Move to Jagran APP

गांव का 'निज्जू' अब देश का बेटा, खट्टे-मीठे किस्सों से भरा है नीरज चोपड़ा का बचपन, पढ़ें ये खास रिपोर्ट

बचपन में साथियों से मोटे होने का ताना सुनने वाले गांव के निज्जू आज देश के बेटे बन गए हैं और भाला यानी जैवलिन उनका साथी बन गया है। आइए जानते हैं नीरज के बचपन की कुछ दिलचस्प यादें...

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 17 Oct 2021 10:38 AM (IST)Updated: Mon, 18 Oct 2021 07:30 AM (IST)
गांव का 'निज्जू' अब देश का बेटा, खट्टे-मीठे किस्सों से भरा है नीरज चोपड़ा का बचपन, पढ़ें ये खास रिपोर्ट
ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा की फाइल फोटो।

रवि धवन/सुनील मराठा, पानीपत। चौथी क्लास की बात थी। वो दूसरे बच्चों से ज्यादा मोटा था। क्लास के बच्चे उसे छेड़ते। एक दिन तो वो इतना तंग आया और बोल दिया, अब पढ़ने नहीं जाऊंगा। मां ने पूछा, बैग कहां है। बोला कि वो तो कुएं में फेंक दिया। ...सच में बैग कुएं में ही मिला। ऐसे ही खट्टे-मीठे किस्सों से भरा है नीरज चोपड़ा का बचपन।

loksabha election banner

जैवलिन थ्रो यानी भाला फेंक में देश को टोक्यो ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जिताने वाले नीरज चोपड़ा के गांव खंडरा की चौपाल में उनके किस्सों को याद कर ग्रामीण ठहाका मारकर हंस पड़ते हैं। रिश्ते में नीरज के दादा खंडरा गांव के ही भूपेंद्र चोपड़ा बताते हैं, वैसे नीरज दूसरे बच्चों से अलग ही था। गांव में उसकी कभी शिकायत नहीं आई। हां, मोटापे की वजह से बच्चे उसे चिढ़ाते तो उसे गुस्सा आ जाता था। तभी से परिवार ने इसे गंभीरता से लिया और उसका मोटापा कम करने के लिए उसे पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में दौड़ लगाने भेजा। वहीं, से गांव का निज्जू, देश का बेटा बन गया।

नीरज के दादा धर्म सिंह के चार बेटे हैं। संयुक्त परिवार है। सबसे बड़े बेटे सतीश के यहां 24 दिसंबर, 1997 को जन्मे नीरज चोपड़ा। गांव में ही दाई ने उसे पहली बार अपने हाथ में उठाया। सतीश कहते हैं, परिवार में पहला बेटा हुआ था। गांवभर में मिठाई बांटी गई। वे चार भाई हैं। नीरज सभी का लाडला हो गया। चौपाल में सरकारी स्कूल होता था। वहीं तक पांचवीं तक पढ़ाई की। नटखट शुरू से था। दोस्तों के साथ खेलते हुए खूब मिट्टी से सना लौटता। हम उसे कुछ कहते तो दादा धर्म सिंह बीच में आ जाते। कुछ नहीं कहने देते। दादा बोलते, पोता अब नहीं खेलेगा तो कब खेलेगा। आज उसी के खेलने की वजह से दुनियाभर में उनका नाम हो गया।

धर्म सिंह हंसते हुए कहते हैं, बच्चों में कई बार खेलते-खेलते झगड़ा हो जाता। मोटा होने के कारण तेज दौड़ नहीं पाता था। जब दौड़ता था तो पूरा शरीर हिलता था। उसे डांस का शौक बचपन में बहुत था। हमेशा कोई भी गाना बजता ठुमकने लगता। मोटा होने के कारण उसके ठुमके सबको अच्छे लगते। परिवार के लोग और रिश्तेदारों को उसकी यह अदा अच्छी लगती। कुछ बड़ा हुआ तो लगा कि नीरज का मोटापा ठीक नहीं। उसे फिट करने के लिए शिवाजी स्टेडियम में दौड़ लगाने के लिए भेजा गया। वहीं उसे भाला पसंद आ गया।

चाचा भीम चोपड़ा संघर्ष के उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, गांव से तब बस की कोई सुविधा नहीं थी। मतलौडा से बस पकड़ता। स्टेडियम तक आता। कई बार शाम को पानीपत से बस नहीं मिलती। किसी न किसी की बाइक पर बैठकर आता। इस वजह से रात हो जाती। खेलने का उसे इतना शौक था कि पूरे कपड़े मैले ही होते।

मां, सरोज देवी से जब नीरज के बचपन के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कहा, नीरज की वजह से कभी किसी का उलाहना नहीं मिला। हां, होली के दिन जरूर किसी की नहीं सुनता था। सुबह से ही दोस्तों के साथ निकल पड़ता था। हम कहते रहते, दोपहर तक आ जाइयो। पर वो कहता, आज तो होली है। और शाम हो जाती, उसे रंगों का त्योहार मनाते-मनाते। किसी घर में शादी हो, पार्टी हो। उसे नाचना बहुत पसंद रहता है। हमें तो पता नहीं था कि नीरज इतना बड़ा खिलाड़ी बन जाएगा। हमारे पास तो उसकी बचपन की फोटो ही नहीं है। पिता सतीश बीच में टोकते हुए कहते हैं, मेरा तो अब तक सौभाग्य ही नहीं हुआ उसके साथ अच्छा फोटो कराने का। अगर पता होता कि नीरज इतना बड़ा खिलाड़ी बन जाएग, उसकी सारी बातें डायरी में नोट करके रखते। ये कहते हुए, मूछों पर तांव देते हुए कहते हैं, चलो नीरज तो देश का ही बेटा हो गया अब।

जब नीरज ने खरीद लिया था ढोल, दोस्तों. को नचाया

नीरज के साथ प्रैक्टिस करने वाले जतिन ने जागरण को बताया कि नीरज को होली का त्योहार बहुत पसंद है। पंचकूला में जब वे साथ रहते थे, तो कुछ बच्चे होली के दिन ढोल बजा रहे थे। नीरज ने पहले तो इन बच्चों के साथ मस्तीे की। इसके बाद उनका ढोल ही खरीद लिया। सभी खिलाड़ियों को बाहर ले आए। खुद ही ढोल बजाया और सभी को जमकर नचाया। इसी तरह, वर्ष 2011 से नीरज को देख रहे उनके सीनियर जितेंद्र जागलान ने बताया कि नीरज यहीं स्टेयडियम में ट्रेनिंग करते थे। एक दिन उनके पैर में चोट लग गई। नीरज, खुद से कहना नहीं चाहते थे कि चोट की वजह से प्रैक्टिस नहीं करनी। बताया कि शादी में जाना है। अगले दिन उन्हों ने चाचा से पूछा तो उन्हों ने बताया कि नीरज को चोट लगी थी। शादी में नहीं जाना था। बस, बता नहीं पा रहा था।

चाचा के अनुसार नीरज में यह अदा तब से ही आ गई थी जब तीन साल के हो रहे थे। कहीं चोट लगती तो चाचा को दिखाते हुए कहते-चाचा ये दर्द नहीं कर रहा है। चोट कैसे लगी, इसे लेकर डांट न पड़े, इसलिए ऐसा कहते। वास्तव में दर्द तो हो रहा होता था, लेकिन बताएं कैसे-डांट पड़ने का भय होता था। अब चाचा चोट देखकर लाडले की मरहम पट्टी में जुट जाते, क्या शरारत की? कैसे चोट लगी? यह कोई पूछता ही नहीं था।

जब हाथ सेंकते-सेंकते जल गई पराली

नीरज के पिता सतीश चोपड़ा को एक किस्सा याद है। सर्दी का मौसम था। हाथ सेंकने के लिए घास में आग लगाई। कुछ ही देर में वहां रखी पराली भी जल गई। यह देख नीरज घबरा गया और वहां से भाग गया। किसी तरह हम लोगों ने आग बुझाई। बाद में पता चला कि ये नीरज की करतूत थ। खैर, डांटकर उसे छोड़ दिया।

दादी जितना चूरमा बनाती, नीरज ही खाता

धर्म सिंह बताते हैं, चूरमा नीरज को बहुत पसंद है। नीरज की दादी ही चूरमा बनाती। चूरमा चाहे दो रोटी का होता या आठ का, खत्म पूरा नीरज ही करता। अगर कोई उससे मांगता तो नाराज हो जाता। अपनी कटाेरी छिपा दिया करता। मजाक-मजाक में जब हम उसका चूरमा उठा लेते तो उसका चेहरा देखने वाला होता।

मैं अकेला ही खेल लिया करता था

नीरज चोपड़ा का कहना है, वैसे तो भाला ही उसके बचपन का साथी हो गया था। अब तो सब जानते हैं कि मुझे चूरमा पसंद है। इसकी वजह से मोटा भी हो गया। भाले ने फिट कर दिया। होली खेलना मुझे शुरू से पसंद रहा है। उस दिन किसी की नहीं सुनता था। एक बात है, मैं अकेला भी होता तो खुद से ही खेल लिया करता। कभी कोई सामान इधर रख, कभी पत्थरों को दूर तक उछालना। शायद यही वजह होगी कि भाला फेंकने की ताकत बढ़ गई।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.