कर्तव्य का निर्वाह करें, रिकॉर्ड दुरुस्त रखें डॉक्टर : डॉ. नीरज नागपाल
करीब दो दशक में चिकित्सा-स्वास्थ्य का ढांचा बहुत बदल चुका है। अस्पतालों क्लीनिकों और चिकित्सकों को भी कठोर कानून के दायरे में लाया गया है। मरीज और डॉक्टर के बीच खाई बढ़ती जा रही है। सामाजिक-राजनीतिक दायरा बढ़ाएं।
जागरण संवाददाता, पानीपत : करीब दो दशक में चिकित्सा-स्वास्थ्य का ढांचा बहुत बदल चुका है। अस्पतालों, क्लीनिकों और चिकित्सकों को भी कठोर कानून के दायरे में लाया गया है। मरीज और डॉक्टर के बीच खाई बढ़ती जा रही है। सामाजिक-राजनीतिक दायरा बढ़ाएं। अक्सर होने वाली छोटी गलतियों को रोकें और रिकॉर्ड दुरुस्त रखें, तभी कानूनी पचड़ों से बचा जा सकता है।
यह बातें डॉ. नीरज नागपाल ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की जिला इकाई की ओर से होटल ले-रत्न में मेडिको लीगल कांफ्रेंस में कही। उन्होंने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नगर निगम, बिजली निगम, दमकल विभाग और स्वास्थ्य विभाग से ली जाने वाली एनओसी पूरी तरह दुरुस्त होनी चाहिए। महंगे इलाज खर्च में पारदर्शिता बरतें। तीमारदारों को लगभग खर्च जरूर बताएं। 24 घंटे में कम से कम तीन बार बकाया भुगतान के लिए याद दिलाएं। वेंटीलेटर पर ले जाने से पहले मरीज के परिजनों को जरूर बताएं।
हाई कोर्ट के वकील पवन मुटनेजा ने कानूनी धाराओं की जानकारी दी। हरियाणा मेडिकल काउंसिल के पर्यवेक्षक डॉ. पंकज मुटनेजा और डॉ. बीके गुप्ता ने भी चिकित्सकों को संबोधित किया। अंतिम चरण में हुए पैनल डिस्कशन में काल्पनिक केसों पर चर्चा हुई।
आइएमए, पानीपत की अध्यक्ष डॉ. अंजलि बंसल ने संचालन करते हुए कान्फ्रेंस का उद्देश्य बताया। इस मौके पर डॉ. पवन बंसल, डॉ. मोहित आनंद, डॉ. रितेश आनंद, डॉ. गिरीश अरोड़ा, डॉ. शबनम बतरा, डॉ. जसबीर मलिक, डॉ. मनीषा, डॉ. गौरव श्रीवास्तव, डॉ. सुदेश खुराना, डॉ. अभिनव मुटनेजा, डॉ. ललित, डॉ. सुधीर बतरा, डॉ. गीता, डॉ. संगीता और डॉ. मोना शर्मा मौजूद रहे। डॉक्टर का अहित, उसमें मरीज का नुकसान :
डॉ. नागपाल ने कहा कि राइट टू हेल्थ में हर मरीज के अधिकार सुरक्षित हैं। डॉक्टर के साथ हिसा होती है तो उससे सेवाएं बाधित होती है। इसका दोषी हिसा करने वाला होना चाहिए, न कि डॉक्टर। सरकार वाहनों की तरह डॉक्टरों का बीमा करे, ताकि अनजाने में हुई चूक का उसे पहले से निर्धारित हर्जाना भरना पड़े। अनेक केस ऐसे हैं कि कोर्ट का लगाया जुर्माना अस्पताल बेचकर ही पूरा हो सकता है। दस बेड के अस्पताल के लिए डॉक्टर को 27 विभागों से एनओसी को उन्होंने डॉक्टरों का दुर्भाग्य बताया। कमेटी हो गई फेल :
आइएमए ने विवादों के निस्तारण और समझौते के लिए हर जिले में पांच सदस्यीय कमेटी बनाने का निर्णय लिया था। चंडीगढ़ में इसकी शुरुआत हुई। डॉ. नागपाल की मानें तो मरीज और तीमारदार उस कमेटी के निर्णय से संतुष्ट नहीं होते थे। इसलिए हर जगह कमेटी फेल रहीं।