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Haryana के होनहार ने रैकेटलॉन चैंपियनशिप में पांच पदक जीत रचा इतिहास, बढ़ाया देश का मान

आइटी इंस्पेक्टर सिद्धार्थ ने रैकेटलॉन चैंपियनशिप में पांच पदक जीत इतिहास रचा। थाईलैंड ओपन रैकेटलॉन और इंडिया ओपन अंतरराष्ट्रीय रैकेटलॉन में पदक जीते।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Thu, 16 Jan 2020 09:49 AM (IST)Updated: Thu, 16 Jan 2020 05:55 PM (IST)
Haryana के होनहार ने रैकेटलॉन चैंपियनशिप में पांच पदक जीत रचा इतिहास, बढ़ाया देश का मान
Haryana के होनहार ने रैकेटलॉन चैंपियनशिप में पांच पदक जीत रचा इतिहास, बढ़ाया देश का मान

पानीपत, [विजय गाहल्याण]। महराणा गांव के 29 वर्षीय आइटी इंस्पेक्टर सिद्धार्थ नांदल ने एक सप्ताह में दो अंतरराष्ट्रीय रैकेटलॉन चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण और दो रजत पदक जीत इतिहास रच दिया। दो प्रतियोगिताओं में पांच पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं।

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उन्होंने थाईलैंड में 3 से 5 जनवरी को ओपन थाइलैंड रैकेटलॉन चैंपियनशिप में डबल्स में स्वर्ण सिंगल में रजत और राजस्थान के उदयपुर में 11 से 12 जनवरी को इंडियन ओपन अंतरराष्ट्रीय रैकेटलॉन प्रतियोगिता में डबल्स व मिक्स डबल्स में स्वर्ण व सिंगल में रजत पदक जीता है। इससे पहले सिद्धार्थ ने नवंबर 2019 में जर्मनी में हुई विश्व रैकेटलॉन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था।   

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नौकरी के साथ-साथ हर दिन छह घंटे अभ्यास किया

गाजियाबाद में इनकम टैक्स विभाग के इंस्पेक्टर सिद्धार्थ नांदल ने बताया कि रैकेटलॉन बैडमिटंन, टेबिल टेनिस, स्कवैश और बैडमिंटन का मिश्रित खेल है। वह बैडमिंटन और टेबल टेनिस का खिलाड़ी रहे हैं। स्कवैश और लॉन टेनिस का दिल्ली के श्रीफोर्ट स्टेडियम व यमुना स्पोट्र्स कांप्लेक्स में प्रतिदिन छह घंटे अभ्यास करते हैं। 

हर महीने खर्च होते हैं 70 हजार, सीनियर खिलाड़ी ने दिया साथ

सिद्धार्थ बताते हैं कि रैकेटलॉन नया खेल हैं। देश में इसके कोच भी नहीं हैं। इसी वजह से अभ्यास करने में दिक्कत हुई। हर महीने 70 हजार रुपये खर्च होते हैं। अंतरराष्ट्रीय सीनियर खिलाड़ी मुंबई में नेवी के कमांडर आशुतोष पैडनेकर ने भी उसे ट्रेनिंग दी और तकनीक में सुधार कराया। रैकेटलॉन इंडिया स्‍पोट्र्स के प्रधान कौशल कुमार चीमा के सहयोग की वजह से पदक जीत पाया।  

खेल की वजह से घूमना छूट गया 

किसान सुरेंद्र नांदल ने बताया कि छोटा बेटा सिद्धार्थ घूमने का शौकीन है। नौकरी की वजह से खेल छूट गया था। उसकी व पत्नी निर्मला की इच्छा थी कि सिद्धार्थ फिर से खेले और देश के लिए पदक जीते। परिवार में खेल का माहौल है। इसका असर बेटे पर पड़ा और उसने घूमना छोड़ कड़ा अभ्यास कर स्वर्ण पदक जीता। इससे परिवार व गांव का मान भी बढ़ा है। 


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