हरियाणा में है अदभुत परंपरा, 40 दिन का व्रत, अष्टमी से दशहरे तक ‘हनुमत स्वरूप’ के दर्शन कर धन्य हो उठते हैं श्रद्धालु
हरियाणा में हनुमान जी के 40 दिन के व्रत की अदभुत परंपरा है। इसे हनुमत स्वरूप कहा जाता है। अष्टमी से लेकर दशहरे तक व्रतधारी हनुमत स्वरूप को धारण कर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। श्रद्धालु उनके दर्शन से खुद को धन्य महसूस करते हैं।
पानीपत [रवि धवन]। रामभक्त हनुमान के प्रति श्रद्धा का सुंदर उदाहरण है ‘हनुमत स्वरूप’ परंपरा। व्रतधारी दशहरे से 40 दिन पहले हनुमान जी के विशेष स्वरूप को सम्मुख रख कठिन व्रत प्रारंभ करते हैं। यह स्वरूप मुखौटे सदृश होता है। मिट्टी से स्वयं इसे गढ़ते हैं। चार फुट ऊंचा मुकुट भी इसमें सुशोभित होता है। अष्टमी से लेकर दशहरे तक व्रतधारी इस स्वरूप को धारण कर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। कठिन तप के कारण व्रतधारी को हनुमान स्वरूप माना जाता है। इनका दर्शन कर श्रद्धालु धन्य हो उठते हैं।
विभाजन के बाद पाकिस्तान के लाहौर और लैया (पंजाब प्रांत) जैसे शहरों से हरियाणा में आ बसे हजारों हिंदू परिवारों के बीच यह परंपरा आज भी आस्था का केंद्र है। पानीपत में भी करीब दो हजार लोग इस व्रत को करते हैं। इस बरस भी यह व्रत किया जा रहा है।
घर का मुखिया या कोई पुरुष सदस्य ही व्रत को धारण करता है। इस तप में ब्रह्मचर्य का पालन, आचार-विचार की शुचिता, मानसिक-शारीरिक पवित्रता, आहार, अनुशासन, ध्यान और साधना इत्यादि का विशेष महत्व है। भक्तों का कहना है कि यह परंपरा मूलत: लाहौर से प्रारंभ हुई, जो कि भगवान राम के पुत्र लव की नगरी है। वहां पुरखे इसे बड़े ही श्रद्धाभाव से मनाते थे। इन्हीं में से एक थे ढालुराम। वंशजों ने बताया कि विभाजन के समय पानीपत आए ढालुराम उस हनुमत स्वरूप को साथ लाना नहीं भूले, जिसे वह पूजते और धारण किया करते थे। ढालुराम के परिवार ने आज भी इसे संभालकर रखा है।
ढालुराम के पौत्र प्रकाशलाल बताते हैं कि आज पानीपत में यह परंपरा हजारों घरों में पहुंच गई है। कोविड के बीच भी जिला प्रशासन को हनुमत स्वरूप परिक्रमा की अनुमति देनी पड़ी है। यहां प्राय: हर मंदिर में हनुमत स्वरूप (मुखौटा-मूर्ति) विराजमान हैं, जिनके सम्मुख लोग व्रत धारण करते हैं। अधिकांश घर पर ही व्रत करते हैं।
यूं तो 40 दिन के व्रत का विधान है, किंतु अब कुछ लोग 21 या 11 दिन का व्रत भी करते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। भूमि पर सोते हैं। केवल फलाहार लेते हैं। मंदिर में व्रत करने वालों को मंदिर में ही रहना होता है। अष्टमी से दशहरे तक विशेष आयोजन होता है। नगर परिक्रमा और शोभायात्र आयोजित की जाती हैं।
व्रतधारी अष्टमी के दिन से स्वरूप धारण कर नगर परिक्रमा को निकलने लगते हैं। गौधूलि बेला में नगर परिक्रमा प्रारंभ होती है। तन पर सिंदूर लगाए और हनुमत स्वरूप (मुखौटा) धारण किए इन व्रतधारियों का दर्शन पाकर श्रद्धालु भक्तिभाव से भर उठते हैं।
जय श्रीराम और जय हनुमान के जयकारों के बीच ढोल की थाप पर नाचते-गाते हुए जनसमुदाय पीछे-पीछे चलता है। मानो संपूर्ण वातावरण राममय हो उठता है। एकादशी पर प्रभु राम के राज्याभिषेक के बाद स्वरूप को मंदिर अथवा घर में रख दिया जाता है। वर्ष भर उनका पूजन होता है। अष्टमी-दशहरे में फिर धारण किया जाता है।
हनुमान जी ने मुझे अवसर दे दिया
व्रतधारी जतिन का कहना है कि यहां राम मंदिर में हनुमत स्वरूप व्रत धारण करने के लिए भक्तों के बीच आठ साल लंबी प्रतीक्षा सूची थी। मैंने सोचा भी न था कि मुझे यह अवसर मिल जाएगा। कोरोना के कारण लोग हिचक रहे थे और हनुमान जी ने मुझे अवसर दे दिया। अगर कोरोना न होता तो संभवत: दस साल बाद मेरा नंबर आता।