्ट्रेचर पर डालकर व्यक्ति को ले गए। एंबुलेंस पहुंची, तो उसे अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस में रखवा दिया गया।
थाने में जवाब मिला, जीआरपी के पास जाओ
दोपहर करीब 12 बजे कालका दिल्ली पैसेंजर गाड़ी रेलवे स्टेशन पर पहुंची। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, एक व्यक्ति ट्रेन से उतरा और स्टॉल से सामान खरीदा। थोड़ी देर बाद ट्रेन चलने लगी। ट्रेन में चढ़ने की कोशिश की तो पैर फिसल गया और वह स्टेशन पर जा गिरा। स्टेशन पर गिरते ही वह बुरी तरह से तड़पने लगा। कुछ लोगों ने बेंच पर लिटाया। भीड़ के बीच से से एक युवक ने एंबुलेंस को फोन किया। करीब 20 मिनट तक एंबुलेंस नहीं पहुंची। जब एंबुलेंस नहीं पहुंची, तो लोग आरपीएफ थाने में पहुंच गए। वहां कर्मियों से एंबुलेंस बुलाने की बात कही। आरोप है कि कर्मी ने जीआरपी का मामला बता दिया। जिससे लोग भड़क गए। इस दौरान थाना प्रभारी से नोकझोंक हुई। बाद में लोग स्टेशन अधीक्षक एसवी प्रसाद के कक्ष में पहुंचे। उनसे एंबुलेंस बुलवाने के लिए कहा। यात्री तरुण कुमार, सहारनपुर की संजीदा, राजेंद्र कुमार, राहुल, रामपाल और मनदीप सिंह ने बताया कि स्टेशन अधीक्षक ने लोगों की बात नहीं सुनी और जीआरपी के पास जाने के लिए कह दिया। यहां भी लोगों की स्टेशन अधीक्षक के साथ नोकझोंक हुई। आरोप है कि स्टेशन अधीक्षक ने कहा कि मेरी अकेले की कोई जिम्मेदारी नहीं है। लोग व पुलिस की जिम्मेदार है। जब एंबुलेंस नहीं पहुंची, तो लोग स्टेशन पर ही नारेबाजी करने लगे। इतनी देर में जीआरपी पुलिस भी पहुंच गई और एंबुलेंस के आने की बात कही। इतने में पता लगा कि व्यक्ति मर गया है। लोगों में रोष फैल गया और पुलिस व स्टेशन अधीक्षक के खिलाफ नारेबाजी हुई। करीब डेढ़ घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची, लेकिन तब तक व्यक्ति की मौत हो चुकी थी। व्यक्ति के मरने की सूचना मिलते ही जीआरपी, आरपीएफ तुरंत दौड़ पड़ी और व्यक्ति के शव को स्ट्रेचर पर लेकर एंबुलेंस में रखवाकर पोस्टमार्टम हाउस में भिजवा दिया गया।
इनकी लापरवाही से गई जान
पहली लापरवाही पब्लिक की। स्टेशन पर आने वाले यात्री व्यक्ति के घायल होने पर एंबुलेंस के लिए इंतजार करते रहे। पब्लिक को चाहिए था कि उसे खुद उठाकर अस्पताल में भर्ती करवाते, तो शायद उस व्यक्ति की जान बच जाती। दूसरी लापरवाही स्टेशन अधीक्षक, जीआरपी व आरपीएफ की। स्टेशन के पास ही जीआरपी व आरपीएफ थाना है। व्यक्ति के घायल होने पर एंबुलेंस का इंतजार करते रहे। यदि पुलिस सक्रियता दिखाती और किसी प्राइवेट वाहन से उसे अस्पताल में भर्ती करवाती, तो उसकी जान बच सकती थी।
इनकी भी सुनिए
आरपीएफ थाना प्रभारी रमेश कुमार का कहना है कि हम एंबुलेंस को कॉल नहीं कर सकते। यह जीआरपी का मामला है। इसके बावजूद भी 108 पर कॉल की थी। समय से एंबुलेंस नहीं पहुंची, इसमें हमारी गलती नहीं। आरपीएफ थाने में कोई भी सरकारी वाहन नहीं है। स्टाफ मारकंडा मेले में ड्यूटी पर गया है। स्टेशन अधीक्षक को बोला था, उन्होंने भी फोन कर दिया था। वहीं स्टेशन अधीक्षक एसवी प्रसाद का कहना है कि वह इस बारे में कोई बात नहीं कर सकते।
इनका दावा
जीआरपी थाना प्रभारी सुरेश कुमार का कहना है कि जैसे ही हादसे का पता लगा एंबुलेंस को फोन कर दिया गया। एंबुलेंस पहुंचने में देरी हुई।
साढ़े तीन किमी की दूरी नापने में लगाया डेढ़ घंटा
एंबुलेंस सर्विस पर सवाल उठता है। सिविल अस्पताल से स्टेशन की दूरी करीब साढ़े तीन किमी है। यदि सिविल अस्पताल से भी एंबुलेंस आनी हो तो उसे तीन से चार मिनट स्टेशन तक आने में लगते हैं। इसके बावजूद स्टेशन तक आने में एंबुलेंस को डेढ़ घंटा लग गया।
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