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धर्मनगरी है राधा-कृष्ण के आखिरी मिलन की साक्षी, इस पेड़ के नीचे मिलते थे प्रभु

महाभारत की धरा कुरुक्षेत्र से श्रीकृष्ण भगवान का गहरा नाता है। यही वह धरती है जो राधा-कृष्ण के आखिरी मिलन की साक्षी है। श्रीव्यास गौड़िया मठ के पुजा‍रियों का ये दावा है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 05:08 PM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 05:08 PM (IST)
धर्मनगरी है राधा-कृष्ण के आखिरी मिलन की साक्षी, इस पेड़ के नीचे मिलते थे प्रभु
धर्मनगरी है राधा-कृष्ण के आखिरी मिलन की साक्षी, इस पेड़ के नीचे मिलते थे प्रभु

पानीपत/कुरुक्षेत्र, जेएनएन। धर्मनगरी की धरती राधा और कृष्ण के आखिरी मिलन की भी गवाह रही है। श्रीमद्भागवद् पुराण में इसका वर्णन भी मिलता है। मान्‍यता है कि यहां पर एक वृक्ष है जहां आखिरी बार राधा और भगवान श्रीकृष्ण का आखिरी बार मिलन हुआ था। 

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व्यास गौड़िया मंदिर प्रभारी गोपी गौरव गिरी महाराज ने बताया भगवान श्रीकृष्ण जब बलराम सहित गोकुल छोड़कर कंस वध के लिए मथुरा जा रहे थे तब सभी गोपियां, राधा रानी, यशोदा और नंद बाबा उनके विरह में दुखी हो गए थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों से एक बार फिर मिलन का वचन दिया था और उसे द्वापर युग में सोमवती अमावस्या के दिन पूरा किया था। राधा गोकुलवासियों के साथ सोमवती अमावस्या पर कुरुक्षेत्र में आई थीं। 

Janmashtami 2020 Kurukshetra

आज भी मौजूद है यह वृक्ष

मान्‍यता है कि श्रीकृष्ण और राधा का आखिरी मिलन कुरुक्षेत्र की धरती पर हुआ था। व्यास गौड़िया मठ स्थित तमाल वृक्ष उनके मिलन का साक्षी बताया जाता है। ऐसी मान्यता भी है कि इसी तरह के वृक्ष वृंदावन के निधि वन में पाया जाता है। यह वृक्ष राधा-कृष्ण के अटूट प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

वृंदावन के अलावा कहीं नहीं मिलता है तमाल वृक्ष

व्यास गौड़िया मंदिर प्रभारी गोपी गौरव गिरी महाराज ने बताया कि मंदिर स्थित तमाल वृक्ष वृंदावन के निधि वन में पाया जाता है। ये वह वृक्ष है जिसको राधा कृष्ण की अनुपस्थिति में कृष्ण समझकर इससे मिला करती थीं। निधि वन में तमाल के वृक्ष कि छाया में भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी मिला करते थे। यही वृक्ष कुरुक्षेत्र में राधा और कृष्ण की लीलाओं को संजोये हुए है। इस वृक्ष की बनावट कुछ इस प्रकार की है कि इस वृक्ष की हर टहनी एक-दूसरी टहनी के साथ ऊपर जाकर मिल जाती है।

इस वृक्ष की टहनियां जैसे-जैसे ऊपर की ओर बढ़ती है तो वे एक दूसरी के साथ लिपट जाती है। उन्होंने बताया कि वर्ष में एक खास तरह के फूल इस वृक्ष पर आते हैं जिनकी सुगंध न केवल मंदिर परिसर बल्कि आसपास के वातावरण को भी सुगंधित कर देती है। उन्होंने बताया कि कोरोना के चलते इस बार बड़े स्तर पर तो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी नहीं मनाई जाएगी, लेकिन ठाकुर जी काे वृंदावन से आई रंग बिरंगे मोतियों से तैयार वस्त्रों व आभूषणों से सुसज्जित किया जाएगा।


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