कभी जैवलिन के लिए तसरता था नीरज, आज चैंपियन
कभी जैवलिन के लिए तसरता था नीरज चोपड़ा, आज बना चैंपियन।
विजय गाहल्याण, पानीपत
'कॉमनवेल्थ गेम्स में यह मेरा पहला अवसर था। देश को मुझसे पदक की उम्मीद थी। इस पर खरा उतरने के लिए मुकाबले से 17 दिन पहले ही गोल्ड कोस्ट पहुंच गया था। मौसम के अनुसार शरीर को ढाला और कड़ा अभ्यास कर तकनीक में सुधार किया। शनिवार सुबह पहला थ्रो किया तो हौसला हुआ कि पदक जीतूंगा। दिल, दिमाग और शरीर ने साथ दिया और 86.47 मीटर थ्रो कर स्वर्ण पदक जीत लिया। हालांकि ये थ्रो मेरे विश्व जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप पौलेंड में लगाए गए 86.48 मीटर से एक सेंटीमीटर से कम रहा लेकिन जीत की खुशी उससे ज्यादा रही।'
यह कहना है कि पानीपत के मतलौडा ब्लॉक के गांव खंडरा के जैवलिन थ्रोअर नीरज उर्फ निज्जू चोपड़ा का। नीरज ने शनिवार को गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ में गोल्ड जीतने के बाद सबसे पहले दैनिक जागरण से बात की। नीरज ने कहा कि उसने अपनी मां सरोज से वादा किया था कि उसकी झोली में स्वर्ण पदक डालेगा और वो निभाया भी। अब उसका पूरा ध्यान ओलंपिक पदक जीतने पर है। इसके लिए वह अपनी कमजोरी को दूर कर उन्हें ताकत में बदलने का प्रयास करेगा। खंडरा में जश्न, मां की प्रार्थना हुई स्वीकार
नीरज की जीत से उसके गांव खंडरा में जश्न का माहौल है। हर कोई बेटे पर नाज कर रहा है। मां सरोज ने भगवान से प्रार्थना की थी कि बेटा स्वर्ण पदक जीते। वह कहती हैं कि बेटे ने दिन-रात कड़ा अभ्यास किया था। न ही किसी रिश्तेदारी के यहां शादी समारोह में गया। ध्यान सिर्फ पदक पर था। उसने यह कर भी दिखाया। नीरज के किसान पिता सतीश कुमार और चाचा भीम ¨सह ने कहा कि बेटे नीरज ने पदक जीतकर परिवार, गांव और प्रदेश व देश का नाम रोशन कर दिया है। हरियाणा एथलेटिक्स संघ के प्रदेश सचिव राजकुमार मिटान ने कहा कि यह पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है। नीरज बहुत मेहनती एथलीट है। उन्हें भरोसा है कि नीरज ओलंपिक में भी पदक जीतेगा।
कभी जैवलिन के लिए तरसता था
पांच साल पहले नीरज के पास अभ्यास के लिए भी जैवलिन नहीं थी। पर उसने हौसला नहीं खोया। पिता सतीश कुमार और चाचा भीम ¨सह चोपड़ा से सात हजार रुपये लेकर काम चलाऊ जैवलिन खरीदी और हर दिन आठ घंटे तक अभ्यास किया। इसी के बूते अंडर-16, 18 और 20 की मीट व नेशनल रिकॉर्ड बना डाला। इसके बाद इंडिया कैंप में चयन हुआ। फिर एक से डेढ़ लाख रुपये तक की जैवलिन से अभ्यास का मौका मिला और पोलैंड में अंडर-20 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। चोपड़ा का कहना है कि विदेशी खिलाड़ियों से हम किसी भी तरह से कम नहीं हैं। कमी है तो हार के समय बिखर जाना और लक्ष्य से जी चुराना। जैवलिन थ्रो मंहगा खेल है। इस खेल में सरकार, संस्थाओं और सामाजिक संगठनों ने खिलाड़ियों का सहयोग करना होगा। जय-जीतू की जोड़ी ने बनाया चैंपियन
नीरज चोपड़ा ने बताया कि पंचकूला के एथलेटिक्स कोच नसीम अहमद ने उसकी तकनीक में सुधार कराया है। शुरुआती तकनीकी गुरु ¨बझौल गांव के जयवीर ¨सह ढौंचक उर्फ जय रहे। इनसे भी पहले मॉडल टाउन के जितेंद्र उर्फ जीतू ने 2011 में शिवाजी स्टेडियम में 80 किलो के नीरज को फिटनेस ट्रे¨नग कराई। इसी की बदौलत नीरज ने 22 किलो वजन कम किया। तभी वह जैवलिन थ्रो करने में माहिर बना। नीरज का तेजी से हाथ चलाना है मजबूत पक्ष
नीरज के शुरुआती कोच नसीम अहमद ने बताया कि नीरज की बात ही निराली है। औरों को जहां 50 बार में तकनीक सिखाई जाती है, नीरज उसे पांच बार में ही सीख लेता है। नीरज का हाथ बड़ी तेजी से जैवलिन को फेंकता है। यही तकनीक उसे चैंपियन बनाती है। रिकॉर्ड का बादशाह है नीरज
-अंडर-20 में वर्ल्ड रिकॉर्ड। इंडिया रिकॉर्ड।
-2016 में साउथ एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक के साथ-साथ इंडिया रिकॉर्ड की बराबरी।
-2014 में अंडर-18 नेशनल यूथ एथलेटिक्स चैंपियनशिप में नेशनल रिकॉर्ड।
-2015 में अंडर-20 फेडरेशन कप जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशप का न्यू मीट रिकॉर्ड।
-2012 में अंडर-16 नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रिकॉर्ड। ये चार किरदार, जिन्होंने नीरज को बनाया चैंपियन बचपन में नीरज सहपाठियों की कर देता था पिटाई, उल्हानों से परिजन थे परेशान नीरज चोपड़ा का 17 सदस्यों का संयुक्त परिवार है। इसमें दादा धर्म सिंह, पिता सतीश, चाचा भीम सिंह, सुल्तान व सुरेंद्र कुमार, मां, तीन चाची, पांच बहन और दो भाई शामिल हैं। 14 साल की उम्र में नीरज का 80 किलो वजन हो गया था। वह शरारती था। अपने सहपाठियों की पिटाई कर देता था। अगर कोई बुजुर्ग डांट देता था तो उसकी चारपाई की नीचे बम रख देता था। हर दिन घर पर उल्हाना आता था। परिजन भी उससे तंग आ चुके थे। परिजनों को नीरज के ज्यादा वजन की भी ¨चता थी। इसके बाद पिता, चाचा व कोच ने नीरज के वजन को तो घटाया ही, साथ में उसे चैंपियन बनाने में भी अहम भूमिका निभाई। चाचा ले गए थे जिम में
नीरज के छोटे चाचा सुरेंद्र कुमार उनसे 17 साल बड़े हैं लेकिन लगते हमउम्र हैं। सुरेंद्र ही 2011 में नीरज को मतलौडा जिम में ले गए थे, ताकि उसका वजन कम हो हो जाए। जिम बंद हो गया तो वे उसे पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में ले आए। यहां पर जेवलिन थ्रोअर ¨बझौल के जयवीर ने नीरज को जेवलिन थ्रो के लिए प्रेरित किया। दूसरे सीनियर एथलीट जितेंद्र ने नीरज की वजन घटाने में मदद की। यहीं से नीरज का खेल का सफर शुरू हुआ। जयवीर ने प्रतिभा को परखा
जयवीर ने पहले नीरज से दौड़ व जंप करवाकर देखी। इसमें सफलता नहीं मिली। इसके बाद नीरज से जेवलिन थ्रो करवाई। थ्रो अच्छा गया। इसके बाद नीरज को अभ्यास के लिए पंचकूला भेज दिया गया। वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रिकार्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद सफलता की सीढ़ी चढ़ता गया।
आर्थिक तंगी झेली, बेटे को नहीं होने दी कमी
आठ एकड़ जमीन से संयुक्त परवरिश हो रही है। नीरज को जेवलिन की जरूरत थी। इसकी कीमत 50 हजार से 1 लाख रुपये तक थी। खुराक का खर्च अलग से था। बड़े चाचा भीम ¨सह ने परिजनों का समझाया कि वे बेटे को किसी भी सुविधा से वंचित नहीं रहने देंगे। बच्चों को निजी स्कूल की बजाय सरकारी स्कूल में दाखिल कराकर रुपयों की बचत की। नीरज को जेवलिन खरीद कर दी। इससे नीरज आगे बढ़ता गया। बेटे को अनुशासन में रहने की दी सीख
पिता सतीश ने बताया कि संयुक्त परिवार ही उसकी ताकत है। वह अगर अलग होता तो नीरज को कभी खिलाड़ी नहीं बना पाता, क्योंकि डेढ़ एकड़ जमीन से परिवार चलाना भी मुश्किल है। उसके भाइयों की बदौलत ही बेटा खेला और जीता है। उसने बेटे को हमेशा समझाया है कि वह सफलता को अपने ऊपर हावी न होने दे। घमंड न करे। अनुशासन में रहकर अभ्यास करे। शायद इसी सीख की वजह से से बेटा कामयाब है। 20 किलो वजन घटाया
नीरज ने शरीर को अभ्यास की भट्ठी में तपा दिया। उसने 80 किलो वजन को घटाकर 60 किलो पर ला दिया। इसके लिए उसने अपना पसंदीदा खाना चुरमा व मिठाई छोड़ दी। तली हुई चीजों से परहेज रखा। शादी समारोह से दूरी बनाए रखी। ऐसी खाद्य सामग्री से परहेज रखा जिससे मोटापा बढ़ता है। यही उसकी जीत का मंत्र भी रहा।