दूध पीना है तो बचा लो अपनी देसी गाय
भीषण गर्मी से सब परेशान हैं। दूध उत्पादन भी कम हो गया है। अगर इसी तरह तापमान बढ़ता रहा तो समस्या और गंभीर हो जाएगी।
प्रदीप शर्मा, करनाल
भीषण गर्मी से सब परेशान हैं। दूध उत्पादन भी कम हो गया है, लेकिन सवाल है कि तापमान यूं ही बढ़ता रहा फिर क्या होगा, कहा से आएगा दूध? चिंता न करें। शोध बताते हैं कि देसी गाय उम्मीद की किरण हो सकती है। वह काफी हद तक तापमान झेलने में सक्षम है।
यहा स्थित नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआइ) में जलवायु परिवर्तन पर शोध में यह तथ्य सामने आ रहा है। यह शोध देश में अपनी तरह का पहला है, जिसमें परखा जा रहा है कि बढ़ते तापमान और प्रदूषण का मवेशियों पर कैसा असर पड़ेगा? 100 वर्षो में विश्व का तापमान 0.7 से लेकर 1.2 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ा है। जिस तरह से ग्रीन हाउस गैसें बढ़ रही हैं, उससे तापमान तेजी से बढ़ने की आशका है। इसी समस्या का समाधान ढ़ूंढ़ने के मकसद से यह शोध चल रहा है। केंद्र के अंदर बने दो क्लाइमेट चेंबर में चल रहे इस शोध को दैनिक जागरण ने जानने की कोशिश की।
यूं काम करता है क्लाइमेट चेंबर
सेंटर में दो क्लाइमेंट चेंबर बनाए गए। भविष्य को आधार बना कर कंप्यूटर से चेंबर का तापमान, प्रदूषण यानि कार्बनडाइआक्साइड का स्तर फिक्स किया गया। कुल मिलाकर चेंबर में ऐसा वातावरण बनाया जाता है जैसा तापमान और प्रदूषण बढ़ने के बाद भविष्य में होगा। फिर यह देखा जाता है कि इसमें पशु का व्यवहार क्या रहता है, उसके दूध देने पर क्या असर पड़ रहा है। 400 पीपीएम सीओ टू सिर्फ देसी गाय बर्दाश्त कर सकी
एनडीआरआइ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. महेंद्र सिंह के मुताबिक क्लाइमेट चेंबर में देसी व संकर नस्ल दोनों पर प्रयोग किए गए। कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा 400 पीपीएम आते ही संकर नस्ल की गायों को भारी परेशानी शुरू हो गई थी। सिर्फ देसी गाय ही इसे बर्दाश्त कर सकी। दरअसल, देसी गाय के शरीर की बनावट ही खास है। उसकी खाल नीचे तक लटकी रहती है। गर्दन के पीछे एक गुमंड़ होता है, जिससे हीट रेडिएशन वापस हो जाता है। संकर नस्ल की गायों का ऊपरी हिस्सा चौड़ा होता है। देसी गाय की गर्दन के नीचे झालर होती है, इस पर बड़ी संख्या में रोम छिद्र होते है। यह झालर रेडिएटर की तरह काम करती है। अब जैसे ही गर्मी बढ़ती है तो पसीना निकलता है, जिससे गाय का शरीर ठंडा रहता है। देसी गाय 48 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान झेल सकती है, जबकि संकर नस्ल की गाय 33 से 34 डिग्री तापमान में प्रभावित होना शुरू हो जाती है। कोर्टीसोल हारमोन भी महत्वपूर्ण कारक है। इसके गर्मी के संपर्क में आने से पशु तनाव में आ जाता है। वह कोर्टीसोल हारमोन भी देसी गाय में संकर नस्ल की मुकाबले अधिक मजबूत है। देसी गाय के तनाव में नहीं आने के कारण दूध बनाने वाले हारमोन भी प्रभावित नहीं होते। इसलिए किया जा रहा है शोध
-तापमान बढ़ रहा है, जब यह 48 डिग्री से ऊपर चला जाए तो पशुपालक कैसे बचाव करेंगे?
-सीओ टू का स्तर बढ़ रहा है, इससे पशुओं को कैसे बचाया जाए?
-जलवायु परिवर्तन के कारण पशुओं में हारमोन बदलाव को कैसे रोका जाए? कोर्टीसोल हारमोन के कारण पशु तनाव में आ रहा है।
-प्रजनन प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ सकता है? पशु हीट में तो आता है, लेकिन कन्सीव नहीं कर पाता? बाक्स
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दूध उत्पादन में दुनिया में प्रथम स्थान रखने वाले भारत में विश्व की कुल संख्या का 15 प्रतिशत गायें एवं 55 प्रतिशत भैंसें हैं। देश के कुल दुग्ध उत्पादन का 53 प्रतिशत भैंसों व 43 प्रतिशत गायों और 3 प्रतिशत बकरियों से प्राप्त होता है। सबसे अधिक देसी गायें उत्तर प्रदेश में हैं। देशभर में
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गाय-भैंसों की संख्या : 133271
भैंसों की संख्या : 56586
गाय की संख्या : 76685
देसी गाय की संख्या : 55417
संकर गाय की संख्या : 21268
------------------ वर्जन
आने वाले 50 सालों को ध्यान में रखकर शोध किया जा रहा है। अब तक की स्थिति पर काबू पाने में हम सफल रहे हैं, भविष्य में चुनौतिया हैं। तापमान भी बढ़ रहा है और प्रदूषण का स्तर भी। इनका असर पशुओं पर न पड़े, इसके लिए शोध कार्य जारी हैं। डॉ. महेंद्र सिंह,
प्रधान वैज्ञानिक, एनडीआरआइ, करनाल