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पिता पहलवान नहीं बन पाए, अब बेटिया दे रहीं पटखनी

विजय गाहल्याण, पानीपत : पिता ने पहलवानी का सपना देखा था। आर्थिक स्थिति ने सपने को साकार नह

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 10:46 AM (IST)Updated: Tue, 11 Sep 2018 10:46 AM (IST)
पिता पहलवान नहीं बन पाए, अब बेटिया दे रहीं पटखनी
पिता पहलवान नहीं बन पाए, अब बेटिया दे रहीं पटखनी

विजय गाहल्याण, पानीपत : पिता ने पहलवानी का सपना देखा था। आर्थिक स्थिति ने सपने को साकार नहीं होने दिया। परिवार के गुजारे के लिए परिस्थितियों से समझौता कर लिया। भाग्य को कुछ और ही मंजूर था, जो सपना पिता ने देखा उसे बेटियां पूरा करने के लिए अखाड़े में उतर आई। बेटियों के हौसलों को देख पिता उत्साहित हो उठे। फिर बेटियों ने वह कर दिखाया जो सपना पिता ने देखा था। कई पहलवानों को पटखनी देते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। कई मेडल जीते। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है महावटी गांव की पूजा और सुताना की नैना ने। दोनों ही अंतरराष्ट्रीय पहलवानों ने 9 सितंबर को रोहतक में हुई राज्य स्तरीय कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। पूजा ने 62 और नैना ने 74 किलोग्राम में पदक जीता। अब ये दोनों 27 से 30 सितंबर को राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में होने वाली नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में दम दिखाएंगी। बेटियों को उतारा अखाड़े में

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महावटी गांव के सतबीर देशवाल ट्रक चलाते हैं। वे पहलवान बनना चाहते थे। आर्थिक स्थित कमजोर होने के कारण उनका सपना टूट गया। वहीं सुताना गांव के रामकरण को भी आर्थिक स्थिति से जूझना पड़ा। दोनों ने अपना सपना पूरा करने के लिए बेटी पूजा और नैना को अखाड़े में उतारा।

पिता और ताऊ ने दिया साथ तो पूजा बन गईं चैंपियन

पूजा ने बताया कि वे तीन बहनें और दो भाई हैं। पिता सतबीर और ताऊ ओमबीर की इच्छा की थी कि वह पहलवान बने। मां बिमला ने भी हां भर दी। उसने छह साल से जींद निडानी और अब हिसार में कोच कुलवंत नैन से दांव-पेंच सीख रही है। जूनियर नेशनल में दो स्वर्ण, एक कांस्य, सीनियर नेशनल में कांस्य, सब जूनियर में नेशनल में एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीत चुकी है। अब उसका लक्ष्य एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतना है। चोट को मात देकर नैना ने हासिल की जीत

नैना का कहना है कि पिता रामकरण कुश्ती करते थे। लेकिन राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर नहीं खेल पाए। पिता व मां बाला देवी ने उसे सात साल पहले निडानी में अखाड़े में भेज दिया। कई बार चोटिल हुई। डॉक्टरों ने कुश्ती छोड़ने के लिए कह दिया था, लेकिन पिता ने हौसला बढ़ाया। चोट ठीक होने के बाद मैट पर उतरी और स्वर्ण पदक जीता। वह स्कूल नेशनल कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण, जूनियर नेशनल में रजत, कांस्य, सीनियर नेशनल में कांस्य पदक जीत चुकी है। इसके अलावा जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में भी शिरकत कर चुकी है। अब नैना रोहतक के छोटूराम स्टेडियम में मनजीत कोच से को¨चग ले रही है।


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