Janmashtami 2022: महाभारत का हुआ था शंखनाद तो हरियाणा में इस तीर्थ से आगे बढ़े थे श्रीकृष्ण
Janmashtami 2022 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हर तरफ धूम है। हरियाणा में श्रीकृष्ण के जन्म की तैयारी चल रही है। भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी यहां पर कई यादें हैं। मान्यता है कि महाभारत का जब शंखनाद हुआ था तो करनाल से ही श्रीकृष्ण आगे बढ़े थे।
जलमाना (करनाल), [मोतीलाल चौहान]। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व अपनी प्राचीन परंपराओं और गाथाओं को याद करने का भी विशिष्ट अवसर है। इन्हीं पौराणिक गाथाओं का एक प्रसंग जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित गांव अलावला स्थित माता शाकुंभरी तीर्थ से जुड़ा है। क्षेत्र में प्रचलित किवंदती के अनुसार महाभारत युद्ध के समय जब द्वारकाधीश भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के लिए प्रस्थान किया तो हरे-भरे पेड़ों के बीच स्थित विशाल सरोवर वाली इसी एकांत जगह पर पांडवों ने उनके आगमन पर स्वागत द्वार लगाया था।
यह स्थान प्राचीन कृष्ण द्वार कहलाता है। उनके आगमन से पूर्व इस पूरे क्षेत्र को माता शाकुंभरी देवी तीर्थ कहा जाता था, जो आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध है। अपने समय के गौरवशाली अतीत से जोड़ने वाला यह प्राचीन तीर्थ एक बार फिर अपनी प्राचीन पहचान की मांग कर रहा है। कहा जाता है कि इस गांव का मौजूदा नाम अलावला वस्तुत: खंडित स्वरूप है जबकि इसका असली नाम लवकुशपुरा था।
इतिहास के अनुसार रामायण काल में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पुत्र लव और कुश ने यहां की धरा पर लंबा समय बिताया था। बाद में अपभ्रंश होने के चलते गांव को आधा-अधूरा व खंडित करके अलावला बुलाया जाने लगा। ग्रामीणों की सरकार से मांग है कि गांव के नाम का दुरुस्त कर पुराना व ऐतिहासिक नाम सरकारी दस्तावेजों सहित लेखों अभिलेखों में भी दर्ज किया जाए।
यहां से गुजरे थे श्रीकृष्ण
मंदिर के मुख्य सेवादार रामपाल सिंह राणा, सुधीर सिंह राणा, अक्षय वर्मा, इलम सिंह राणा, भंवर सिंह राणा, अक्षय वर्मा, नरेश राणा, सतपाल फ़ौजी ने बताया कि यह विशिष्ट स्थल श्रद्धालुओं को रामायण और महाभारत काल से जोड़ता है। उन्होंने बताया कि महाभारत के युद्ध की घोषणा हुई तो द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के लिए प्रस्थान किया। हरे-भरे पेड़ों के बीच स्थित विशाल सरोवर वाली इसी एकांत जगह पर पांडवों ने उनके आगमन पर स्वागत द्वार लगाया था। यह स्थान कृष्ण द्वार के नाम से जाना जाता है। पहले इस स्थान को माता शाकुंभरी देवी तीर्थ कहा जाता था, जो अब भी इसी नाम से प्रसिद्ध है।
इस ऐतिहासिक तीर्थ व श्रीकृष्ण द्वार का उल्लेख राजस्थानी भाटों के पास भी पीढ़ी दर पीढ़ी लिखा मिलता है। बुजुर्ग भी पीढ़ी दर पीढ़ी भगवान श्री कृष्ण के स्वागत द्वार का जिक्र करते आए है। रामपाल सिंह राणा का कहना है कि गांव का नाम अलावला खंडित स्वरूप है जबकि इसका असली नाम भगवान श्री रामचंद्र जी के पुत्रों नाम पर लवकुशपुरा था।
48 कोसीय परिधि में शामिल
शिव मंदिर एवं प्राचीन तीर्थ माता शाकुंभरी देवी तीर्थ संचालक बाबा ब्रह्मचारी गिरी एवं समिति के प्रधान कबूल सिंह राणा ने बताया कि गत वर्ष दिसंबर में कुरुक्षेत्र गीता महोत्सव के दौरान मुख्यमंत्री मनोहर लाल की उपस्थिति में कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड ने इस प्राचीन एवं पवित्र स्थान को 48 कोसीय परिधि में शामिल किया था। बोर्ड से आग्रह किया गया है कि इस स्थान का शीघ्र जीर्णोद्वार कराया जाए ताकि नेशनल हाईवे-709ए स्थित प्राचीन स्थल के प्रति लोगों की आस्था बरकरार रहे। पौराणिक माता शाकुंभरी देवी तीर्थ पर नवरात्र में भजन कीर्तन और चौदस पर भंडारा एवं मेला आयोजित किया जाता है।
सात एकड़ में परिधि
सात एकड़ में फैले इस तीर्थ के डेढ़ एकड़ क्षेत्र में शिव मंदिर, माता शाकुंभरी देवी जी एवं सैंकड़ों वर्ष पुराना पीपल का पेड़ है। इसके अलावा समय-समय पर इस स्थान में अपनी सेवाएं दे चुके गिरी पंथ के साधुओं की समाधि बनी हैं। मुख्य प्रवेश पर नगर खेड़ा (क्षेत्रपाल) का स्थान है। ग्रामीणों का कहना है कि इस स्थान पर आज भी महाभारत काल से चली आ रही प्रथा के अनुरूप उत्सवों पर केले के पत्तों से श्रीकृष्ण द्वार बनाया जाता है। ग्रामीणों के अनुसार बुजुर्ग बताते आए हैं कि इस स्थान पर प्राचीन कृष्ण द्वार हुआ करता था, जो अब अस्तित्व में नही है। जब इस स्थान पर गिरी पंथ के साधू आए जिन्होंने कुटिया बनाई थी। बाबा भगवान दास ने 1963 में मंदिर निर्माण किया। फिर बाबा शंभुगीरी ने कायाकल्प किया। मंदिर में प्रतिदिन सुबह चार बजे शंखनाद होता है और आरती में श्रद्धालु भाग लेते हैं। मंदिर में प्रवेश पर श्रद्धालु ओउम नमोनारायण का जयघोष करते हैं।