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रेलवे को लापरवाही पड़ी भारी, हरियाणा सहित देशभर में देने पड़े 1288 करोड़ मुआवजा

रेलवे को लापरवाही बहुत भारी पड़ी है। विभिन्‍न रेल हादसों के कारण उसे मुआवजे के तौर पर बड़ी राशि चुकानी पड़ी है। रेलवे को हादसों के शिकार लोगों और पीडि़तों को मुआवजे के रूप में 1288 करोड़ रुपये देने पड़े हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 03 Apr 2021 09:52 AM (IST)Updated: Sat, 03 Apr 2021 09:52 AM (IST)
रेलवे को लापरवाही पड़ी भारी, हरियाणा सहित देशभर में देने पड़े 1288 करोड़ मुआवजा
रेलवे को मुआवजे के रूप में बड़ी रकम चुकानी पड़ी है। (फाइल फोटो)

अंबाला, [दीपक बहल]। रेलवे की लापरवाही इस कदर भारी पड़ गई कि सरकारी खजाने से ही 1288 करोड़ से अधिक का मुआवजा मृतकों के आश्रितों को देना पड़ा। यह मुआवजा देने के लिए कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ी और रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल (आरसीटी) में साबित करना पड़ा कि रेलवे की लापरवाही से ही यात्री की जान गई है। हालांकि अधिकांश मामलों में रेलवे सुरक्षा बल (आरपीफ) ने हादसों में हुई मौत का जिम्मेदारी से रेलवे को बचाने का प्रयास किया। आखिरकार रेलवे को साख बचाने के लिए आश्रितों को मुआवजा राशि देनी ही पड़ी।

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रेलवे ने चार साल में हादसों की समीक्षा की तो चौंकाने वाले तथ्य आए सामने

हाल ही में रेलवे बोर्ड ने ऐसे मामलों की समीक्षा की तो पता चला कि पिछले चार सालों में 16 हजार 833 लोगों के मामलों का निपटान हुआ, जिसमें 1288 करोड़ 11 लाख रुपये मुआवजा राशि दी गई।

रेलवे के सोलह जोन में सबसे अधिक राशि

2018-19 में सबसे अधिक हादसे हुए, जिसमें 5062 लोगों की मौत हुई और इस कारण 378.68 करोड़ रुपये मुआवजा दिया गया। साल 2019-20 में 4947 हादसे हुए, जिसमें मुआवजे की राशि सबसे अधिक 384.31 करोड़ रुपये रही। साल 2017-18 में 4369 हादसे हुए, जबकि मुआवजा राशि 359.58 करोड़ रुपये रही। साल 2020-21 (दिसंबर 2020 तक) में 2455 हादसे हुए, जिनमें 173.54 करोड़ रुपये मुआवजा दिया गया। इन में मरने वालों के अलावा घायल, अंग भंग के आंकड़े भी शामिल हैं।

यात्रा में खलल, तो भी मुआवजा मिलेगा

रेल सफर के दौरान मौत ही नहीं बल्कि यात्रा में खलल पड़ने पर भी रेलवे को मुआवजा देना पड़ता। यात्री के पास टिकट होने के बाद ही वह कानूनी लड़ाई लड़ सकता है, चाहे मामला सीट से संबंधित हो या फिर रेल सेवा से। हाल ही में बुजुर्ग दंपती को इंसाफ देते तीन लाख रुपये का हर्जाना देने के आदेश दिए गए हैं। बुजुर्ग और दिव्यांग दंपती को लोअर बर्थ न मिलने और करीब 100 किलोमीटर पहले ही उतार देने पर रेलवे की लापरवाही उजागर हुई।

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में भी रेलवे का पक्ष खारिज कर दिया गया। यह दंपती 4 सितंबर 2010 को सोलापुर से बिरूर जाने के लिए टिकट बुक करवाई थी। इस तरह के कई मामले आते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव या फिर लंबी कानूनी लड़ाई के झंझट से बचकर अफसरों को ही शिकायत दे देते हैं।

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'' रेल सफर के दौरान यात्री की मौत के बाद आरपीएफ की लंबी प्रक्रिया होती है। चेक किया जाता है कि जिस व्यक्ति की मौत हुई है, उसका कारण क्या है। उसके पास टिकट था या नहीं। यदि टिकट था तो किस स्टेशन से कब लिया था। मुआवजे का अंतिम फैसला आरसीटी का होता है।

                                                                - दीपक कुमार, चीफ पब्लिक रिलेशन आफिसर, उत्तर रेलवे।


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