ये करते हैं समय का दान, झुर्रियों भरे चेहरों पर लाते मुस्कान
Great initiative हरियाणा के करनाल के मानवता जनशक्ति फाउंडेशन और हरदीप। हरियाणा के आश्रमों में हरदीप की टीम सेवा करने पहुंचती है। बुजुर्गों संग लेते सेल्फी करते दुख-सुख साझा। टीम के पहुंचने पर बुजुर्गों के भी चेहरे पर भी मुस्कान आ जाती है।
करनाल, [पवन शर्मा]। जिन बच्चों को अंगुली पकड़ चलना सिखाया। सवाल करने वाले बच्चों को हर बार मुस्कुरा कर ही जवाब दिया। कद से बड़े हुए उन्हीं बच्चों के पास , उम्र में बड़़े हुए अपने मां-पिता के लिए दो मिनट का वक्त नहीं बचा है। ऐसे ही बुजुर्गों के लिए समय का दान करते हैं कुछ पराये , जो अब अपने से होते जा रहे हैं। थोड़ा वक्त इनके साथ बिताकर झुर्रियों भरे चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं हरियाणा के करनाल जिले के गांव गोंदर के निवासी हरदीप राणा।
यह कहानी पढ़ते वक्त आपकी आंखें सजल हो सकती हैं। यादों की सांकल अगर पीछे खींची जास सके , बुजुर्ग माता-पिता के लिए सम्मान और बढ़ जाए तो हरदीप और उनके मानवता जनशक्ति फाउंडेशन की मुहिम निश्चित ही सफल होगी। उनकी टीम ने करनाल ही नहीं , कुरुक्षेत्र , कैथल और अंबाला में भी समय दान अभियान शुरू किया है। अलग-अलग जिले के आश्रम में पहुंचकर अपनी टीम के साथ बुजुर्गों की सेवा करते हैं।
इन आश्रमों में हर चेहरे की एक ही कहानी है। 60 वर्षीय विजय कपूर। दिल्ली के टैगोर गार्डन में इनकी अपनी कोठी थी। करनाल के सेक्टर 13 और प्रेम नगर में भी उन्होंने संपत्ति बनाई। वही शख्स अब ' अपना आशियाना आश्रम Ó में जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं। पिछले वर्ष उनकी पत्नी का देहांत हो गया। तब से तनावग्रस्त हो गए। उन्हें बच्चों ने यहां छोड़ दिया। एक भाई हैं , उन्होंने भी विजय कपूर को विक्षिप्त करार दे दिया। उनका इलाज कर रहे डा. अरुण चोपड़ा जागरण को बताते हैं , विजय कपूर को पक्षाघात भी हुआ है। अक्सर सूनी आंखों से दीवारों को ताकते रहते हैं तो महसूस होता है कि अतीत की यादें उन्हें किस हद तक सता रही हैं। कुछ युवाओं का दल यहां आ पहुंचता है तो उनके साथ खूब घूलते-मिलते हैं।
पंजाब से आए जोगिंदर घंटों उदास बैठे रहते हैं। जागरण
ऐसी ही दास्तान है पंजाब के जालंधर से संबंध रखने वाले 68 वर्षीय जोगिंदर सिंह की जो बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करती है। जोगिंदर सिंह एक जमाने में मीडिया से जुड़े थे। खुशवंत सिंह से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक से परिचय होने का वह दावा करते हैं। वृंदावन के इस्कान आश्रम जाते समय एक हादसे में उनकी एक टांग कट गई। इसके बाद शायद कोई अपना ही उन्हें यहां छोड़कर चला गया। इस बीच जो कुछ उनकी जिंदगी में हुआ , उसके बारे में वह कुछ नहीं बताते और जब परिवार का जिक्र चलता है तो पूरी तरह खामोश हो जाते हैं। बहुत कुरेदने पर सिर्फ फीकी सी हंसी के साथ इतना भर कहते हैं कि सब कुछ है लेकिन कुछ भी नहीं...! निराश होने पर सबसे अलग किसी कोने में जाकर घंटों तक अकेले बैठे रहते हैं।
ऐसे ही एकाकी जीवन जी रहे बुजुर्गों के बीच पहुंचने वाले हरदीप और उनकी टीम के सदस्य बिस्किट , रस्क , ब्रेड , नमकीन , मठरी व मिठाइयों के साथ टाफियां और चाकलेट ले जाना नहीं भूलते। हरविंद्र बताते हैं कि इन बेसहारा निशक्तजनों को तब बहुत अच्छा लगता है , जब वह और उनकी टीम केवल सामग्री बांटने के बाद वापस नहीं लौटती बल्कि बुजुर्गों के साथ लंबा समय बिताकर हर जरूरत का ख्याल रखती है। फाउंडेशन की टीम में ज्यादातर महिलाएं हैं। आश्रम में वे किसी की बहन बन जाती हैं तो किसी की बेटी। इनमें कृष्णा गुप्ता , सुशीला गोयल , मुक्ता कालरा , प्रविता , ललिता कुमारी , मधु बालियान और गौरी शामिल हैं। पुरुष सदस्यों में हरदीप सहित हेमचंद्र गुप्ता , सतीश पांचाल , गुलाब सिंह पोसवाल , वासुदेव गौतम भी आत्मीयता के साथ बुजुर्गों से मिलते हैं। किसी को नया रूमाल पाकर बहुत खुशी होती है तो कोई मोबाइल फोन में टीम के सदस्यों संग अपनी सेल्फी देख देर तक मुस्कुराता रहता है। टीम के सदस्य बुजुर्गों को पसंदीदा गीत सुनाते हैं तो कई बार किसी बेसहारा की आपबीती सुनकर खुद उनकी आखें नम हो उठती हैं। करनाल के आश्रम में 139 अनाथ रहते हैं , इनमें 35 लोग ऐसे हैं , जिनकी उम्र 60 से अधिक की है। कुछ मानसिक रूप से दिव्यांग हैं , कुछ अधेड़ भी हैैं।
करनाल के आश्रम में मौजूद शिवचरण, जो हर किसी को पिताजी कहकर बुलाते हैं। जागरण
यहां हैं सबके लिए प्रार्थना करने वाले शिवचरण
इनका नाम है शिवचरण। उम्र है 62 वर्ष। हर किसी को पिताजी ही कहकर बुलाते हैं। करनाल के ही एक गांव से संबंध रखने वाले शिवचरण के परिवार में कौन-कौन हैं , इस बारे में वह कुछ नहीं बताते और न ही उनसे मिलने या उनका हालचाल जानने के लिए यहां कोई आता है। अपने कमरे में सुबह और शाम पूजा पाठ करते हैं। कोई बीमार होता है तो भगवान से प्रार्थना करने बैठ जाते हैं। शिवचरण पूछने पर बड़े भोलेपन से कहते हैं-मेरे तो सब पिताजी यहीं पर रहते हैं , मुझे और किसी के बारे में कुछ नहीं पता...!
डा. राजीव गुप्ता। सौ. स्वयं
इनके पास कहानियों का भंडार, खूब सुनें
स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान , रोहतक में इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ के निदेशक डा. राजीव गुप्ता का कहना है कि ऐसे आश्रमों ही नहीं , घरों में भी बुजुर्ग एक तरह से अकेलेपन का शिकार रहते हैं। उनके साथ कोई बात नहीं करना चाहता। आप दुकान से मिठाई खरीद सकते हैं , उपहार ला सकते हैं लेकिन समय तो कहीं से नहीं खरीदा जा सकता। अगर घर में बुजुर्ग हैं तो परिवार के सदस्य प्रतिदिन एक-एक घंटे का समय उन्हें दें। इससे घर के सभी सदस्य खुद भी मानसिक रूप से मजबूत होंगे। बच्चे जब अपने पिता को दादा से बात करते हुए देखेंगे , तो उन्हें भी ऐसी ही प्रेरणा मिलेगी। बुजुर्गों से आप बात करेंगे तो आपको पता चलेगा कि उन्होंने कितनी चुनौतियों का सामना किया। आपको उनसे ही कठिनाइयों से लडऩे की ताकत मिल जाएगी। इनके पास कहानियों का भंडार है। खूब सुनें।
इस तरह शुरू किया समय का उपहार
हरदीप बताते हैं , वह पहली बार आश्रम में काफी उपहार लेकर गए थे , लेकिन बुजुर्गों के चेहरे पर वैसी खुशी नहीं थे , जो वह देखना चाहते थे। यह जानने के लिए उनके साथ कुछ समय बिताया। कुछ देर में ही बुजुर्ग उनसे खुलने लगे। किसी ने अपने पुराने खुशनुमा दिन बताए तो किसी ने चुनौतियां साझा की। उनकी बात ही वह सुनते रहे। हरदीप ने गौर किया कि वे जो उपहार लाए थे , उनकी तरफ बुजुर्गों का ध्यान नहीं था। वे तो उनसे अपने मन की बात कहना चाहते थे। तब से ठान लिया कि वह समय का उपहार लेकर इनके पास जाएंगे।
पानीपत की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें