मां हो तो ऐसी, पति गुजर गया तो मजदूरी कर बच्चों को पाला, बेटी को बना रही है खिलाड़ी
हौसला होना चाहिए, ¨जदगी तो कहीं से भी शुरू हो जाती है। इसी सोच से एक मां मजदूरी कर बेटी को बना रही है खिलाड़ी।
रामकुमार कौशिक, समालखा
हौसला होना चाहिए, ¨जदगी तो कहीं से भी शुरू हो जाती है। इसे साबित कर दिखाया है मनाना की सुमित्रा ने। आठ साल पहले पति गुजर गया। तीन बच्चे थे। दो बेटे और एक बेटी। घर नहीं था। मायके चली गई। दिहाड़ी मजदूरी की और बच्चों को पढ़ाया।
सुमित्रा बताती है कि पति की मौत के बाद उसने अपने हौसले को कम नहीं होने दिया। बुलंद हौसले के साथ आगे बढ़ने की ठानी। मायके में रह कर दिहाड़ी मजदूरी कर अपने तीन बच्चों का पेट पाल रही है, बल्कि बड़ी बेटी अन्नू को खो-खो का प्रशिक्षण दिला रही है, ताकि वो खेल में नाम कमा कर उसका सहारा बन सके।
सुमित्रा बताती है कि उसके तीन बच्चे है। दो बेटे और एक बेटी। करीब आठ साल पहले पति की तालाब में डूबने से मौत हो गई थी। उसके पास कोई सहारा नहीं बचा था। लेकिन उसने
अपने बच्चों के भविष्य को देख खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया। तीनों बच्चों को लेकर मायके में पिता के पास चली आई। काम पर जाना शुरू कर दिया। आज वो दिहाड़ी मजदूरी करके बच्चों का पेट पाल रही है। उन्हें पढ़ा लिखा भी रही है। बड़ी बेटी अन्नू दसवीं, बेटा नीरज आठवीं व सबसे छोटा बेटा गौरव छठी में पढ़ता है।
बेटी को बनाया खिलाड़ी
सुमित्रा गरीबी को मात देकर किसी तरह बेटी अन्नू को खो-खो का प्रशिक्षण दे रही है। ताकि एक दिन मशहूर खिलाड़ी बनकर उसका सहारा बने। वहीं बेटी भी मां के अरमानों को पूरा करने के लिए खेल में कमाल दिखा रही है। अन्नू ने बताया कि अंडर 17 की टीम न होने के कारण वह अंडर 19 में खेलती है। दस बार स्टेट लेवल पर खेलने के अलावा तीन बार नेशनल लेवल पर खेलकर मेडल जीत चुकी है। उसका सपना अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बन मुसीबत में मां का सहारा बनना है।
अपना नहीं है घर
पति की मौत के बाद बच्चों को लेकर मायके आई सुमित्रा का अपना कोई घर नहीं है। वह पिता व भाइयों के साथ ही उनके मकान में रहती है। उसने बताया कि कई बार सरकार की प्लाट मिलने व मकान बनाने वाली योजना को लेकर अप्लाई किया, लेकिन आज तक नंबर नहीं आया।