लूटी जा रही है हड़प्पा और आर्यों की महान विरासत, आंखें क्यों हैं बंद
कब्जों की भेंट चढ़ रहे दौलतपुर के हड़प्पाकालीन अवशेष। छठी शताब्दी से पूर्व के मिले हैं अवशेष। लगभग 20 एकड़ में फैली साइट की हो चुकी है खोदाई। संरक्षण को प्रशासन ने किया नजरअंदाज।
जेएनएन, पानीपत : इतिहास। यह महज एक शब्द नहीं, पूरी की पूरी एक विरासत होती है। कहते हैं कि जो अपने इतिहास से विमुख हो जाते हैं, वो अपना भविष्य नहीं बना पाते। देश के महान इतिहास को यहां बिसराया जा रहा है। आप जानकर हैरान हो जाएंगे महान हड़प्पा कालीन सभ्यता के जिस शहर में अवशेष पड़े हैं, उन्हें भी संभाला नहीं जा रहा। किस तरह यहां कब्जे होते जा रहे हैं, यह जानने के लिए पढ़ें ये विशेष खबर।
कुरुक्षेत्र अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए दुनियाभर में मशहूर है। महाभारतकाल में कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध का गवाह कुरक्षेत्र एक और सभ्यता को अपने अंदर समेटे हुए है। दरअसल, यहां हड़प्पा और आर्यकालीन सभ्यता के अवशेष बिखरे पड़े हैं। इन अवशेषों को देख इस स्थान की समृद्धि का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, लेकिन इस बहुमूल्य धरोहर को अब बेखौफ होकर लूटा जा रहा है।
दौलतपुर में है पुरातात्विक धरोहर
कुरुक्षेत्र में धार्मिक स्थलों के साथ ही पुरातात्विक स्थानों की कमी नहीं है। कई स्थानों की खोदाई के बाद उन्हें भारतीय पुरातत्व विभाग ने संरक्षित किया है, लेकिन अभी भी कई हिस्से ऐसे हैं जो संरक्षण के अभाव में बर्बाद हो रहे हैं। इनमें से एक है कुरुक्षेत्र के पूर्व में स्थित गांव दौलतपुर में स्थित हड़प्पा और आर्यों के समय की पुरातात्विक धरोहर। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की ओर से दो बार इस स्थान की खुदाई की जा चुकी है जिसमें यह साबित हो चुका है कि यह आर्यों के समय की छठी शताब्दी से पूर्व की साइट है। लेकिन, अब ग्रामीण वहां से मिट्टी उठाकर पुरातात्विक धरोहर का विनाश कर रहे हैं।
गोबर के उपले
भारतीय इतिहास की इतनी महत्वपूर्ण साइट होने के बाद भी ग्रामीण यहां से मिट्टी उठाकर ले जाते हैं। इसके अलावा ग्रामीणों ने इस पर अवैध कब्जे कर रखे हैं। जिस पर महिलाएं गोबर डाल कर उपलें बनाती हैं। मिट्टी उठाने के कारण कई जगह गड्ढे बन गए हैं।
कुवि ने की थी दो बार खोदाई
लगभग 30 एकड़ में फैले इस पुरातात्विक स्थल की खोदाई कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग ने की थी। पहली बार 1968 में और दोबारा 1976 में।
मिली थी छठी शताब्दी की मोहर
पुरातत्वेता डॉ. मनोज कुमार ने बताया कि खोदाई के दौरान इस साइट से छठी शताब्दी की मोहर मिली थी। इसमें इस क्षेत्र का नाम श्रीकंठ जनपद बताया गया है। वहीं इस जगह पर हड़प्पा संस्कृति के साथ ही आर्यों के अवशेष भी मिले हैं। यह स्थान उस समय की दृश्यवती नदी के किनारे बसा था, जो आज के समय चौतांग नदी के रूप में जानी जाती है।