यूं बनते हैं खिलाड़ी, रानी ने बारिश के बीच भी अभ्यास नहीं छोड़ा, नीरज ने मोटापा घटाया
हरियाणा की माटी से मेहनत और लगन की बदौलत कई खेल रत्न निकले हैं। कोई हॉकी में चमका तो कोई क्रिकेट एथलीट में। राष्ट्रीय खेल दिवस पर पढि़ए ऐसे ही खिलाडि़यों के हौसलों की कहानी।
पानीपत, जेएनएन। हरियाणा की माटी से कई खेल रत्न निकले हैं। कोई हॉकी में चमका तो कोई क्रिकेट में। जैवलिन थ्रो, शूटिंग, क्रिकेट, वॉलीबाॅल और न जाने कितने खेलों में देश का परचम विश्वस्तर पर लहराया। लेकिन, उनकी इस उपलब्धि के पीछे की कहानी शायद ही कोई जानता हो। कितने संघर्षों के बाद उन्होंने मुकाम हासिल किया। राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर पढि़ए कुछ ऐसी ही हरियाणा के खिलाडि़यों की कहानी।
रानी रामपाल, हॉकी कप्तान
रानी रामपाल का जन्म चार दिसंबर 1994 को शाहाबाद मारकंडा में हुआ था। वे विश्व कप में भाग लेने वाली भारतीय हॉकी टीम की सबसे कम उम्र की खिलाड़ी थीं। वर्तमान में भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान हैं। उनकी कहानी अपनी हिम्मत के बल पर तमाम कष्टों दुश्वारियों से संघर्ष कर विजयी होने की कहानी है। रानी ने कभी बारिश में भी अभ्यास करना नहीं छोड़ा।
पिता चलाते थे तांगा
रानी के पिता आजीविका के लिए तांगा चलाते थे। परिवार में भाई-बहनों में रानी सबसे छोटी हैं। रानी के दो बड़े भाई हैं। रानी रामपाल ने अपने प्रदर्शन के बाद रेलवे में क्लर्क की नौकरी प्राप्त की और टीम के साथ-साथ परिवार की भी जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने 14 साल की उम्र में अपना पहला इंटरनेशनल मैच खेला।
ये है उपलब्धि
इसके बाद 2010 में 15 साल की उम्र में महिला विश्व कप में सबसे युवा खिलाड़ी बनी। उन्होंने 2009 में एशिया कप के दौरान भारत को रजत पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। 2010 के राष्ट्रमंडल खेल और 2010 के एशियाई खेल के दौरान भारतीय टीम का हिस्सा रही। 2013 में जूनियर महिला हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता। यह विश्व कप हॉकी प्रतिस्पर्धा में 38 साल बाद भारत का पहला कोई पदक है। इस जीत का श्रेय रानी रामपाल और मनजित कौर का है। वह आमतौर पर सेंटर फॉरवर्ड पर खेलती हैं। उनके नाम यंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट भी है।
नीरज चोपड़ा, जैवलिन थ्रो
पानीपत का बेटा। 2016 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर भाला फेंक कर कीर्तिमान बनाया। रानी रामपाल। कुरुक्षेत्र की बेटी। हॉकी इंडिया की कप्तान। वर्ष 2010 में जब वर्ल्डकप के लिए टीम चुनी गई, तब रानी भी उस टीम में थी। उम्र थी 15 वर्ष। सबसे छोटी। बारिश, आंधी तूफान में कभी अभ्यास करना नहीं छोड़ा। नवदीप सैनी। करनाल का बेटा। खेल स्टेडियम में टेनिस की बॉल से अभ्यास करते थे। दोस्त इन्हें दिल्ली ले गया। वहां गौतम गंभीर ने नवदीप की स्पीड देखकर इन्हें अभ्यास पर लगा दिया। आज करनाल एक्सप्रेस के नाम से जाने जाते हैं। ऐसे बनते हैं स्टार खिलाड़ी। खेल दिवस पर आपको मिलवाते हैं ऐसे खिलाड़ियों से। एक-एक की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं।
परिचय : नाम : नीरज चोपड़ा
जन्म तिथि : 24 दिसंबर 1997
गांव : खंडरा
उपलब्धि : -सर्वप्रथम 2012 में लखनऊ में अंडर 16 नेशनल जूनियर चैंपियनशिप में 68.46 मीटर भाला फेंक कर रिकॉर्ड बनाया।
-2016 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर भाला फेंक कर कीर्तिमान बनाया।
-2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स में 86.47 मीटर भाला फेंक कर गोल्ड जीता।
-2017 में जकार्ता एशियन गेम्स में 88.06 मीटर भाला फेंक कर गोल्ड जीता।
-2020 में टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया।
बचपन में काफी मोटे थे नीरज
संयुक्त परिवार के नीरज चोपड़ा बचपन में मोटे थे। उनका मोटापा कम करने के लिए चाचा उन्हें खेल के मैदान में ले जाते। वहीं पर उन्हें भाला फेंकने का शौक लगा। पर भाले के लिए रुपये नहीं थे। अच्छी जेवलिन की कीमत डेढ़ लाख रुपये थी। तब किसी तरह उन्हें सात हजार की जेवलिन लेकर दी। पर ये जेवलिन जैसे ही मैदान में लेकर गया, एक पत्थर से टकराकर इसकी नोक टूट गई। नीरज ये देखकर रोने लगे, क्योंकि अब नई जेविलन कैसे मिलेगी। किसी तरह परिवार ने पचास हजार की नई जेवलिन लेकर दी। इसके बाद कदम नहीं थमे।
नवदीप सैनी, क्रिकेट
अब मिलवाते हैं आपको नवदीप सैनी से। दिसंबर-2017 में दिल्ली रणजी टीम व बंगाल के बीच हुए सेमीफाइनल मैच में सात विकेट लेकर छाप छोड़ी और जुलाई 2017 में उनका चयन भारतीय ए टीम के लिए हुआ। नवदीप सैनी आईपीएल में आरसीबी के तेज गेंदबाज हैं। दिल्ली रणजी टीम और आइपीएल में राजस्थान से खेल चुके करनाल के हरफनमौला खिलाड़ी सुमित नरवाल ने पहली बार नवदीप की प्रतिभा को पहचाना। कर्ण स्टेडियम में एक टूर्नामेंट में गेंदबाजी करते हुए सुमित ने इस खिलाड़ी को देखा। वह नवदीप की बॉलिंग के कायल हो गए। सुमित इस खिलाड़ी को अपने साथ दिल्ली ले गए। यहां उसकी मुलाकात गौतम गंभीर से कराई। यहीं से उसका सफर शुरू हुआ। शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब अभ्यास न करते हों।
सेकेंड ईयर में ऐसी परिस्थितियां बन गई कि एक रास्ता ग्रेजुएशन की ओर जा रहा था और दूसरा दिल्ली में क्रिकेट की ओर। नवदीप ने ग्रेजुएशन की बजाए क्रिकेट की ओर रुख किया। पिता अमरजीत सैनी महिला एवं बाल विकास विभाग में चालक के पद से सेवानिवृत्त हैं। मां गुरमीत कौर गृहिणी हैं। बड़ा भाई मनदीप सैनी अमेरिका के ग्लासगो शहर में रहते हैं।
अनिश भनवाला, शूटर
अनिश ने आठ साल की उम्र में निशानेबाजी के गुर सीखने शुरू कर दिए थे। पिता जगपाल भनवाला ने अपनी वकील की प्रैक्टिस तक छोड़ दी। मेहनत के बलबूते 16 वर्षीय करनाल के शूटिंग खिलाड़ी अनीश ने वर्ष-2019 में ऑस्ट्रेलिया में आयोजित कॉमनवेल्थ खेल में 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल में 30 अंक के साथ वल्र्ड रिकॉर्ड बनाया था। भारत में सबसे छोटी उम्र में वल्र्ड रिकार्ड बनाने वाले अनीश पहले शूटर हैं।
दो बार राष्ट्रपति अवार्ड हासिल कर चुके
वर्ष-2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में शूटिंग में गोल्ड जीतने वाले सबसे छोटी उम्र के खिलाड़ी अनीश भनवाला दो बार राष्ट्रपति से अवॉर्ड हासिल कर चुके हैं। गोल्ड जीतने के लिए अनीश को दसवीं की शिक्षा को भी नजरअंदाज करना पड़ा था। मेडल जीतने के बाद सीबीएसई बोर्ड की ओर से खास अनीश के लिए परीक्षा देने की सुविधा मिली, जोकि उन्होंने पांच दिन में दिन-रात मेहनत कर दसवीं पास की। इसके अलावा, अनिश स्वीमिंग में भी गोल्ड जीत चुके हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने के लिए फरीदाबाद, दिल्ली और देहरादून में भी अभ्यास किया।
भाई को देखकर खेलने लगे मनोज, गोल्डन ब्वाय बने
मनोज के भाई राजेश बॉक्सिंग करते थे। मनोज इनके साथ जाते थे। मनोज ने भी खेलना शुरू कर दिया। घर में रेत का बैग बांधकर अभ्यास शुरू कर दिया। मनोज ने दिन देखा और न रात, खेलता ही रहता। राजेश ने देखा कि मनोज में बेहद प्रतिभा है। वह उसे जब उठाते, उसी समय मनोज उठ जाता और खेलने के लिए मैदान पर पहुंच जाता। कॉमनवेल्थ में स्वर्ण पदक देश की झोली में डाल दिया। इसके बाद दुनिया इन्हें गोल्डन ब्वाय कहने लगे। दो बार ओलंपिक खेल चुके मनोज का कहना है कि वह चाहे ओलंपिक पदक नहीं जीत सके पर उनके खिलाड़ी जरूर जीतेंगे।
पानीपत की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें