हरियाणा की मुर्गी घाटे का सौदा, पढि़ए क्यों मची अंकल सैम की वजह से हलचल
प्रदेश में 15 हजार करोड़ का पोल्ट्री व्यवसाय है। अमेरिकी निवेश से लाखों किसान-मजदूर प्रभावित होंगे। इसका सबसे बड़ा असर जींद में होगा।
पानीपत/जींद, [कर्मपाल गिल]। अब हरियाणा की मुर्गी घाटे का सौदा बनकर रह जाएगी। मुर्गी के इस सौदे की वजह से न सिर्फ कारोबारी चिंतित हैं, बल्कि मजदूर और किसान भी परेशान हैं। अंकल सैम के इस समझौते ने हरियाणा के कारोबारियों को चिंता में डाल दिया है।
दरअसल अमेरिका से चिकन आयात करने के समझौते की खबरों ने हैचरी इंडस्ट्री में कंपन बढ़ा दी है। भारत-अमेरिका के बीच मुक्त व्यापार समझौता सिरे चढ़ जाता है तो भारत में अमेरिका से सस्ता चिकन आयात हो सकेगा। इस फैसले से हरियाणा में ही करीब दो लाख किसान-मजदूर प्रभावित होंगे। इसका सबसे बड़ा असर जींद जिले पर पड़ेगा, जो उत्तर भारत में हैचरी व्यवसाय का सबसे बड़ा केंद्र है।
पोल्ट्री फार्म और प्रोसेसिंग यूनिट बंद होने की आशंका
हरियाणा में पोल्ट्री व्यवसाय जींद, पानीपत, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र व गुरुग्राम जिलों में ज्यादा होता है। अमेरिका से चिकन आयात करने पर लगने वाला आयात शुल्क 100 फीसदी से घटकर जीरो या बीस फीसदी कर दिया जाता है तो हजारों पोल्ट्री फार्म और प्रोसेसिंग यूनिट बंद होने की आशंका है। इससे लाखों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट आ जाएगा। ब्रायलर ब्रीडर एसोसिएशन के नॉर्थ इंडिया के प्रधान गुरमिंद्र बिसला कहते हैं कि हरियाणा में लगभग 15 हजार करोड़ और अकेले जींद जिले में पांच हजार करोड़ की पोल्ट्री इंडस्ट्री है। इसमें करीब दो लाख किसान-मजदूर जुड़े हुए हैं।
उत्तर भारत में पोल्ट्री का सबसे बड़ा केंद्र है जींद
उत्तर भारत में पोल्ट्री का सबसे बड़ा केंद्र है जींद जिला है, जहां चिकन चूजा तैयार करने की लगभग 60 हैचरी, अंडे के लिए 50 लाख मुर्गियों की क्षमता के करीब 80 लेयर फार्म व चिकन मुर्गा तैयार करने के लगभग 2000 ब्रायलर फार्म हैं। इनमें हजारों मजदूर काम करते हैं। हरियाणा में बड़ी संख्या में किसान सहायक धंधे के रूप में पोल्ट्री व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। अमेरिका से सस्ता चिकन आता है तो वह लगभग 80 रुपये किलो पड़ेगा, जबकि यहां अभी एक चिकन मुर्गा तैयार करने में 85 से 90 रुपये खर्च होते हैं। ऐसे में घरेलू इंडस्ट्री बंद होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा असर पड़ेगा।
अमेरिका का वेस्ट यहां आएगा
नॉर्थ जोन ब्रॉयलर ब्रीडर एसोसिएशन के पूर्व महासचिव देवव्रत ढांडा कहते हैं कि अमेरिका में लोग मुर्गियों का लेग पीस न खाकर सिर्फ ब्रेस्ट पीस खाते हैं। इसलिए वहां लेग पीस वेस्ट में पड़ा रहता है। जबकि भारत में लोग लेग पीस पसंद करते हैं। अमेरिका अपने लेग पीस को आधा डॉलर के हिसाब से भी भारत में निर्यात करता है तो लोकल मीट से काफी सस्ता पड़ेगा। यही नहीं, लेग पीस में कोलस्ट्रोल व फैट ज्यादा रहता है। इससे हमारे ग्राहकों की सेहत भी खराब होगी।
आम किसान भी होगा प्रभावित
पोल्ट्री व्यवसायी बलजीत रेढू कहते हैं कि पोल्ट्री इंडस्ट्री में मक्का, बाजरा, सोयाबीन, चावल की पॉलिश आदि का फीड के रूप में प्रयोग करता है। इससे किसान की फसल को अच्छे दाम मिलते हैं। आम भारतीय किसान भी पोल्ट्री व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। अमेरिका से सस्ता लेग पीस आने पर भारतीय पोल्ट्री फार्म बर्बाद हो जाएगा। अमेरिका से यह समझौता सिरे चढ़ जाता है तो पूरे देश की पोल्ट्री इंडस्ट्री इसके विरोध में सड़क पर आ जाएगी। इससे आम किसान ज्यादा प्रभावित होगा।