आर्थिक तंगी से जूझ हासिल किया मुकाम, खो-खो में राष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान Panipat News
मनाना गांव की मुकेश ने छठी कक्षा से खो खो खेलना शुरू किया। 23वीं बार नेशनल स्तर पर मेडल जीत चुकी।
पानीपत, [रामकुमार कौशिक]। मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। कुछ ऐसे ही बुलंद हौसले से मनाना गांव की खो खो खिलाड़ी मुकेश आर्थिक तंगी को पछाड़ मुकाम हासिल किया। न केवल 23 बार नेशनल स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी है, बल्कि देश को एशियन खो-खो चैंपियनशिप में स्वर्ण तक जितवाया। हाल में भी उसका साउथ एशियन ओपन खो-खो चैंपियनशिप को लेकर दिल्ली में चल रहे नेशनल कैंप में चयन हुआ है। प्रदेश से इस कैंप में शिरकत करने वाली इकलौती खिलाड़ी हैं।
सिवाह स्थित ताऊ देवीलाल कॉलेज में बीए फाइनल ईयर में पढऩे वाली मुकेश ने बताया कि गांव में खो-खो खेल होता था। वह देखने जाती थीं। पिता के सामने खेलने का जिक्र किया। उन्होंने हामी भर दी। इसके बाद छठी कक्षा से खो-खो खेलना शुरू किया तो फिर मुड़कर नहीं देखा। मुकेश बताती हैं कि वर्ष 2016 में इंदौर में आयोजित एशियन खो-खो चैंपियनशिप जीतने वाली टीम का भी हिस्सा रहीं। एक बार साउथ एशियन चैंपियनशिप के नेशनल कैंप तक पहुंची।
गरीबी ने रोकना चाहा रास्ता
मुकेश ने बताया कि परिवार में मां के अलावा एक बहन और एक भाई है। पिता का दो साल पहले देहांत हो चुका है। वह सबसे छोटी हैं। भाई अमित कपड़े की दुकान पर काम करता है। परिवार का गुजर-बसर भाई के सहारे ही है। पिता के देहांत के बाद उसने घर के आर्थिक हालात को देख खो-खो से दूर होने का मन बना लिया था, लेकिन स्वजनों ने मैदान में डटे रहने का हौसला दिया। स्वजनों को उससे काफी उम्मीदें हैं। वो चाहती है की उनकी उम्मीदों को पूरा करने के साथ विश्व कप जीतने के मुकाम तक पहुंचे।
काठमांडू में होगी चैंपियनशिप
साउथ एशियन ओपन खो-खो चैंपियनशिप 1 से 10 दिसंबर तक काठमांडू में होगा। इसके लिए खो खो फेडरेशन ऑफ इंडिया की तरफ से महिला खिलाडिय़ों का दिल्ली में 12 से 30 नवंबर तक कैंप चल रहा है। देश के 50 खिलाड़ी भाग ले रही हैं। प्रदेश से वह इकलौती खिलाड़ी हैं।