जीरो बजट खेती पर हरियाणा में देश का सबसे बड़ा कृषि सम्मेलन, परखेगा आइसीएआर
कर्म का संदेश देने वाली धरा कुरुक्षेत्र ने अब जीरो बजट खेती का कॉन्सेप्ट देश के सामने रखा है। राज्यपाल डॉ. देवव्रत की पहल पर शुरू हुई दो दिवसीय चर्चा। पढि़ए, क्या हुआ मंथन।
पंकज आत्रेय, कुरुक्षेत्र। हरियाणा से किसानों के लिए एक बड़ी पहल हुई है। जीरो बजट खेती की अवधारणा को लेकर पूरे देश में चर्चा शुरू हो गई है। कई कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति, वैज्ञानिक, आइसीएआर और किसान रविवार को कुरुक्षेत्र गुरुकुल में इसका नमूना देखने पहुंचे। दो दिवसीय कार्यशाला में इस मुद्दे के हर पहलू पर मंथन हो रहा है। शून्य लागत प्राकृतिक खेती के जनक कहे जाने वाले पद्मश्री डॉ. सुभाष पालेकर और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य डॉ. देवव्रत ने इसकी जमकर पैरवी की। वहीं, आइसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा ने जैविक खेती को प्राथमिकता पर रखते हुए इसे वैज्ञानिक कसौटी पर परखने की बात कही।
डॉ.महापात्रा ने कहा, रासायनिक और जैविक खेती के साथ जीरो बजट खेती का कोई द्वंद्व नहीं है, लेकिन इसकी केमिकल वाली खेती से तुलना करेंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का मुखिया होने के नाते कहूंगा कि जीरो बजट खेती के एक-दो साल बाद जो नतीजे होंगे, उसकी यहां आकर फिर से चर्चा करेंगे। कृषि विश्वविद्यालय में जीरो बजट खेती का पाठ्यक्रम तय करके पढ़ाया जाएगा।
खुलेंगे चार शोध संस्थान
आइसीएआर के महानिदेशक डॉ. महापात्रा ने बताया कि जैविक खेती पर देश भर में 20 स्थानों पर शोध चल रहा है। अब जीरो बजट खेती के लिए चार संस्थानों में शोध होगा। इनमें कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर, कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना, कृषि शोध संस्थान मोदीनगर और गुरुकुल कुरुक्षेत्र शामिल हैं। उन्होंने कहा कि जैविक हो या जीरा बजट, विज्ञान सम्वत खेती होनी चाहिए। इसलिए मिलकर काम करेंगे।
हरियाणा-पंजाब की स्थिति चिंताजनक
आसीएआर की रिपोर्ट के अनुसार मृदा जैविक कार्बन के मामले में हरियाणा और पंजाब की स्थिति चिंताजनक है। दोनों राज्यों में यह 0.1 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। उत्पादकता घट रही है। भूजल स्तर नीचे गिरता जा रहा है, जिसकी वजह से मिट्टी की आद्र्ता कम हो रही है। महानिदेशक डॉ. महापात्रा ने कहा कि संस्थान फसल की गुणवत्ता वाली किस्मों पर काम कर रहा है। दो-तीन साल में यह किसानों तक पहुंच पाएंगी।
क्या है जीरो बजट खेती
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल एवं कुरुक्षेत्र में गुरुकुल के संरक्षक आचार्य डॉ. देवव्रत के अनुसार रासायनिक और जैविक खाद की बजाय, जीवामृत बनाकर किसी भी फसल में छिड़काव किया जाता है। इससे खेती पर होने वाला खर्च खत्म हो जाता है। एक देसी गाय से 30 एकड़ की खेती हो सकती है। गाय का गोबर 10 किलो, गोमूत्र पांच से 10 लीटर, गुड़ एक से दो किलो, बेसन एक से दो किलो, पानी दो सौ लीटर और पेड़ के नीचे की मिट्टी एक किलो मिलाकर जीवामृत तैयार किया जाता है। चार दिन इसे क्लॉकवाइज घुमाकर तैयार किया जाता है। इसका फसलों पर छिड़काव किया जाता है।
जैविक खेती सबसे खतरनाक
जीरो बजट खेती के जन्मदाता पद्मश्री सुभाष पालेकर ने कहा कि जैविक खेती रासायनिक खेती भी खतरनाक है। जीरो बजट खेती का फार्मूला आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ स्वीकार कर चुके हैं। इनके मुख्यमंत्री इसे आगे बढ़ा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में इसकी चर्चा हो चुकी है और अब रोम में यह प्रयोग चल रहा है।