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मजबूरी का सफर: जिंदगी की जद्दोजहद में जोखिम को न्योता दे रहे प्रवासी, पार कर रहे यमुना

कोई दस दिन से पैदल चल रहा तो कोई 15 दिन से। सबकी मंजिल एक बस किसी तरह घर पहुंच जाएं। बच्‍चों को गोद में लेकर लोग यमुना नदी को पार कर रहे।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Fri, 15 May 2020 12:56 PM (IST)Updated: Fri, 15 May 2020 12:56 PM (IST)
मजबूरी का सफर: जिंदगी की जद्दोजहद में जोखिम को न्योता दे रहे प्रवासी, पार कर रहे यमुना
मजबूरी का सफर: जिंदगी की जद्दोजहद में जोखिम को न्योता दे रहे प्रवासी, पार कर रहे यमुना

पानीपत/यमुनानगर, जेएनएन। ये मजबूरी ही है। लॉकडाउन में रोजगार गया तो कामगारों को जीवन यापन करना मुश्किल हो गया। अपना और अपनों का जीवन बचाने के लिए पैदल ही घर की ओर रुख कर दिया। सिर पर सामान की गठरी है। गोद में छोटे बच्चे। सैकड़ों की संख्या में कामगार पैदल ही सफर तय कर रहे हैं। कोई दस दिन से पैदल चल रहा है, तो कोई 15 दिन से। सबकी मंजिल एक ही है बस किसी तरह घर पहुंच जाएं। सफर में दुश्वारियां भी कम नहीं हो रही हैं। किसी तरह से यमुनानगर में कलानौर बॉर्डर तक पहुंचे, तो यहां से यूपी पुलिस ने वापस लौटा दिया। यहां से वापस लौटाए, तो यमुना नदी को पार करने का जोखिम उठा लिया और बीबीपुर घाट पर पहुंच गए। 

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चेहरों पर घबराहट, आहट सुनते ही छिप जाते हैं

इन कामगारों के चेहरों से इनकी मजबूरी व भय साफ झलक रहा था। डरे सहमे व बेहद थके ये कामगार चुपचाप निकल रहे हैं। डर इन्हें रास्ते में पहरेदारों का भी है। एक हल्की की आहट हो, तो यह दुबक जाते हैं। छिपने की कोशिश करते हैं। दैनिक जागरण की टीम बीबीपुर घाट पर पहुंची, तो कामगार खेतों में छिप गए। बाद में आपबीती  बताई।

तीन दिन से खाना तक नहीं खाया

उप्र के गोंडा के मुंशी पुहाल, पवन ने बताया कि वह लुधियाना से पैदल आ रहे हैं। तीन दिन से भरपेट खाना तक नहीं मिला। रास्ते में गांव के लोगों ने खाना खिलाया था। रात से लेकर अब तक कुछ खाने को नहीं मिला। मध्य प्रदेश के रामधनी व पन्ना लाल ने बताया कि वह कालाआंब से आ रहे हैं। पैदल ही छिपते-छिपाते आ रहे हैं। फैक्ट्री में नौकरी करते थे। लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई। अब पैसे और खाने का संकट आ गया। अब रोजगार व खाना ही नहीं रहा, तो फिर यहां रहकर क्या करेंगे। इसलिए ही पैदल जा रहे हैं।

छह साल की कनिका पूछ रही, पानी में कहां जा रहे मां

बीबीपुर घाट पर ही देवरिया का रहने वाला रमेश भी परिवार के साथ पहुंचा। उसकी पत्नी सविता की गोद में नौ माह की बेटी खुशी है। साथ में छह साल की कनिका है। जब कामगार यमुना पार करने लगे, तो कनिका घबरा गई और वहीं पर बैठ गई। मां से पूछा कि मां पानी में कहां जा रहे हैं। पानी में बह जाएंगे। सविता के पास उसके सवालों का जवाब नहीं था, केवल इतना ही कहा कि घर जाने का रास्ता यहीं से है।

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