जैन ने शाह को हराकर चौंकाया, राजनीति की तस्वीर ही बदल दी
ओमप्रकाश जैन ने राजनीति के ऐसे मायने बदले कि उन्होंने बलबीरपाल शाह को चुनाव हराकर पूरे प्रदेश को चौंका दिया। पहले उन्होंने बंसीलाल का साथ दिया। सरकार गिरी तो ओमप्रकाश चौटाला का समर्थन किया। चौटाला ने उन्हें शिक्षा मंत्री का पद सौंपा। पानीपत शहर की राजनीति को उन्होंने बदल दिया।
रवि धवन, पानीपत
ओमप्रकाश जैन नहीं रहे। उनके निधन की सूचना मिलते ही वाट्सएप से लेकर फेसबुक तक ऐसे नेताओं ने भी शोक जताया, जो उनके राजनीतिक विरोधी थे। दरअसल, यही जैन की खूबी थी। वह जिनसे भी मिलते, उन्हें अपना बना लेते। उनका जीवन ऐसे अनेक किस्सों से भरा है।
वर्ष 1996 की बात है। जैन को वैश्य बिरादरी का नेता माना जाता था। पंजाबी बिरादरी के लोग बलबीरपाल शाह को अपना नेता मानते। पंजाबी वोट ज्यादा थे। सो, बलबीरपाल शाह पानीपत शहर से हार जाएंगे, ऐसी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। जैन ने उन दिनों आजाद उम्मीदवार के तौर पर नामांकन कर दिया। जैन मुहल्ले में रात को करीब 11.30 बजे प्रचार के लिए पहुंचे थे। उन्होंने देखा, दो भाई सामान उतार रहे थे। दोनों पंजाबी थे। दोनों ने ही जैन को अनदेखा कर दिया। लौटते समय जैन उन दोनों भाइयों के पास रुके। दोनों से कहा, भाई आप इतनी रात को भी मेहनत कर रहे हो। शाबाश। बहुत आगे जाओगे। कोई मदद चाहिए तो बता देना। कुछ मिनट की बात में उन्होंने दोनों भाइयों को इतना अपना बना लिया कि अगले दिन जैन के नाम का झंडा उनकी छत पर लगा था।
ओमप्रकाश जैन ने राजनीति के ऐसे मायने बदले कि उन्होंने बलबीरपाल शाह को चुनाव हराकर पूरे प्रदेश को चौंका दिया। पहले उन्होंने बंसीलाल का साथ दिया। सरकार गिरी तो ओमप्रकाश चौटाला का समर्थन किया। चौटाला ने उन्हें शिक्षा मंत्री का पद सौंपा। पानीपत शहर की राजनीति को उन्होंने बदल दिया। दरअसल, अब तक जो नेता आम लोगों को अपने पास नहीं आने देते थे, वहीं जैन आमजन के बीच पहुंच गए। जैन की राजनीति का यही प्रभाव सबसे बड़ा था।
पानीपत शहर के बाद जब पानीपत ग्रामीण सीट बनी तो उन्होंने वही राह चुनी, जिसके लिए वह जाने जाते थे। गरीब, पिछड़े लोगों की आवाज बने। बाहरी कालोनियों को वैध करने का मुद्दा उठाया। उनके लिए सुविधाएं मांगी। ग्रामीण क्षेत्र में वह इतने प्रभावी हुए कि 2009 के चुनाव में एक बार फिर जीत दर्ज की। कांग्रेस की सीटें कम आईं तो उन्होंने आजाद विधायकों को एकत्र किया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार में परिवहन मंत्री बने।
(जैसा उनके भाई रामभज जैन और वृंदावन ट्रस्ट के संयोजक विकास गोयल ने बताया।) इस तरह शुरू हुआ राजनीतिक सफर
मूल रूप से पानीपत के जाटल गांव के रहने वाले ओमप्रकाश जैन ने पानीपत में राइस मिल लगाई। परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था। ओमप्रकाश जैन हमेशा गरीबों के उत्थान की बात करते। राइस मिल के संबंध में अफसरों के पास जाना होता। वहीं पर गांव का कोई आदमी आ जाता तो अपना काम छोड़कर उसके साथ चले जाते। इसका असर ये हुआ कि जाटल गांव ने ही उन्हें सर्वसम्मति से अपना सरपंच चुन लिया। वह दो बार सर्वसम्मति से सरपंच बने। उन्होंने छह बार विधानसभा का चुनाव लड़ा। दो बार जीते। पांच बार आजाद लड़े, एक बार कांग्रेस के टिकट पर। दोनों बार निर्दलीय ही जीते। परिवार में बड़े भाई रामभज जैन हैं। रामभज कारोबार संभालते, ओमप्रकाश राजनीति की सीढि़यां चढ़ते गए। ओमप्रकाश के बेटे अतुल जैन जीडी गोयंका स्कूल के निदेशक हैं। चार बेटियां हैं। तीन बातें, जो वो सिखा गए
1- जनता के बीच रहना : नेता को जनता के बीच ही रहना चाहिए। गांव का कोई भी व्यक्ति उनके घर की रसोई तक में पहुंच सकता था।
2- परायों को अपना बनाना : सियासी विरोधियों को भी अपना बना लेते। लोकसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार संजय भाटिया ने अपनी स्कूटी पर बैठाकर उन्हें घुमाया। हालांकि जैन 2019 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े।
3- विनम्रता : उनके राजनीति में आने से पहले पानीपत के बड़े नेता जनता के बीच सहज नहीं रहते थे। जैन इतने विनम्र रहे कि जनता के बीच आते ही, लोगों को लगता कि उनका अपना उनके बीच में खड़ा है। जैन से ही पानीपत शहर की राजनीति में यह परिपाटी आई।